script12 विश्वविद्यालय के पाठ्यक्रम में शामिल है गुरूदत्त की फिल्म “कागज के फूल” | Guru Dutt's film Kagaj ke Phool involved in syllabus of 12 universities | Patrika News
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12 विश्वविद्यालय के पाठ्यक्रम में शामिल है गुरूदत्त की फिल्म “कागज के फूल”

मशहूर फिल्म अभिनेता और निर्देशक गुरूदत्त की मशहूर फिल्म “कागज के फूल” आज
दुनिया के लगभग 12 विश्वविद्यालय…

Jul 09, 2015 / 03:13 pm

सुधा वर्मा

kagaz ke phool

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मुंबई। मशहूर फिल्म अभिनेता और निर्देशक गुरूदत्त की मशहूर फिल्म “कागज के फूल” आज दुनिया के लगभग 12 विश्वविद्यालय के पाठ्यक्रम में अध्ययन के लिए शामिल है, लेकिन आपको जानकर यह हैरानी होगी की यह फिल्म सिनेमाघरों में केवल 1 सप्ताह ही टिक पाई थी।

राजकपूर ने की थी भविष्यवाणी
महान फिल्म अभिनेता एवं निमार्ता निर्देशक राजकपूर ने 1959 में बनी इस फिल्म को देखकर कहा था कि ये फिल्म अपने समय से पहले की फिल्म है और आने वाली पीढी ही बाद में इस फिल्म के महत्व को समझेगी। राजकपूर की भविष्यवाणी सही साबित हुई और यह फिल्म दुनिया के मशहूर फिल्मों में शुमार की गयी । नौ जुलाई 1925 को बंगलोर(अब बेंगलुरू) में दक्षिण भारत के पादुकोण ब्रा±मण परिवार में जन्मे गुरूदत्त की 90वीं जयंती पर उनके जीवन पर आधारित दूरदर्शन पर आज दिखाई गयी फिल्म में भारतीय सिनेमा में उनके विशिष्ट योगदान को रेखांकित कर उन्हें श्रद्धांजलि दी गयी।


इस फिल्म में मशहूर अभिनेत्री वहीदा रहमान ,आशा भोंसले, गुरूदत्त के पुत्र श्याम बेनेगल और गुरूदत के जीवनीकार अरूण खोपकर को दिखाया गया है। आशा भोंसले ने गुरूदत्त को याद करते हुये कहा “”साहब बीबी गुलाम में .जब मैंने भंवरा बड़ा नादान है. गाना गया था तो गुरूदत्त ने खुद ये गीत गाकर मुझे समझाया था कि इस तरह गाना गाओ। उन्होंने आत्महत्या करने से पहले रात बारह बजे अंतिम बार मुझे ही $फोन किया था और पूछा था कि गीता दत्त कहाँ है।”” गौरतलब है कि गुरूदत्त और उनकी पत्नी गीता दत्त के रिश्ते $खराब हो गए थे और दोनों अलग- अलग रहने लगे थे।

मशहूर फिल्म अभनेत्री वहीदा रहमान ने फिल्म में कहा है कि .प्यासा. फिल्म में .व$क्त ने किया क्या हंसी सितम. गीत उनकी फिल्मों का सबसे सुन्दर गीत है। इस गीत में वो सारी खूबियाँ है जो किसी गाने के फिल्मांकन में होनी चाहिए। गुरूदत्त के बेटे अरूण दत्त ने कहा “”मेरे पिताजी और ब्रिटेन के मशहूर अभिनेता सर ओसोÊन वेल्स समकालीन थे और उन्होंने फिल्मों में रोशनी और परछाई का इस्तेमाल उनसे ही सीखा था। मेरी उम्र जब आठ साल की थी तब वो दुनिया से चले गए। उन्हें किताबें पढने और पतंग बाकाी का बड़ा शौक था।”” जाने माने फिल्म निदेÊशक श्याम बेनेगल का कहना है कि गुरूदत्त की फिल्मों के गाने भी फिल्म की कहानी को बताते थे ।उन्हें इस तरह फिल्म में दिखाया जाता था कि वे फिल्म की कहानी को गानों से जोड़ देते थे। गुरूदत ने दस अक्टूबर 1964 को आत्म्हत्या कर ली थी। वह कलकत्ता में पले बढे और वहीं अपना बंगाली नाम रख लिया था ।

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