जेठाराम की शहादत के समय पत्नी भंवरी देवी गर्भवती थी और कुछ समय बाद पुत्र हंसराज का जन्म हुआ। भंवरी देवी उस समय इस हद तक मानसिक तनाव में थी कि नवोदय विद्यालय में नौकरी का नियुक्ति पत्र आने के बाद भी ज्वॉइन नहीं कर पाई। इसके बाद जीवन सामान्य होने पर पेंशन व खेतीबाड़ी के माध्यम से जीवन यापन किया।
जेठाराम के शहीद होने की खबर उनकी माता झम्मूदेवी को मिली, तो उनको इस पर यकीन ही नहीं हुआ। वह वर्षों से आज भी जेठाराम की राह देखती रहती हैं कि उनका पुत्र एक दिन जरूर लौटकर वापस आएगा। एक पुत्र को खोने के बाद उन्होंने बड़े पुत्र हरभजराम को भी होमगार्ड की नौकरी छुड़वा दी कि कहीं दूसरे पुत्र को नहीं खो दें।
पुत्र हंसराज बेनीवाल ने बताया कि लंबे समय से उनका परिवार न्याय के इंतज़ार में था। सूचना व विभागीय संचार के अभाव में परिवार भी इतने वर्षों तक अनभिज्ञ रहा। उन्होंने दिल्ली हाईकोर्ट अधिवक्ता अशक्रीत तिवारी व सुनील बेनीवाल के नेतृत्व में कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। जहां सुनवाई चलने के बाद परिवार को शहादत प्रमाण-पत्र मिला।
बज्जू उपखंड के मिठड़िया निवासी जेठाराम बिश्नोई पश्चिम बंगाल में पानीतार पोस्ट पर तैनात थे और 15-16 दिसम्बर 1993 की मध्य रात को जेठाराम व अन्य जवानों को इच्छामती नदी पर नाव से पेट्रोलिंग डयूटी के लिए भेजा। इस दौरान नाव पलटने से जेठाराम वीरगति को प्राप्त हो गए और राष्ट्र के लिए सर्वोच्च बलिदान दिया। अब जेठाराम के परिवार को शहीद के रूप में मिलने वाला पैकेज भी मिलेगा।
डायरी में लाल चौक में तिरंगा फहराने का वर्णन
बड़े भाई हरभजराम ने बताया कि उस समय बीएसएफ के अधिकारी जेठाराम की अस्थियां लेकर उनके घर आए तथा शहादत की सूचना के साथ जेठाराम की निशानी के रुप में कपड़े, कागज, पत्र तथा उनकी डायरी सुपुर्द की। जेठाराम डायरी लिखने की आदत थी। इसमें एक पन्ने में जेठाराम ने श्रीनगर में वर्ष1992 में लाल चौक में तिरंगा फहराने को लेकर एकता यात्रा का वर्णन किया जिसमें घरों से गोलियां चलने की बात तक लिखी गई।