scriptDiwali 2023: बीकानेर में अनूठी रस्म, हर घर में जलाते है हिंडोळ | Diwali 2023: Unique Rituals, Hindol Tradition Is Performed On Diwali Day In Bikaner, know Reason | Patrika News
बीकानेर

Diwali 2023: बीकानेर में अनूठी रस्म, हर घर में जलाते है हिंडोळ

Diwali 2023: बीकानेर में दीपावली से जुड़ी एक अनूठी रस्म है, जिसका निर्वहन शहरवासी दीपावली के दिन करते हैं। यह है हिंडोळ परंपरा।

बीकानेरNov 12, 2023 / 08:57 am

Nupur Sharma

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विमल छंगाणी
Diwali 2023: बीकानेर में दीपावली से जुड़ी एक अनूठी रस्म है, जिसका निर्वहन शहरवासी दीपावली के दिन करते हैं। यह है हिंडोळ परंपरा। दीपावली पूजन के बाद घर-परिवार के पुरुष सदस्य जलते हुए हिंडोळ घर से लेकर निकलते हैं व नजदीकी मंदिर तक पहुंचते हैं। मंदिर के बाहर खड़े होकर घर-परिवार की सुख समृद्धि की कामना करते हैं। दीपावली पर लक्ष्मी पूजन सामग्री की खरीदारी के साथ-साथ लोग हिंडोळ परंपरा के लिए आवश्यक बाजरा के पौधे की लकड़ी भी खरीदते हैं, जिससे हिंडोळ तैयार किया जाता है। ज्योतिषाचार्य पंडित राजेन्द्र किराडू के अनुसार धर्म ग्रंथों में उल्कादान अर्थात हिंडोळ का उल्लेख मिलता है। इस बार 12 नवंबर को इस परंपरा का निर्वहन होगा।

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पितरों के मार्ग प्रशस्त के लिए हिंडोळ
पंडित किराडू के अनुसार, ब्रह्म पुराण के अनुसार आश्विन कृष्ण श्राद्ध पक्ष पितृ लोक से पितर पृथ्वी लोक पर आते हैं। धार्मिक मान्यता अनुसार कार्तिक मास की अमावस्या के दिन पुन: पितृ लोक को जाते हैं। उस समय उन्हें मार्ग दिखाने के लिए उल्का दान अर्थात हिंडोळ जलाकर मार्ग दिखाया जाता है। इसका उल्लेख तुला संस्थे सहस्त्रांशे प्रदोषे भूत दर्शयो:, उल्का हस्ता नरा: कुर्यु: पितृणां मार्ग दर्शनम श्लोक में मिलता है। बाजरा के पौधे से सिट्टा अलग कर तीन से पांच फीट लंबी लकड़ी का उपयोग हिंडोळ के लिए किया जाता है। दीपावली के दिन सूती वस्त्र को बटकर लकड़ी के एक ओर बांध दिया जाता है। कपड़े की चार लडियां बनाकर डोरी से बांध दी जाती हैं। कपड़े को तेल में भिगोकर रखा जाता है। दीपावली पूजन के बाद तेल में भीगे हुए कपड़े को जलाया जाता है। जलते हुए हिंडोळ को पुरुष सदस्य घर के नजदीकी मंदिर तक लेकर जाते हैं। जलते हुए हिंडोळ को मंदिर के बाहर रख दिया जाता है। पुरुष सदस्य घर-परिवार की सुख समृद्धि की कामना करते हैं। हिंडोळ को वापस घर लेकर नहीं आते हैं। मंदिरों के आगे दीपावली के दिन जलते हुए हिंडोळ की बड़ी संख्या रहती है।

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