शिकायतकर्ता भगवंता साहू ने आरोप लगाया कि उनका अपहरण योगेश साहू और नरेंद्र बामार्डे द्वारा किया गया था। अभियोजन के अनुसार दोनों आरोपी वाहन दिखाने के बहाने भगवंता को ले गए। बाद में उसको जबरन एक स्थान पर रखकर यह मांग करते हुए कि उसकी पत्नी बेचे गए ट्रक के बकाया पैसे को उन्हें दे दे। ट्रायल कोर्ट ने आरोपियों को दोषी ठहराते हुए उन्हें धारा 364 ए के तहत आजीवन कारावास की सजा सुनाई। धारा 343 और 323/34 के तहत अतिरिक्त सजा भी दी।
CG High Court: अपहरण और धमकी साबित नहीं
कोर्ट के समक्ष मुख्य कानूनी मुद्दा आईपीसी की धारा 364 ए की व्याख्या से संबंधित था, जो फिरौती के लिए अपहरण से संबंधित है। इस धारा के तहत दोषसिद्धि के लिए,अभियोजन को संदेह से परे यह साबित करना होता है कि अपहरण के साथ फिरौती की मांग और जीवन की धमकी भी शामिल थी।हाईकोर्ट ने साक्ष्यों का बारीकी से विश्लेषण किया और अभियोजन के मामले में महत्वपूर्ण विसंगतियाँ पाईं। कोर्ट ने देखा कि अभियोजन धारा 364ए के तहत आवश्यक तत्वों को स्थापित करने में विफल रहा। विशेष रूप से उन्होंने नोट किया कि फिरौती की मांग या शिकायतकर्ता के जीवन की धमकी का कोई ठोस सबूत नहीं था।
मुख्य न्यायाधीश रमेश सिन्हा ने निर्णय देते हुए कहा, “अभियोजन संदेह से परे अपीलकर्ताओं के खिलाफ धारा 364 ए के तहत अपराध को साबित करने में विफल रहा है। निचली अदालत ने इस धारा के तहत अपीलकर्ता को दोषी ठहराया है, जो पूरी तरह से गलत है।” कोर्ट ने आगे स्पष्ट किया कि केवल हिरासत में रखना धारा 364 ए के तहत दोषसिद्धि के मानदंड को पूरा नहीं करता। कोर्ट ने अभियोजन गवाहों की गवाही में विरोधाभासों को भी उजागर किया, जिसने मामले को और कमजोर कर दिया।
गवाही असंगत और विरोधाभासी
निर्णय के दौरान कोर्ट ने
कई महत्वपूर्ण टिप्पणियाँ कीं। कोर्ट ने नोट किया कि शिकायतकर्ता की पत्नी से उसकी रिहाई के लिए स्पष्ट रूप से फिरौती का भुगतान करने की मांग नहीं की गई थी, जो धारा 364ए के तहत दोषसिद्धि के लिए एक महत्वपूर्ण तत्व है। मुख्य गवाहों, जिनमें शिकायतकर्ता और उसकी पत्नी शामिल हैं, की गवाही असंगत और विरोधाभासी पाई गई, जिसने अभियोजन की कथा पर संदेह पैदा कर दिया। कोर्ट ने जोर देकर कहा कि कथित अपहरण के दौरान शिकायतकर्ता के जीवन की धमकी का कोई ठोस सबूत नहीं था।