मुकाम देश का ऐसा तीर्थ स्थल है, जहां नशा पूरी तरह प्रतिबंधित है। मेला परिसर में बीड़ी, सिगरेट, तंबाकू, गुटका तक का कोई सेवन नहीं करता। मुकाम पीठाधीश्वर स्वामी रामानंद महाराज के मुताबिक मुकाम स्माधि स्थल आते ही श्रद्धालु नशे से दूर हो जाते हैं। जब तक मेले में रहते हैं, नशे की किसी चीज को हाथ तक नहीं लगाते। ऐसा करीब 500 साल से चला आ रहा है।
मुक्तिधाम मुकाम में बिश्नोई समाज के गुरु जंभेश्वर महाराज के समाधि स्थल पर रविवार को फाल्गुनी मेले का समापन हुआ। इस दौरान शनिवार और रविवार को पांच लाख से अधिक श्रद्धालुओं ने जांभोजी के धोक लगाई। मुकाम पीठाधीश्वर स्वामी रामानंद महाराज व अखिल भारतीय बिश्नाई महासभा के राष्ट्रीय प्रधान देवेंद्र बूडि़या के मुताबिक 1200 सेवक दल के कार्यकर्ताओं ने मेले की व्यवस्था संभाली।
यहां पर्यावरण शुद्धि के लिए मंदिर परिसर और समराथल धोरा पर चार बड़े हवन-कुंड बने हुए हैं। इनमें करीब 50 मण देशी घी और इतनी ही मात्रा में खोपरे की आहुति दी गई। हवन कुंड से निकली घी-खोपरे की खुशबू से 10 किलोमीटर की परिधि का क्षेत्र महक उठा।
मुकाम में आसोज व फाल्गुनी अमावस्या पर मेला भरता है। ये मेले करीब 500 साल से भी अधिक समय से लग रहे हैं। गुरु जंभेश्वर महाराज ने यहां समाधि ली थी। ऐसे में इसे मुक्तिधाम मुकाम भी बोलते हैं। करीब 20-22 साल पहले मंदिर का जीर्णोद्धार किया गया। इसके बाद से दोनों मेलों में देशभर से लाखों की तादाद में श्रद्धालु आ रहे है। करीब 539 साल पहले गुरु जंभेश्वर महाराज ने बिश्नोई समाज की स्थापना की थी।