एक हत्यारा अपने शिकार के भौतिक शरीर को नष्ट करता है, पर एक बलात्कारी असहाय महिला की आत्मा को अपमानित करता है।” चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा, जस्टिस रवींद्र कुमार अग्रवाल ने अपने फैसले में अपराध की गंभीरता और पीड़िता को हुए मानसिक नुकसान पर जोर दिया। न्यायालय ने दोहराया कि यौन उत्पीड़न की पीड़िता, विशेष रूप से नाबालिग की गवाही को, पुष्टि के अभाव में भी, महत्वपूर्ण महत्व दिया जाना चाहिए।
यह है मामला
घटना 22 नवंबर, 2018 की है। नाबालिग पीड़िता रायपुर में एक स्थानीय दुकान पर चॉकलेट खरीदने गई थी। दुकान के मालिक ने उसे मिठाई देने के बहाने अपने घर में बुलाया और फिर उसका यौन उत्पीड़न किया। पीड़िता की माँ ने देखा कि बच्ची बहुत देर बाद घर लौटी और बहुत परेशान थी। पूछताछ करने पर बच्ची ने घटना की जानकारी दी। मां ने तुरंत टिकरापारा पुलिस स्टेशन में शिकायत दर्ज कराई। उसकी लिखित शिकायत के आधार पर एक प्राथमिकी दर्ज की गई, और अगले दिन दुकान के मालिक को गिरफ्तार कर लिया गया। जांच में चिकित्सा परीक्षा, फोरेंसिक विश्लेषण और सीआरपीसी की धारा 164 के तहत दर्ज बयान शामिल थे।
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मामले में भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 376एबी और 376(2)(एन) के तहत मुकदमा चलाया गया, जो क्रमशः 12 साल से कम उम्र की नाबालिग के साथ बलात्कार और बलात्कार के बार-बार होने वाले कृत्यों से संबंधित हैं। बचाव पक्ष ने तर्क दिया कि परिवारों के बीच पहले से मौजूद विवाद के कारण आरोप गढ़े गए थे। हालांकि, अदालत ने इन दलीलों को खारिज कर दिया, यह देखते हुए कि पीड़िता की गवाही सुसंगत और
विश्वसनीय थी। ट्रायल कोर्ट ने पीड़िता की गवाही, मेडिकल रिपोर्ट और फोरेंसिक निष्कर्षों सहित प्रस्तुत साक्ष्य के आधार पर आरोपी को दोषी ठहराया था। हाईकोर्ट ने मामले की समीक्षा करने के बाद निचली अदालत के फैसले को बरकरार रखा और धारा 376एबी के तहत 20 साल के कठोर कारावास और धारा 376(2)(एन) के तहत अतिरिक्त 10 साल की सजा की पुष्टि की, जिसे एक साथ पूरा किया जाना था।