अश्विन माह के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को शरद पूर्णिमा कहा जाता है। इस बार शरद पूर्णिमा 9 अक्टूबर को है। कहते हैं कि इस दिन लक्ष्मी की पूजा करने से सभी प्रकार के कर्जों से मुक्ति मिलती है, इसलिए इस दिन लक्ष्मीजी की पूजा करनी करनी चाहिए। इसलिए इसे कर्जमुक्ति पूर्णिमा भी कहते हैं। ऐसा कहा जाता है कि इस दिन मां लक्ष्मी रात में धरती पर विचरण करती हैं। इस मौके पर शहर के कृष्ण मंदिरों में विशेष आयोजन होंगे। ठाकुरजी को सफेद वस्त्रों में विशेष शृंगार कराया जाएगा तो वहीं धवल चांदनी में उन्हें विराजित किया जाएगा।
मध्यप्रदेश के पंडित राजेंद्र पुरोहित ने बताया कि आज के दिन चंद्रमा की पूजा अर्चना करने के साथ ही खीर का भोग भगवान के साथ चंद्रमा को लगाया जाता है, यानी चंद्रमा जब पूर्ण रूप से निकल आता है, तब चंद्रमा की रोशनी में खीर को रखा जाता है, जिससे चंद्रमा की किरणें अमृत के रूप में बरसती है, फिर इस प्रसाद का वितरण किया जाता है, माना जाता है कि इसे गृहण करने से आरोग्य, सुख समृद्धि आती है। कन्याएं इस दिन अच्छे वर की कामना को लेकर व्रत उपवास रखती है।
आज रात को चंद्रमा निकलने पर राजधानी भोपाल के सभी कृष्ण मंदिरों, माता मंदिरों में खीर का भोग भगवान को लगाया जाएगा, इसी के साथ पूजा अर्चना कर चंद्रमा को भी खीर का भोग लगाया जाएगा।
शरद पूर्णिमा से जुड़ी कथा और प्रथा
एक पौराणिक कथा के अनुसार, धनंजय नाम का एक राजा था, जो मगध नामक देश में रहता था। बारिश की कमी और विभिन्न बीमारियों के कारण उसके देश को भारी आर्थिक संकट का सामना करना पड़ा। अपने मुख्य पुजारी के सुझाव के अनुसार, रानी और राजा ने शरद पूर्णिमा पर उपवास किया और पूरी रात जागते हुए देवी लक्ष्मी और साथ ही चंद्र भगवान की पूजा की। नतीजन, चंद भगवान ने उनके देश को रोग मुक्त जीवन के लिए अपनी दिव्य किरणों के साथ आशीर्वाद दिया और देवी लक्ष्मी ने उन्हें समृद्ध जीवन के लिए आशीर्वाद दिया। उस दिन से लोग चंद्रमा और देवी लक्ष्मी की पूजा करने के लिए एक दिन का उपवास रखते हैं।
एक अन्य लोकप्रिय कथा के अनुसार, शरद पूर्णिमा की रात को भगवान कृष्ण ने राधा और वृंदावन की गोपियों के साथ दिव्य रासलीला की थी। बृजभूमि की यह प्रचलित कथा है कि कृ ष्ण की बांसुरी के जादुई संगीत से गोपियां जाग जाती थीं। शरद पूर्णिमा की रात वे अपने घरों से निकलकर जंगल में कृ ष्ण के साथ नृत्य करने के लिए निकल पड़ती थीं। भगवान कृ ष्ण प्रत्येक गोपी के साथ नृत्य करने के लिए खुद को दोहराते थे। यह भी माना जाता है कि राधा और गोपियों के साथ भगवान कृ ष्ण के भक्ति रास ने ब्रह्म लोक की एक दिव्य रात की सीमा तक बढ़ा दी जो हजारों मानव वर्षों के बराबर है। भगवान कृष्ण के भक्त पूर्णिमा की पूरी रात अपने प्रियजनों के साथ मनाते हैं। ऐसा माना जाता है कि इस रात चंद्रमा की किरणें अमृत का काम करती हैं और सभी जीवों के लिए अपनी ताकत और सहनशक्ति बढ़ाने के लिए फायदेमंद होती हैं। शरद पूर्णिमा पर खीर बनाने की प्रथा है, जिसे चांद की रोशनी में रखा जाता है और सुबह खाया जाता हैं।
पृथ्वी पर आती हैं मां लक्ष्मी
शरद पूर्णिमा की रात को श्री कृष्ण के रास से भी जोड़ा जाता है। इसलिए इस दिन को रास पूर्णिमा भी कहते हैं। इस दिन अविवाहित कन्याएं व्रत रखती हैं और चन्द्र देव की पूजा अर्चना करती हैं। माना जाता है कि व्रत रखने से कन्याओं को मनचाहे वर की प्राप्ति होती है और सुख-सौभाग्य में वृद्धि होती है।
ऐसा माना जाता है की शरद पूर्णिमा के दिन माता लक्ष्मी अपने वाहन उल्लूू पर सवार होकर आती हैं और लोगों की मनोकामनाएं पूरी करती हैं। कई लोग माता लक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए उनका विशेष पाठ भी करते हैं। इन सभी कारणों की वजह से शरद पूर्णिमा की रात को बेहद खास माना जाता है।
-इस दिन चंद्रमा अपने सभी गुणों के साथ पृथ्वी के बहुत करीब आता है और अपनी दिव्य किरणें सभी भक्तों को प्रदान करता है।
-ऐसा माना जाता है कि जिन जोड़ों को संतान की प्राप्ति नहीं हुई है, उन्हें मन वांछित परिणाम प्राप्त करने के लिए इस व्रत का पालन करना चाहिए।
-इस दिन व्रत करने वाली अविवाहित कन्याओं को योग्य वर की प्राप्ति होती है।
-वैदिक ज्योतिष के अनुसार इस दिन पड़ने वाली चांदनी से आध्यात्मिक और शारीरिक शक्ति में वृद्धि होती है, जो एक सुखी और रोगमुक्त जीवन जीने के लिए आवश्यक है।
-ब्रह्म पुराण और स्कंद पुराण जैसे पवित्र ग्रंथों की शिक्षाओं के अनुसार, शरद पूर्णिमा की रात में देवी लक्ष्मी पृथ्वी पर अवतरित होती हैं। इसलिए, भक्त उनका आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए धन की देवी लक्ष्मी की पूजा करते हैं।
जानिए, क्या है खीर के पीछे विज्ञान और विधान
पौराणिक मान्यता : पौराणिक मान्यता है कि शरद पूर्णिमा की रात आसमान से अमृत वर्षा होती है। खीर को खाने वाले व्यक्ति के शरीर से सारे रोग और दुख समाप्त हो जाते हैं। एक मान्यता है कि शरद पूर्णिमा के दिन से सर्दियों का आगमन हो जाता है और खीर गर्म होती है। इसलिए भी इस दिन खीर का सेवन करना अच्छा माना जाता है।
वैज्ञानिक कारण: रात में चांदी के बर्तन में खीर रखने से रोग-प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है। इसलिए हो सके तो शरद पूर्णिमा की रात को खीर चांदी के बर्तन में रखनी चाहिए। ज्येष्ठ, आषाढ़, सावन और भाद्रपद मास में शरीर में पित्त का जो संचय हो जाता है, शरद पूर्णिमा की शीतल धवल चांदनी में रखी खीर खाने से पित्त बाहर निकलता है।
शरद पूर्णिमा को हिंदू धर्म में बहुत महत्त्वपूर्ण माना जाता है। अश्विन मास में पड़ने वाली पूर्णिमा की तिथि को शरद पूर्णिमा कहा जाता है। इस दिन लोग विधि विधान से पूजा कर भगवान का आशीर्वाद लेते हैं। अश्विन मास की यह पूर्णिमा का अपने आप में काफी महत्व है। इस दौरान चावल की खीर खाने की परंपरा है।
भारत के विभिन्न क्षेत्र इस पवित्र त्योहार को अलग-अलग नामों से मनाते हैं जैसे शरद पूर्णिमा, कोजागिरी पूर्णिमा, कुमार पूर्णिमा, नवन्ना पूर्णिमा, कौमुदी पूर्णिमा आदि। चावल की विशेष खीर के साथ भगवान चंद्रमा की पूजा करना और इस खीर को चांदनी में रखना एक पारंपरिक प्रथा रही है।