श्री भैरव मंदिर में ११ द्विज बटुकों का धूमधाम से हुआ उपनयन संस्कार
अखंड ब्राह्मण समाज सेवा समिति द्वारा सनातन धर्म रक्षार्थ एवम समाज उत्थान हेतु भैरव बाबा मंदिर रतनपुर के प्रांगण में 11 बच्चों का नि:शुल्क उपनयन संस्कार संगठन के विप्र जागरण प्रकोष्ठ प्रदेश उपाध्यक्ष पं.जागेश्वर प्रसाद उपाध्याय के निर्देशन में संपन्न हुआ ।
Upnayan ceremony of 11 Dwij Batuks performed with pomp in Shri Bhairav Temple
बिलासपुर/रतनपुर. अखंड ब्राह्मण समाज सेवा समिति द्वारा सनातन धर्म रक्षार्थ एवम समाज उत्थान हेतु भैरव बाबा मंदिर रतनपुर के प्रांगण में 11 बच्चों का नि:शुल्क उपनयन संस्कार संगठन के विप्र जागरण प्रकोष्ठ प्रदेश उपाध्यक्ष पं.जागेश्वर प्रसाद उपाध्याय के निर्देशन में संपन्न हुआ ।
अखंड ब्राह्मण समाज सेवा समिति की नारी शक्ति प्रकोष्ठ की प्रदेश प्रमुख चित्रा तिवारी ने बताया कि ब्राह्मणों को शास्त्र में द्विज कहा गया है। द्विज का अर्थ दूसरा जन्म होता है एक जन्म जब पैदा होता है तब और दूसरा जन्म उपनयन संस्कार के बाद। उन्होंने बताया कि उपनयन संस्कार आचार्य राजेंद्र महराज के द्वाराविधिविधान से संपन्न हुआ । समिति के प्रदेश अध्यक्ष योगेश तिवारी ने संस्कारिक शिक्षा पर जोर देते हुए उपस्थित बटुकों सहित उनकी माताओं से आग्रह किया कि स्कूली शिक्षा के साथ -साथ बच्चों के आध्यात्मिक शिक्षा पर ध्यान दें। जब तक बच्चे आध्यात्मिक शिक्षा ग्रहण नहीं करेंगे उनका सर्वांगीण विकास असंभव है और समाज एवम राष्ट्र के उत्थान में बाधक है । कार्यक्रम में अनिल शर्मा, कल्याणी शर्मा, अनामिका शर्मा रतनपुर, राजकुमारी तिवारी, शशि शर्मा,जया पांडेय, सिब्बी शर्मा सुलेखा तिवारी ओम तिवारी,अशोक तिवारी आदि का विशेष योगदान रहा। यह जानकारी समिति के प्रदेश मीडिया प्रभारी कान्हा तिवारी ने दी।
सभी संस्रतनपुर स्थित सिद्ध पीठ भैरव मंदिर के मुख्य पुजारी एवं महंत पं जागेश्वर अवस्थी ने बताया कि उपनयन संस्कार हिन्दू धर्म में बताये गए 16 संस्कारों में से एक है। इसे सभी संस्कारों में सबसे महत्वपूर्ण माना गया है। प्राचीन समय में यह संस्कार वर्ण के आधार पर किया जाता था। यह संस्कार तब किया जाता है जब बालक ज्ञान प्राप्त करने योग्य हो जाता है। शिक्षा प्राप्त करने के लिए विद्यालय भेजने से पहले यह संस्कार किया जाता है। सामाजिक वर्ण व्यवस्था के अनुसार ब्राह्मण जाति के बालक को 8 वर्ष में, क्षत्रिय बालक को 11 वर्ष एवं वैश्य जाति के बालक का 15 वर्ष में उपनयन संस्कार किया जाता है। बच्चों के सर्वांगीण विकास के लिए उपनयन संस्कार अत्यंत आवश्यक है। इसका वैज्ञानिक महत्व भी है।
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