मोहम्मद रफी की दरियादिली के भी कई किस्से मशहूर हैं। एक किस्सा बुजुर्ग संगीतकार प्यारेलाल शर्मा (लक्ष्मीकांत के जोड़ीदार) अक्सर सुनाया करते हैं। साठ के दशक की शुरुआत में जब लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल फिल्म इंडस्ट्री में पैर जमाने के लिए संघर्ष कर रहे थे, उन्हें छोटे बजट की ‘छैला बाबू’ के संगीत का जिम्मा सौंपा गया। उन दिनों मोहम्मद रफी सबसे महंगे गायक थे। उनका मेहनताना प्रति गीत करीब पांच हजार रुपए हुआ करता था। तब लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल की हैसियत एक गाने की इतनी रकम चुकाने की नहीं थी, लेकिन रफी की आवाज में एक गाना (तेरे प्यार ने मुझे गम दिया) रिकॉर्ड करना चाहते थे। उन्होंने समस्या रफी को बताई तो वे बोले- ‘पैसों की फिक्र छोड़ो, गाना रिकॉर्ड करो।’ रिकॉर्डिंग के बाद रफी जाने लगे तो लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल ने सकुचाते हुए एक लिफाफा उन्हें थमा दिया। उसमें 500 रुपए थे। रफी ने इन्हें दोनों के हाथों में रखकर कहा- ‘यह मेरी तरफ से शगुन है। इसी तरह मिल-बांटकर काम करते रहो।’ कुछ साल बाद लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल सबसे कामयाब संगीतकार के तौर पर उभरे। रफी ने अपनी जिंदगी के सबसे ज्यादा गाने इसी जोड़ी के लिए गाए। इनमें ‘दोस्ती’ का सदाबहार ‘चाहूंगा मैं तुझे शाम सवेरे’ और उनका आखिरी गाना ‘तू कहीं आस-पास है दोस्त’ (आस-पास) शामिल है।
साठ के दशक के आखिर में राजेश खन्ना के साथ किशोर कुमार तेजी से उभरे। उस समय कुछ लोगों ने कहा कि मोहम्मद रफी का सूरज अब ढल चुका है। इन लोगों को शायद पता नहीं होगा कि सूरज कभी नहीं ढलता। किशोर कुमार के दौर में ही उन्होंने ‘क्या हुआ तेरा वादा’ (हम किसी से कम नहीं) के लिए नेशनल अवॉर्ड जीता। उसी दौर में उनके ‘तुम जो मिल गए हो’, ये दुनिया ये महफिल मेरे काम की नहीं, पर्दा है पर्दा, शिर्डी वाले सांईबाबा, आदमी मुसाफिर है, मेरा मन तेरा प्यासा, मैंने पूछा चांद से, जनम-जनम का साथ है हमारा तुम्हारा, ‘गुलाबी आंखें’ और ‘दर्दे-दिल दर्दे-जिगर’ जैसे सैकड़ों गानों ने लोगों को दीवाना बनाए रखा।
गाना चाहे रोमांटिक हो (जिंदगी भर नहीं भूलेगी वो बरसात की रात), वियोग का (हम बेखुदी में तुमको पुकारे चले गए), भक्ति का (बड़ी देर भई नंदलाला), देशभक्ति का (जहां डाल-डाल पर सोने की चिडिय़ा करती है बसेरा) या मौज-मस्ती का (मैं जट यमला पगला दीवाना), मोहम्मद रफी की आवाज हर मूड में रंग-रंग के फूल खिला देती थी। उनकी तबीयत में इतनी मासूमियत, इतनी भावुकता, इतनी गहराई, इतनी तन्मयता और इतने उल्लास का स्रोत थी उनकी सादगी। वे संत तबीयत वाले इंसान थे। कोई तारीफ करता तो आसमान की तरफ हाथ उठा देते। उनकी सुरीली तबीयत का राज शायद उनके इस गीत में छिपा है- ‘मैं कब गाता मेरे स्वर में प्यार किसी का गाता है/ मैं तो हूं एक तार छेड़ कर कोई मुझे बजाता है।’