उस समय फिल्म के निर्देशक हीरोइन चुनने पर खास ध्यान देते थे। एक लड़की में बहुत ही बारीकी से हर चीज की परख की जाती थी। जैसे- उसका फिगर कैसा है, बाल कैसे हैं, आवाज कैसी है, अभिनय कैसा है आदि।
वहीं, जब किसी लड़की को रोल के लिए कास्ट किया जाता था तो, उसमें हर तरह की भूमिका करने की हिम्मत हो, कोई भी चुनौती का सामना करने का आत्मविश्वास हो। ये सब चीज एक निर्देशक अपनी हीरोइन में देखते थे।
उस दौर में फिल्मों में किसी भूमिका को पाना बिलकुल आसान नहीं होता था। लड़कियों को ऑडिशन के साथ-साथ निर्देशक के कई सवालों के जवाब देने पड़ते थे। एक साथ कई-कई लड़कियों के ऑडिशन होते थे जिसमें से निर्देशक किसी एक को अभिनेत्री को भूमिका के लिए चुनते थे।
कहने का मतलब की ऑडिशन के लिए पहुंची लड़कियों को निर्देशक के पैरामीटर पर खरा उतरना पड़ता था। जिसके लिए उन्हें निर्देशक जैसा कहता था उसी हिसाब से ऑडिशन देना पड़ता था।
देसी और वेस्टर्न दोनों ही लुक्स में लड़कियों को ऑडिशन देना पड़ता हैं। 1951 में फिल्मों में भूमिका पाना कोई आसान काम नहीं था, इसके लिए लड़कियों को कई पड़ाव पार करने पड़ते थे।