पहले फिल्म बननी थी, अब वेब सीरीज में ढलेगी कहानी
अपनी लाइफ पर बायोपिक बनने की खबर से रीता भी खासी उत्साहित हैं। चर्चा है कि पहले उनकी लाइफ पर फिल्म बनाने पर ही विचार किया जा रहा था। लेकिन मेकर्स को लगा कि इस लेडी लीजेंड की कहानी को 3 घंटे की स्पोर्ट्स ड्रामा में समेट पाना आसान नहीं होगा, इसलिए फिल्म का आइडिया ड्रॉप कर इसे वेब सीरीज के रूप में बनाने का निर्णय किया गया है। कैमरे के अलावा उनकी जिंदगी के सफ्हों को किताब की शक्ल में भी ढाला जा रहा है। जीहां, उनकी जिंदगी पर एक उपन्यास भी लिखा जा रहा है।
मां की बीमारी के कारण कभी कोई दोस्त नहीं बना
पंजाबी परिवार में जन्मी लुधियाना निवासी रीता के पिता उनके जन्म के समय भारतीय वायुसेना, दिल्ली में थे। उनकी मां दो बार गर्भपात के कारण गहरे सदमे में चली गई थीं। वे खुद से ही बातें करती थीं और कई बार डिप्रेशन के गहरे असर के चलते खुद को घायल कर लेती थीं। अफवाहों ने परिवार का पीछा कभी नहीं छोड़ा और उनकी मां की मानसिक परेशानी को पागलपन मानकर लोगों ने परिवार उसे दूरियां बना लीं। यहां तक की रीता का भी कभी कोई दोसत इसीलिए नहीं बना क्योंकि उनकी मां की बीमारी को लेकर लोगों में काफी भ्रम थे। ऐसे में रीता ने खुद को पढ़ाई और स्पोट्र्स में झोंक दिया। पिता का तबादला मद्रास हो गया। पिता के गुस्से का अक्सर शिकार बनने वाली रीता को बचाने के लिए उनकी बड़ी बहन ने हॉस्टल भेज दिया। जहां वे बहुत संघर्षरत जीवन में दिन गुजारने को मजबूर रहीं।
संघर्ष ने नहीं छोड़ा पीछा, बेटे की बीमारी ने बनाया मजबूत
घर की परिस्थितियों से तंग रीता को अपनी पढ़ाई से बहुत लगाव था। लेकिन घर में हाथ बंटाने के लिए उन्हें ट्यूशन पढ़ाना पड़ा जो उनकी जेब खर्च का एकमात्र सहारा था। रीता के पति मर्चेंंट नेवी में कार्यरत थे और ज्यादातर समय घर से बाहर ही रहते थे। साल भर बाद ही उन्होंने एक बेटे को जनम दिया लेकिन वह भी ऑटिज्म से पीडि़त था। इसका दोष भी रीता के सिर ही आया और उन्हें डॉमेस्टिक वायलेंस का भी शिकार होना पड़ा। फिर वे बेटे के साथ पिता के घर आ गईं। डॉक्टर्स ने उनके बेटे को लेकर उम्मीद छोड़ दी थी, बोले कि आपका बेटा कभी बोल नहीं पाएगा। बस उसी दिन से रीता ने अपनी जिंदगी बेटे को समर्पित कर दी। उन्होंने बेटे अनीश का एडमिशन स्कूल में कराया और सामान्य बच्चों की तरह परवरिश दी। डॉक्टर की सलाह पर उन्होंने बेटे को फिजिकल ट्रेनिंग देनी शुरू की। यहीं से उनका जुड़ाव बॉडी बिल्डिंग से हुआ। धीरे-धीरे उन्होंने छोटे-छोटे बॉडी-बिल्डिंग प्रतियोगिताओं में हिस्सा लेना शुरू किया। उनके प्रदर्शन को देखते हुए उन्हें बाद में राज्य स्तरीय, नेशनल लेवल और आखिर में इंटरनेशनल लेवल पर भारत को रिप्रेजेंट करने का अवसर मिला। इस दौरान उन्होंने लगातार अपनी पढ़ाई भी जारी रखी और दिल्ली विश्वविद्यालय से पीजी करने के बाद उन्होंने अमरीका से डॉक्ट्रेट की मानद उपाधि भी पाई।
बिकिनी अवतार बना आलोचना का कारण, नहीं हारी हिम्मत
उस दौर में प्रतियोगिताओं में टू-पीस बिकिनी में शारीरिक सौष्ठव का प्रदर्शन करने के कारण उनकी काफी आलोचना भी की जाती थी। लोग उनकी बॉडडी, मसल्स और पुरुषों जैसे डील-डौल का मजाक भी उड़ाते थे, लेकिन उन्होंने इतने सालों के संघर्ष में ऐसी आलोचनाओं को पचाना सीख लिया था। अपनी मेहनत के दम पर रीता तीन बार की राष्ट्रीय बॉडी बिल्डिंग चैम्पियन रह चुकी हैं। इंटरनेशन बॉडी बिल्डिंग चैम्पियन फेडरेशन में वे एशिया से एकमात्र महिला प्रो-लीग इंटरनेशनल बॉडी बिल्डिंग प्रतियोगिता में जज भी हैं। अब रीता दिल्ली के प्रीतमपुरा में अपना फिटनेस सेंटर चलाती हैं। उनका बेटा भी उनके कामों में हाथ बंटाता है। रीता की कहानी आज भी लाखों महिलाओं के लिए उनके जीवन संघर्ष में प्रेरणा का ईंधन है।