कोर्ट के इस आदेश से याचिकाकर्ता सहायक प्राध्यापकों को बड़ी राहत मिली है। मामले की सुनवाई जस्टिस नरेन्द्र कुमार व्यास की सिंगल बेंच मे हुई। प्रदेश के शासकीय महाविद्यालयो में पढा रहे 168 सहायक प्राध्यापकों ने नियुक्ति वर्ष 2012 से राज्य शासन द्वारा अकादमिक ग्रेड पे नहीं दिए जाने के विरुद्ध हाईकोर्ट में अपने अधिवक्ता के माध्यम से अलग-अलग 17 रिट याचिका दायर की थी।
Bilaspur High Court: सुनवाई के दौरान जस्टिस व्यास ने
सचिव उच्च शिक्षा विभाग को आदेशित किया कि याचिकाकर्ताओं के मामले की जांच के लिए यदि समिति का गठन नहीं किया गया है तो इस आदेश की प्राप्ति के एक माह के भीतर एक समिति का गठन किया जाए। यह समिति ग्रेड पे के लिए व्यक्तिगत रूप से याचिकाकताओं की पात्रता मानदंड का पता लगाएगी। यदि याचिकाकर्ताओं का सेवाकाल तथा शैक्षणिक अहर्ता ग्रेड पे के अनुदान के अनुरूप पाए जाते हैं तो उन्हे उसी तारीख से भुगतान किया जाएगा जिस तारीख से वे पात्रता रखते हैं। कोर्ट ने यह आदेश भी दिया कि उपरोक्त कार्यवाही तीन माह के भीतर पूर्ण करें।
Bilaspur High Court: यह है मामला
छत्तीसगढ़ लोक सेवा आयोग (पीएससी) द्वारा 878 सहायक प्राध्यापकों की भर्ती के लिए 20 मई 2009 को आवेदन आमंत्रित किया गया था। लिखित परीक्षा एवं साक्षात्कार के बाद चयनित सहायक प्राध्यापकों की नियुक्ति प्रदेश के विभिन्न शासकीय महाविद्यालयो में की गई थी। चयन के समय छत्तीसगढ़ शासन के 30 मार्च 2010 के आदेशानुसार सहायक प्राध्यापकों के लिए ग्रेड पे का प्रावधान किया गया था।
इसके अन्तर्गत नियमित सेवा के 4 साल बाद पीएचडी उपाधि धारकों को सात हजार ग्रेड पे देने का उल्लेख किया गया है। एमफिल उपाधि धारकों के लिए उक्त अवधि पांच वर्ष एवं अन्य के लिए छह वर्ष रखी गई है। लेकिन यूजीसी के नियमों को दरकिनार कर आज आठ साल बाद भी किसी भी पात्र सहायक प्राध्यापक को वरिष्ठ एवं प्रवर श्रेणी का वेतन नहीं दिया गया है।