पिछले साल दिस बर में जहां किसान से डोर-टू-डोर दूध संग्रहण के भाव 40 रुपए घटकर मई में 25 रुपए पर आ चुके है। बाजार में दूध की मांग घटने के साथ मिलावटी दूध का कारोबार हमारे किसान और पशुपालक को जहर देने का काम कर रहे हैं। बीकानेर की मोदी डेयरी के निदेशक अरुण मोदी ने पत्रिका से बातचीत में कोरोना संकट और लॉकडाउन में बदले डेयरी व्यवसाय और भविष्य के हालात पर बेबाक राय रखी।
अरुण मोदी के अनुसार वर्तमान में पशुओं के फीड में कमी और गर्मी के चलते पशु से दूध का उत्पादन कम हुआ है। एेसे में पशुपालक और किसान के लिए यह घाटे का सौदा बनता जा रहा है। बीकानेर समेत राजस्थान में पशुपालन ही एग्रीकल्चर का आधार है। कोरोना संकट से इस कारोबार को भारी क्षति पहुंची है। मसलन पिछले साल इन्हीं दिनों में जहां दूध 40 रुपए लीटर तक डोर-टू-डोर संग्रहण किया जा रहा था। आज भाव 25 से 28 रुपए लीटर पर है।
मोदी के अनुसार ‘भय बिन होय ना प्रीत’ के वाक्य को आत्मसात करना होगा। कोरोना का संकट अभी लंबा चलेगा। जिस तरह से पशुपालक को क्षति हो रही है भविष्य में शुद्ध दूध किसी भी कीमत पर मिलना मुश्किल हो जाएगा। कोरोना से बचाव के लिए सबसे जरूरी मनुष्य के शरीर में रोग प्रतिरोधक क्षमता यानि इ युनिटी बढ़ाने की जरूरत है। जिसके लिए दूध सबसे कारगार है। आज सोशल डिस्टेंस के साथ फैक्ट्रियों में कामगारों को रोजाना तीन से चार गिलास दूध पिलाने पर हम कोरोना से लड़ पाएंगे।
मोदी के अनुसार कोरोना की वेक्सीन आने पर भी जल्द ही हालात सामान्य नहीं होंगे। कोरोना के साथ जीने, व्यापार और काम करने की जीवनचर्या को अपनाना होगा। उन्होंने अपने मोदी डेयरी के व्यवसाय का उदाहरण देते हुए बताया कि कोरोना से पहले दूध, घी, मक्खन और मिल्क पाउडर के स्टॉक को बहुत कम रखते थे। दूध स्टॉरेज के कोल्ड स्टोर भी उनके पास तीन थे। जिन्हें अब बढ़ाकर छह कर दिया है। मिल्क पाउडर की डिमांड लगातार बढ़ रही है। वह देश की नामी दूध उत्पादक क पनियों को मिल्क पाउडर तैयार कर दे रहे हैं।
दूध उत्पादों के व्यवसाय का भविष्य उज्ज्वल
मोदी ने बताया कि पहले मिल्क पाउडर 335 रुपए था, जो लॉकडाउन के चलते 225 रुपए किलो हो गया। घी और मक्खन के भाव भी 100 रुपए प्रति किलो तक कम हुए हैं। लॉकडाउन आगे नहीं बढ़ता है तो दूध के भाव 1 जून से बढ़ने शुरू हो जाएंगे। हालांकि दूध उत्पादों के व्यवसाय का भविष्य उज्ज्वल है।
किसान को पूरा हक मिले
मोदी के अनुसार किसान को ऋण देने की बजाय उसके दूध उत्पाद के भाव ज्यादा देने की तरफ सरकार को कदम बढ़ाने चाहिए। अभी डेयरियां भाव के मामले में शोषण कर रही हैं। जांच की पुख्ता व्यवस्था नहीं होने से मिलावटी दूध की आपूर्ति हो रही है।