लोक मान्यता : इसलिए चढ़ाते हैं प्याज और दाल
मंदिर व्यवस्था में जुटे नरेंद्र शर्मा बताते हैं, इसके पीछे अलग-अलग मान्यताएं हैं। बताया जाता है कि करीब एक हजार साल पहले यहां गोगाजी और मोहम्मद गजनवी के बीच युद्ध हुआ था। गोगाजी ने विभिन्न स्थानों से सेनाएं बुलाई थीं। सैनिक अपने साथ रसद में प्याज और दाल भी लेकर आए थे। युद्ध में गोगाजी वीरगति को प्राप्त हुए। वापसी में सैनिकों ने प्याज और दाल गोगाजी की समाधि पर ही अर्पित कर दिए। तभी से इस जगह प्याज और दाल चढ़ाने की परंपरा शुरू हो गई। बुजुर्ग उनके घोड़े के लिए भी दाल चढ़ाने की बात कहते हैं। मंदिर में धोक देने के बाद वहीं बाहर मंडली में हवन कर उसमें भी प्याज आदि चढ़ाते हैं।
तीन दिन में पांच लाख से ज्यादा ने लगाई धोक
मंदिर में हिंदू और मुस्लिम (चायल) दोनों पुजारी पूजा करवाते हैं। साम्प्रदायिक सद्भाव की अनूठी मिसाल इस मंदिर में हिंदू, मुस्लिम और सिख तीनों भक्त शीश नवाते हैं। तीन दिन में पांच लाख से ज्यादा भक्तों ने पहले श्रीगोरख धूणा में धोक और बादमें विशाल निशानों के साथ गोगाजी मंदिर में पूजा अर्चना की। चायल पुजारी जमशेद ने बताया कि उत्तर भारत का एक मात्र ऐसा मंदिर हैं जहां हिन्दू और मुस्लिम दोनों पुजारी सेवा करते हैं। हिन्दू पुजारी कमल शर्मा ने बताया कि मेले के दौरान देवस्थान विभाग के पुजारी भी पूजा अर्चना-आरती करते हैं।