जब लक्ष्मी अग्रवाल को ठुकरा दिया था सबने, खाने और काम को हो गई थी मोहताज, अक्षय बने थे फरिश्ता, ऐसे की मदद
और लोगों से अलग फिल्म के मायने…
इनमें प्रमोदिनी राउल, ममता, रोजलीन, शुचिस्मिता व कायनात परवीन शामिल हैं। इन महिलाओं के लिए फिल्म के मायने और लोगों से अलग है। छपाक की कहानी इन सभी के लिए अपनी कहानी जैसी है, जो संघर्ष और जीवन जीने की ईच्छा को बयां करती है।
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साथियों ने दिया फिल्म देखने में साथ…
सभी ने छपाक को अच्छा बताया। उनका कहना है कि उन्हें अपने संघर्ष के दिन याद आ गए। प्रमोदिनी कहती हैं कि पहले ही मन बना चुके थे कि छपाक देखनी है। हम सभी इकट्ठे हुए और चल पड़े। इन सबको एक साथ फिल्म दिखाने में प्रमोदिनी के पति सरोज साहू की भूमिका रही। टिकट खरीदने से लेकर पांचो को ले जाना व फिर फिल्म दिखाकर वापस घर छोड़ना सरोज के ही बूते की बात थी। प्रमोदिनी की मां कविता राउल ने इन सबके खाने पीने का इंतजाम किया।