कॅरियर के शुरूआती दिनों में अपनी पहचान बनाने के लिए अमिताभ को कड़ा संघर्ष करना पड़ा। उन्होंने कोलकत्ता में सुपरवाइजर की नौकरी की,जहां उन्हें 800 रूपये मासिक वेतन मिला करता था। वर्ष 1968 में यह नौकरी छोडने के बाद वे मुंबई आ गए। वर्ष 1969 में अमिताभ को पहली बार ख्वाजा अहमद अब्बास की फिल्म ‘सात हिंदुस्तानी’ में काम करने का मौका मिला। लेकिन इस फिल्म के असफल होने के कारण वह दर्शकों के बीच कुछ खास पहचान नही बना पाए। वर्ष 1971 मे उन्हें राजेश खन्ना के साथ फिल्म ‘आनंद’ में काम करने का मौका मिला। राजेश खन्ना जैसे सुपरस्टार के रहते हुए भी अमिताभ दर्शको का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करने में सफल रहे। इस फिल्म के लिए उन्हें सहायक अभिनेता का फिल्म फेयर पुरस्कार दिया गया।
प्राण की सिफारिश पर मिली थी ‘जंजीर’
प्रकाश मेहरा की फिल्म ‘जंजीर’ अमिताभ के सिने कॅरियर की महत्वपूर्ण फिल्मों में से हैं। इस फिल्म से वे ‘एंग्री यंग मैैन’ के रूप में फेमस हो गए। उन्हें यह फिल्म सौभाग्य से मिली थी। इस फिल्म के लिए प्रकाश मेहरा ने देवानंद से गुजारिश की और बाद में अभिनेता राजकुमार से काम करने की पेशकश की। लेकिन किसी कारणवश दोनो अभिनेताओं ने ‘जंजीर’ में काम करने से इंकार कर दिया। बाद में अभिनेता प्राण ने प्रकाश मेहरा को अमिताभ का नाम सुझाया और उनकी फिल्म ‘बांबे टू गोवा’ देखने की सलाह दी। फिल्म को देखकर प्रकाश मेहरा काफी प्रभावित हुए और उन्होने अमिताभ को बतौर अभिनेता चुन लिया।आवाज सुन प्रभावित हुए राजकपूर
‘जंजीर’ के निर्माण के दौरान उसी स्टूडियो में राजकपूर भी अपनी फिल्म की शूटिंग में व्यस्त थे। शूटिंग के दौरान राजकपूर ने अमिताभ की आवाज सुनी। उस वक्त तक वे अमिताभ को नहीं जानते थे लेकिन उनकी दमदार आवाज सुनकर राजकपूर ने कहा था,’एक दिन इस दमदार आवाज का मालिक फिल्म इंडस्ट्री का बेताज बादशाह बनेगा’।