मध्यप्रदेश के कानून मंत्री पीसी शर्मा, घटना की निंदा करते हैं और आरोपियों के खिलाफ कड़ी से कड़ी कार्रवाई का भरोसा देते हैं। हालांकि इस दौरान वह एक विवादित बयान भी देते हैं। घटना के बाद विपक्ष मध्यप्रदेश के गृहमंत्री से इस्तीफे की मांग करता है पर गृहमंत्री के बचाव में प्रदेश के कानून मंत्री पीसी शर्मा कहते हैं कि हत्या यूपी में हुई है इसलिए इस घटना पर हमारे गृहमंत्री को नहीं बल्कि यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ को इस्तीफा देना चाहिए। ये पहला मौका नहीं है जब कमलनाथ के मंत्रियों ने इस तरह के विवादस्पद बयान दिए हो। इन सब बयानों के बीच ऐसा कहा जा सकता है कि कमलनाथ अपनी ही सरकार पर घिर गए हैं।
युवा नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया को दरकिनार कर कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने कमलनाथ को मध्यप्रदेश की कमान सौंपी। इसके बाद ऐसा लगा कि छिंदवाड़ा से नौ बार के सांसद और केन्द्र में कई अहम मंत्रालय की जिम्मेदारी संभाल चुके कमलनाथ प्रदेश की अल्पमत सरकार को बेहतर तरीके से चला लेंगे। लेकिन अनुभवी कमलनाथ के सामने राज्य की राजनीति के अनुभव की कमी झलकने लगी। कमलनाथ ना तो दो महीने में गुटबाजी को खत्म कर पाए और ना ही सरकार पर सही तरह से नियंत्रण रख पाए। कमलनाथ के सीएम बनने के बाद से प्रदेश में घटनाएं बढ़ गई हैं तो सरकार हर बार व्यवस्था परिवर्तन को लेकर अपना पल्ला झाड़ लेती है। लेकिन क्या व्यवस्था परिवर्तन की बात करके सरकार अपनी जिम्मेदारियों से भाग सकती है?
ख़बरें हैं कि राज्य में सत्ताधारी कांग्रेस के विधायक अपनी ही सरकार से नाराज़ हैं। करीब 25 विधायकों ने कमलनाथ सरकार के मंत्रियों से नाराजगी जाहिर करने के लिए एक हो गए हैं। इन विधायकों ने हाल ही में सीएम कमलनाथ से मुलाकात भी की थी। वहीं, दसरी तरफ दिग्विजय सिंह का सरकार में बढ़ता दखल भी अब खुलकर सामने आने लगा है। दिग्विजय और सिंधिया के बीच पहले से ही कड़वाहटों की खबरें हैं। सरकार में दिग्विजय सिंह का दखल लगातार बढ़ रहा है चाहे वह मुख्य सचिव की नियुक्ति हो या फिर पुलिस महानिदेशक की। माना जा रहा है कि दोनों ही अधिकारी दिग्विजय सिंह के करीबी हैं और आज कमलनाथ सरकार में अहम पद पर बैठे हैं।
मध्यप्रदेश की कमलनाथ सरकार लोकसभा चुनाव से पहले लगातार ट्रांसफर कर रही है। प्रदेश में अब तक करीब 800 अधिकारियों के तबादले हो चुके हैं. अभी भी अधिकारियों और कर्मचारियों के तबादले लगातार जारी है। नेता प्रतिपक्ष गोपाल भार्व ने ट्रांसफर पर सवाल उठाते हुए कहा था कि भाजपा सरकार ने 15 साल में जितने ट्रांसफर नहीं किए उससे कहीं ज्यादा ट्रांसफर 50 दिनों में कांग्रेस की सरकार ने किए हैं। माना जा रहा है कि सरकार द्वारा अधिकारियों के ट्रांसफर और पोस्टिंग में भी सीधा दखल दिग्विजय सिंह का है।
कांग्रेस का एक धड़ा कमलनाथ के साथ है तो बाकि धड़े दिग्विजय सिंह और ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ। वहीं, अजय सिंह राहुल भैया का भी खेमा हावी होने लगा है। कमलनाथ खेमे के नेताओं और सही मायने में समूची कांग्रेस को इस बात का भी डर है कि लोकसभा चुनाव में अगर केन्द्र में भाजपा की सरकार बनती है तो कहीं कांग्रेस की सरकार गिर ना जाए क्योंकि इस बार जनता ने किसी भी दल को पूर्ण बहुमत नहीं दिया है। खुद शिवराज सिंह चौहान समेत भाजपा के कई नेता सीधे तौर पर कह चुके हैं कि यह सरकार ज्यादा दिन चलने वाली नहीं है ऐसे में क्या कमलनाथ सरकार किसी दबाव में हैं?
पूर्व सीएम दिग्विजय सिंह अपनी ही सरकार पर कई बार सवाल उठा चुके हैं। गोहत्या और गायों की अवैध बिक्री के मामले में कुछ संदिग्धों पर राष्ट्रीय सुरक्षा कानून (रासुका) लगाने पर भी कमलनाथ को आलोचना का सामना करना पड़ा था। अलोचना करने वालों में पूर्व केन्द्रीय मंत्री पी चिदंबरम और दिग्विजय सिंह शामिल थे। दिग्विजय सिंह का ये भी कहना है कि राज्य की नौकरशाही नए प्रशासन के साथ काम करने की ‘राजनीतिक हकीकत’ को लेकर अभी तक जागी नहीं है। मंदसौर में किसान गोलीकांड, सिंहस्थ घोटाला और नर्मदा पौधारोपण के मामले में कमलनाथ सरकार के कई मंत्रियों ने पूर्व की भजापा सरकार को क्लीन चिट दी जिसके बाद दिग्विजय सिंह ने नाराजगी जाहिर की। दिग्विजय की नाराजगी के बाद खुद सीएम कमलनाथ को सफाई देना पड़ा और ट्वीट कर कहा- ”हम मंदसौर गोलीकांड या पौधारोपण घोटाला और सिंहस्थ में वित्तीय वित्तीय अनियमितताएं करने के दोषियों को नहीं छोड़ेंगे. सभी को न्याय दिलाना हमारा संकल्प है- चाहे पीड़ित किसान हों या घोटालेबाजों को सजा देना हो।” संबल योजना, मंत्रालय में वंदे मातरम को लेकर सरकार पहले ही विपक्ष के दवाब में आकर यू-टर्न ले चुकी है।
मध्यप्रदेश में इस वक्त किसी भी दल को पूर्ण बहुमत नहीं है। कांग्रेस सबसे बड़ा दल है पर बहुमत के लिए जरूरी 116 सीटें उसके पास नहीं है वहीं, विपक्षी दल के रूप में भाजपा के पास 109 सीटें हैं। विपक्ष कमलनाथ सरकार को हर मुद्दे में घेरने की कोशिश कर रहा है। अगर कमलनाथ के पास लंबा राजनीतिक अनुभव है तो भाजपा के पास खुद शिवराज सिंह चौहान और वरिष्ठ नेता गोपाल भार्गव जैसे दिग्गज सरकार को घरेने में सक्षम हैं। वहीं, दूसरी तरफ बसपा की रामबाई लगातार मंत्री पद की मांग को लेकर कमलनाथ सरकार पर दबाव बना रही हैं और कई बार तो निर्दलीय विधायक भी सरकार के खिलाफ बयान दे चुके हैं।