गगूबाई एक अच्छे परिवार से थी। 1939 में गुजरात के काठियावाड़ नामक जगह में गगूबाई का जन्म हुआ था। गगूबाई की पूरा नाम गंगा हरजीवनदास काठियावाड़ी था। गगूबाई अपने घर की एक लौती बेटी थी। जिसके कारण उऩके परिवार उन्हें अच्छे से पढ़ा लिखा कर उऩ्हें कुछ बनाना चाहते थे लेकिन गंगूबाई का मन पढ़ाई में नहीं लगता था।
वह मात्र 16 साल की उम्र में अपने पिता के साथ काम करने वाले अकाउंटेंट रमणीकलाल से प्यार कर बैठी थी और कम उम्र में ही गंगूबाई ने घर से भागकर रमणीकलाल से शादी कर ली और रमणीकलाल के साथ भागकर मुम्बई आ गई। शादी के कुछ ही दिन बाद रमणीकलाल ने गंगूबाई को मात्र 500 रुपये में कोठे पर बेच दिया।
गंगूबाई यह समझ गई थी कि उन्हें अब उनके परिवार कभी भी स्वीकार नहीं करेगे। ऐसे में गंगूबाई ने परिस्थितियों से समझौता कर लिया और कोठेवाली बन गई। हालांकि उनके परिजनों का कहना हैं कि उन्होने कभी भी कोठे पर काम नहीं किया सिर्फ कोठे पर औरते पर होने वाली अत्याचार को लेकर महिलाओं के लिए आवाज उठाई।
गंगूबाई के साथ शौकत खान नाम का एक बदमाश ने जबरदस्ती की थी। जिसके बाद गंगूबाई ने इसकी शिकायत करीम लाल से की। शौकत खान करीम लाल के साथ काम करता था। लेकिन करीम की हरकत पता चलने के बाद शौकत खान ने करीम को कड़ी सजा दी। इस पर गंगूबाई ने करीम लाला को राखी बांध कर अपना मुंह बोला भाई बना लिया।
करीम लाला की बहन बनने के बाद से ही गगूबाई का पूरे इलाके में धाक जम गई। जिसके बाद कोठे पर काम करने वाली महिलाओं के लिए कई सारे काम किए। गंगूबाई ने ऐसी कई लड़कियों को घर वापस भेजने में मदद की, जिन्हें धोखा देकर वेश्यालयों में बेचा गया था। मुंबई के आज़ाद मैदान में महिला सशक्तीकरण और महिला अधिकारों के लिए आयोजित रैली में उनका भाषण काफ़ी चर्चा में रहा था।
एस हुसैन ज़ैदी की किताब ‘माफ़िया क्वीन्स ऑफ मुंबई’ के हिसाब से अपने राजनीतिक परिचितों की मदद से तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू से मिलने के लिए वक़्त मांगा। जब वह जवाहरलाल नेहरू से मिलने पहुंची तो उनसे जवाहरलाल नेहरू ने यह पूछा गया कि तुम धंधा क्यो करता हो? अच्छा नौकरी करों और शादी करों। जिसे सुनने के बाद गगूबाई कहती है कि- अगर आप मुझे पत्नी के रूप में स्वीकार करते हैं तो मैं तुरंत यह काम छोड़ दूंगी।
इस बात को सुनने के बाद जवाहरलाल नहरु नाराज हो जाते हैं। इसके बाद गंगूबाई ने उनसे कहा कि- ‘प्रधानमंत्री जी नाराज मत होइए. मैं सिर्फ़ अपनी बात साबित करना चाहती थी. सलाह देना आसान है लेकिन उसे ख़ुद अपनाना मुश्किल है।