बीकानेर

महिलाओं के इस रोजगार पर कोहरे के कारण आया संकट, देश के बाकी राज्यों में है 99% डिमांड

Rajasthan News: मौसम में नमी का बने रहना और कोहरा और बादलों की ओट में सूर्य का छिपे रहना है। पापड़ सूखने में तो समय लग ही रहा है। इससे जुड़े सैकड़ों लोगों का रोजगार संकट में आ गया है।

बीकानेरJan 21, 2025 / 11:55 am

Akshita Deora

Bikaneri Papad Business: मौसम चाहे कोई भी हो। इसकी मार से कोई भी प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकता। चाहे पशु-पक्षी हों या आम जन जीवन। सर्दी का मौसम भी कुछ-कुछ ऐसा ही है। फसलों को नमी से फायदा होता है, तो ज्यादा सर्दी पाले के रूप में कहर बन कर किसानों पर टूटती है। मौसम की ऐसी मार से भला कुटीर उद्योग कैसे बच सकता है। फिलहाल, तो बीकानेर का पापड़ उद्योग इसकी चपेट में है। वजह मौसम में नमी का बने रहना और कोहरा और बादलों की ओट में सूर्य का छिपे रहना है। पापड़ सूखने में तो समय लग ही रहा है। इससे जुड़े सैकड़ों लोगों का रोजगार संकट में आ गया है। खास तौर से महिलाओं का। जिनके घर का चूल्हा-चौका पापड़ बेलने से ही चलता है।

पौ-फटते ही करने लगती हैं सूर्य का इंतजार

इस काम से जुड़ी महिलाएं आंख खुलते ही आकाश की ओर झांकती हैं कि कोहरा तो नहीं है। सर्दी होने तथा घना कोहरा होने की वजह से पापड़ सूखने में समय लगता है। इस वजह से चकले पर बेलन की आवाजें भी इन दिनों कम आने लगी हैं। एक अनुमान के मुताबिक, सर्दी में पापड़ का धंधा मंदा होने से प्रतिदिन करीब सवा करोड़ रुपए का व्यवसाय प्रभावित हो रहा है।
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सौ से ढाई सौ टन उत्पादन रोज

घना कोहरे व कमजोर धूप के चलते कारखानों में भी काम प्रभावित हुआ है। करीब सौ टन पापड़ तैयार नहीं हो पा रहे हैं। करीब सवा करोड़ रुपए के व्यवसाय पर असर पड़ा है। मौसम साफ होने एवं गर्मी के दौरान प्रतिदिन ढाई सौ टन माल तैयार हो जाता है।

बीकानेर में खपत

खास बात यह है कि बीकानेर में तैयार होने वाले पापड़ की बीकानेर में खपत महज एक फीसदी के आसपास ही है।

यहां पर पापड़ के छोटे-बड़े करीब 400 कारखाने हैं। इन सभी कारखानों में जितना भी पापड़ तैयार होता है, उसका 99 फीसदी माल देश के सभी राज्यों में जाता है। इस समय शादियों के सीजन में पापड़ की मांग भी अधिक है।

लाखों श्रमिक जुड़ेहैं धंधे में

पापड़ के धंधे में डेढ़ लाख श्रमिक तो सीधे-सीधे जुड़े हुए हैं। यह वे श्रमिक हैं, जो सुबह चार बजे ही कारखानों में मसाला तैयार करने एवं लोइयां बनाने के काम में जुट जाते हैं। पापड़ बेलने वाली महिलाओं की संख्या भी सैकड़ों में है। शहर के अलावा गांव-गांव में भी महिलाएं पापड़ बनाती हैं। इस समय सर्दी के चलते उन्होंने भी इस काम से दूरी बना रखी है।
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सूखने के बाद होती है पैकिंग


यह सही है कि इस समय सर्दी एवं घने कोहरे से पापड़ व्यवसाय कमजोर पड़ा है। क्योंकि पापड़ सूखने के लिए मौसम साफ होना आवश्यक है। पापड़ पूरी तरह से नहीं सूखता, तो उसमें कीड़े पड़ जाते हैं। बदबू मारने लगता है और काले भी पड़ जाते हैं। करीब सौ टन का काम इस समय नहीं हो पा रहा है।
विपिन मुशर्रफ, पापड़ व्यवसायी

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