World Lung Cancer Day: स्मोक करने से ज्यादा उनके संपर्क में रहने वाले फेफड़े के कैंसर की गिरफ्त में
World Lung Cancer Day: मेडिकल कॉलेज सिम्स में हर साल फेफड़े के कैंसर के औसतन 36 नए मरीज इलाज के लिए पहुंच रहे, विशेषज्ञों के अनुसार इलाज पैटर्न भी कैंसर के मरीजों को धकेल रहा है मौत के मुंह में
शरद त्रिपाठी/बिलासपुर. World Lung Cancer Day: डॉक्टरों के अनुसार धूम्रपान ‘स्मोक’ करने वालों से कहीं ज्यादा उनके संपर्क में आने वाले प्रभावित होते हैं। धूम्रपान फेफड़े के कैंसर (World lungs cancer day) का कारक है। इसके मरीज लगातार बढ़ते जा रहे हैं। संभाग के सबसे बड़े सरकारी अस्पताल सिम्स की बात करें यहां हर माह औसतन 3 यानी साल में 36 नए मरीज इसके इलाज के लिए पहुंच रहे हैं। जबकि 5 साल पहले तक यह संख्या इससे आधी थी। कैंसर स्पेशलिस्ट की मानें तो वर्तमान इलाज पैटर्न भी कैंसर पीडि़त मरीजों की गंभीरता को बढ़ाते हुए उन्हें मौत के मुंह में धकेल रहा है। जरूरत है इस पैटर्न को सुव्यवस्थित करने की।
फेफड़े के कैंसर का मुख्य कारक धूम्रपान व प्रदूषण है। इसमें मौजूद बैंजीन व इथलीन ऑक्साइड फेफड़े के कैंसर के लिए जिम्मेदार हैं। डॉक्टरों के मुताबिक इसकी शुरुआत खांसी व सीने के दर्द से होती है। अमूमन जो इससे पीडि़त होता है, वह पहले स्वयं कफ या ड्राई खांसी सिरप लेकर ठीक करने का प्रयास करता है। इसके बाद भी नहीं ठीक होने पर डॉक्टर के पास जाता है। वहां डॉक्टर अपने हिसाब से खांसी को ठीक करने का प्रयास करते हैं।
इसके बाद भी ठीक न होने पर टीबी की जांच कराई जाती है। इसमें यदि टीबी का पता चलता है तो उसकी दवाएं चलती हैं, लेकिन यदि टीबी का पता नहीं चलता तो अपने हिसाब से खांसी व चेस्ट दर्द की दवाएं चेंज कर ठीक करने का प्रयास किया जाता है। इस पर भी ठीक न होने पर कहीं जाकर उसे कैंसर विशेषज्ञ से मिलने की सलाह दी जाती है।
इस दरमियान यदि वह व्यक्ति कैंसर का मरीज है तो फोर्थ स्टेज तक पहुंच जाता है। इस अवस्था में मरीज को बचा पाना विशेषज्ञ डॉक्टर के लिए भी मुश्किल हो जाता है। ऐसे में ्डॉक्टरों को टीबी के साथ ही कैंसर की भी जांच करानी चाहिए।
डायबिटीज व हाइपर टेंशन के मरीजों को ज्यादा खतरा
डॉक्टरों के अनुसार फेफड़े के कैंसर का सबसे ज्यादा खतरा डायबिटीज व हाइपर टेंशन के मरीजों को रहता है। लिहाजा ऐसे मरीजों को धूम्रपान या इससे जुड़े लोगों से दूर रहना होगा। इसके अलावा इम्युनिटी पॉवर बनाए रखना होगा।
सिम्स में पेट स्क्रीनिंग की नहीं सुविधा, बाहर भेज रहे
सिम्स में लंग्स कैंसर की जांच के लिए नार्मल स्क्रीनिंग की सुविधा तो है, पर बारीकी से जांच के लिए पेट स्क्रीनिंग की सुविधा यहां नहीं है। इसके लिए मरीजों को सरकारी स्तर पर या तो रायपुर मेकाहारा जाना पड़ रहा या फिर बिलासपुर में अपोलो सहित कुछ निजी अस्पतालों में। इसके अलावा आयुष्मान कार्ड के माध्यम से यहां पारंपरिक कोमीथैरेपी की सुविधा उपलब्ध है।
धूम्रपान न करें और ऐसा करने वालों से दूरी बना कर रहें
बढ़ती धूम्रपान की लत व पर्यावरण प्रदूषण के चलते फेफड़ा कैंसर के मरीजों की संख्या बढ़ती जा रही है। सिम्स में महीने में औसतन ३ यानी साल भर में करीब 36 नए मरीज आ रहे हैं। जबकि पांच साल पहले तक यह संख्या आधे से भी कम थी। चौंकाने वाली बात यह है कि इनमें ऐसे मरीज भी शामिल है जो स्मोकिंग नहीं करते।
इसकी वजह स्मोकिंग करने वाले संपर्क में आना हो सकता है। लिहाजा जरूरी है कि अपनी इम्युनिटी पॉवर बेहतर बनाए रखने की। धूम्रपान करने से बचने के साथ ही स्मोक करने वालों से भी दूरी बना कर रहना होगा।
डॉक्टरों को भी सलाह है कि ऐसे मरीज जो लंबे समय से खांसी से पीडि़त हैं, उनके फेफड़े में पानी भर जा रहा है तो उनकी टीबी की जांच के साथ ही कैंसर की भी जांच कराएं। ताकि अगर किसी व्यक्ति को कैंसर ग्रसित कर रहा हो तो समय रहते बीमारी पहचान कर उसे बचाया जा सके।
बीमारी के लक्षण
लंबे समय से खांसी आना खांसी में ब्लड आना सीने में दर्द फेफड़े में बार-बार पानी भरना
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