भाजपा की रैली शाम 4 बजे शुरू हुई और अटलजी की बारी आते-आते रात के 9 बज गए, लेकिन मैदान में जमा काफिला किसी भी सूरत में उन्हें सुनना चाहता था। न तो जनता ने उस वक्त ठंड की परवाह की और न ही यह कि टीवी पर ‘बॉबी’ दिखाई जा रही है।
जैसे ही वाजपेयी बोलने के लिए खड़े हुए, वहां मौजूद हज़ारों लोग भी खड़े हो कर ताली बजाने लगे। उन्होंने तालियों को शांत किया और एक मिसरा पढ़ा, ‘बड़ी मुद्दत के बाद मिले हैं दीवाने, कहने सुनने को बहुत हैं अफ़साने।’ तालियों का दौर बहुत लंबा चला। शोर रुका तो वाजपेयी ने दो और पंक्तियां पढ़ीं, ‘खुली हवा में ज़रा सांस तो ले लें, कब तक रहेगी आज़ादी कौन जाने?’
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बॉबी फिल्म पर भी वाजपेयी पड़े थे भारी सरकार रैली में जाने से लोगों को रोकना चाहती थी लेकिन बॉबी फिल्म पर भी वाजपेयी भारी पड़े। वाजपेयी न केवल राजनेता बल्कि शानदार लेखक और कवि भी थे। उनका आलोचना करने का तरीका भी बेहद मधुर था और जीवन के अनुभव बताने का तरीका भी। आज भी उनके भाषण खूब सुने जाते हैं। उनकी कवितायें सोशल मीडिया पर खूब साझा की जाती हैं।