कोर कमेटी के अधिकांश लोगों ने दिनेश कश्यप के नाम पर सहमति जताई है। पार्टी सूत्रों की मानें तो भाजपा बस्तर में खोई हुई जमीन वापस पाने के लिए निकाय और पंचायत चुनाव से पहले कश्यप परिवार को नेतृत्व सौंपने का मन बना रही है। बस्तर के जिलाध्यक्ष का कद संभाग के बाकी जिलाध्यक्षों की तुलना में अघोषित रूप से बड़ा माना जाता है।
जगदलपुर को ही संभाग की राजनीति की धुरी माना जाता है। विधानसभा और लोकसभा चुनाव में मिली करारी हार के बाद एक बार फिर भाजपा के नेतृत्व ने कश्यप परिवार का रुख किया है। दिनेश कश्यप को लोकसभा का टिकट नहीं दिया गया था। वे चुनाव नहीं लड़ पाए इसलिए अपराजित हैं। बस्तर की राजनीति में उनकी पारिवारिक पृष्ठभूमि भी उनके साथ है।
संगठन में लाया जा रहा बदलाव
भाजपा की छत्तीसगढ़ में 15 साल तक सरकार रही। इस दौरान यहां भाजपा का संगठन सत्ता के कंधे पर सवार रहा। भाजपा के तमाम आला नेता मंत्री और जनप्रतिनिधियों के भरोसे अपनी रजनीति चमकाते रहे। अब जबकि पूरे प्रदेश में भाजपा हाशिए पर है तो संगठन को बस्तर में भी नए सिरे से खड़ा करने का काम किया जा रहा है। भाजपा जिलाध्यक्ष समेत सारे मंडल अध्यक्षों के पद पर नए नेताओं को मौका देना इसी कवायद का हिस्सा है।
सत्ता की चाबी बस्तर में इसलिए फोकस यहीं
प्र देश की सत्ता की चाबी बस्तर में है। ऐसी चर्चा राजनीतिक गलियारों में आम है। इस बात को भाजपा और कांग्रेस दोनों ही राजनीतिक दल बखूबी समझते हैं। दोनों ही दलों के प्रदेश अध्यक्ष भी बस्तर से ही हैं। ऐसे में यहां बड़ा आदिवासी चेहरा तैयार करने का काम दोनों ही दल कर रहे हैं। इस कड़ी में दिनेश कश्यप को बस्तर जैसे अहम जिले की कमान सौंपने की तैयारी की जा रही है। बीते लोस चुनाव में भी वे सक्रिय रहे थे।
निकाय और पंचायत चुनाव में बड़ी चुनौती
सल 2018 में हुए विधानसभा के चुनाव में आई कांग्रेस की सुनामी में भाजपा प्रदेश से साफ हो गई थी। बस्तर में भी भाजपा को महज एक सीट मिली। इस बीच दंतेवाड़ा में उपचुनाव हुए और बस्तर की 12 में से 12 सीट पर कांग्रेस का कब्जा हो गया। बस्तर में कांग्रेस सेफ मोड में है। फिर भी पार्टी के नेता अब भी आक्रामक मुद्रा में हैं। इसका नुकसान लगातार भाजपा को हो रहा है।
दंतेवाड़ा गंवाने के बाद भाजपा ने चित्रकोट का मौका भी जाने दिया। अब आगामी समय में नगरीय निकाय और पंचायत के चुनाव हैं। भाजपा नगरीय निकाय और पंचायत में अपनी बची-कुची साख बचाना चाहती है। इसलिए पार्टी कश्यप परिवार की ओर झुक रही है। भाजपा के पास अब खोने के लिए कुछ बाकी नहीं रह गया है। ऐेसे में यह कदम अहम साबित हो सकता है।