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चैत्र माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि 04 अप्रैल को शाम 04 बजकर 14 मिनट पर शुरू होगी और 05 अप्रैल को दोपहर 01 बजकर 28 मिनट पर समाप्त होगी। साधक 06 अप्रैल को सुबह 08 बजकर 37 मिनट तक पारण कर सकते हैं।इस व्रत में भगवान विष्णु के चतुर्भुज रूप की पूजा की जाती है। व्रती को एक बार दशमी तिथि को सात्विक भोजन करना चाहिए। मन से भोग-विलास की भावना त्यागकर भगवान विष्णु का स्मरण करना चाहिए। एकादशी के दिन सूर्योदय काल में स्नान करके व्रत का संकल्प करना चाहिए। संकल्प के उपरांत षोडषोपचार सहित श्रीविष्णु की पूजा करनी चाहिए। भगवान के समक्ष बैठकर भगवद कथा का पाठ अथवा श्रवण करना चाहिए। एकादशी तिथि को रात्रि में जागरण करने का बहुत महत्त्व बताया गया है।
पदम पुराण के अनुसार जो मनुष्य पापमोचिनी एकादशी का व्रत करते हैं उनका सारा पाप नष्ट हो जाता है। इस व्रत को करने से सहस्त्र गोदान का फल मिलता है। ब्रह्म हत्या, सुवर्ण चोरी, सुरापान और गुरुपत्नी गमन जैसे महापाप भी इस व्रत को करने से दूर हो जाते हैं अर्थात यह व्रत बहुत ही पुण्यमय है। ज्योतिषियों की मानें तो पापमोचनी एकादशी तिथि पर सुबह 09 बजकर 56 मिनट तक साध्य योग का निर्माण हो रहा है। इसके पश्चात, शुभ योग का निर्माण हो रहा है। ज्योतिष दोनों योग को शुभ मानते हैं। इन योग में पूजा-पाठ करने से शुभ फल प्राप्त होता है।