19 वर्ष पहले जन्म हुआ था पुत्र का
अपील में बताया गया कि उसके माता-पिता के बीच प्रेम सबंध था गर्भवती होने के बाद उसने गर्भपात से भी इनकार कर दिया था। इस कारण ही अपीलकर्ता का जन्म 12 नवबर 1995 को हुआ था। महिला ने फैमिली कोर्ट में अपने भरण पोषण को लेकर पुत्र के साथ संयुक्त रूप से मामला प्रस्तुत किया। लेकिन प्रतिवादी ने पिता होने से इंकार किया। इसके काफी समय बाद अप्रैल, 2017 में जब वादी पुत्र बीमार पड़ गया और वित्तीय संकट के कारण, वह अपने जैविक पिता के घर गया और इलाज के लिए आर्थिक मदद मांगी तो उसने मना कर दिया। Bilaspur High Court: बच्चे को मिलना चाहिए अधिकार
जस्टिस गौतम भादुड़ी और जस्टिस रजनी दुबे की डिवीजन बेंच ने सुनवाई के बाद माना कि वादी ने अपने जैविक पिता (प्रतिवादी नंबर 1) के खिलाफ पैतृक संपत्ति पर अपने अधिकार और शीर्षक की घोषणा के लिए मुकदमा दायर किया था और इस राहत के लिए परिसीमा अधिनियम में कोई सीमा निर्धारित नहीं है। जब भी बच्चों को उनके अधिकार और स्वामित्व से वंचित किया जाता है तो वे मामला दायर कर सकते हैं। अपील स्वीकार कर हाईकोर्ट ने युवक को वैध पुत्र घोषित किया गया। इसके साथ ही उसे सभी लाभों का हकदार घोषित किया गया है।
वित्तीय संकट में आर्थिक मदद मांगी तो जैविक पिता ने किया था इनकार
जिला सूरजपुर निवासी युवक ने परिवार न्यायालय सूरजपुर में एक सिविल वाद प्रस्तुत कर अपने जैविक माता- पिता की संतान घोषित करने की मांग की थी। पारिवार न्यायालय ने विशिष्ट राहत अधिनियम, 1963 की धारा 34 के तहत दायर इस आवेदन को खारिज कर दिया। कोर्ट ने कहा कि जिनकी सन्तान होने का वह दावा कर रहा, वे विवाहित नहीं हैं। इस निर्णय के खिलाफ युवक ने हाईकोर्ट में अपील की।