इसी दौरान आसपास के गांवों के लोगों और उनके रिश्तेदारों के भविष्यवाणी जानने के लिए फोन आने शुरू हो गए। इस परंपरा से पिछले छह दशक से जुड़े विनोद ओझा ने बताया कि देशनोक से करीब 140 साल पूर्व माहेश्वरी, ओझा समाज के साथ सर्व समाज के लोग यहां पर आए और गंगाशहर की स्थापना हुई। स्थापना के समय से ही होलिका दहन का कार्यक्रम लगातार यहां चल रहा है। उन्होंने बताया कि इस परंपरा की शुरुआत पंडित भोमाराम ओझा की ओर से करीब 140 साल पूर्व की गई, जो आज भी निरंतर जारी है।
क्षेत्र के त्रिलोक चन्द भठ्ठड़ ने बताया कि सर्वसमाज के लोग यहां पर एकत्रित होते हैं और पिछले साल जमीन में दबी पानी से भरी मटकी को निकालते हैं। इसके बाद फिर उसी समय विधि विधान से पूजा अर्चना के साथ नई मटकी को करीब 5 फीट गहरे गड्ढे में गाड़ने की परंपरा पिछले कई दशकों से लगातार चल रही है। इसके बाद वहां मौजूद लोगों ने विधि विधान से गणपति, वरुण देवता, विष्णु भगवान की पूजा अर्चना के साथ मटकी पूजन किया और उसको उसी स्थान पर अगले होलिका दहन तक के लिए जमीन में पांच फीट गहरा गाड़ दिया गया।