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भोपाल

यहां जमीन के पानी में हर रोज मिल रहा है 24.4 लीटर सीवेज

रिपोर्ट के मुताबिक यहां ट्रीटमेंट के लिए सिर्फ 56 एमएलडी (कुल सीेवेज का करीब 19 फीसदी) ही ट्रीटमेंट के लिए पहुंचता है। बाकी 244 एमएलडी (81 फीसदी) अनट्रीटेड सीवेज सीधा बेतवा नदी, हलाली डैम और कलियासोत नदी में मिल रहा है।

भोपालDec 13, 2016 / 10:23 am

sanjana kumar

Bhopal,pollution in bada talab water,by sewage,bpl

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भोपाल@विकास वर्मा। स्मार्ट सिटी की लिस्ट में शुमार ‘सिटी ऑफ लेक्स’ में रोजाना 24.4 करोड़ लीटर (244 एमएलडी) अनट्रीटेड सीवेज सीधे वॉटर बॉडी में मिल रहा है। वॉटर बॉडी के जरिए यह सीवेज जमीन के अंदर तक जाकर भूमिगत जल को दूषित कर रहा है। एेसा एकाध साल से नहीं, बल्कि पिछले कई वर्षों से हो रहा है। नगर निगम से प्राप्त जानकारी के मुताबिक करीब 23 लाख की जनसंख्या वाले इस शहर से रोजाना 300 एमएलडी सीवेज डिस्चार्ज होता है। वहीं शहर में महज सात सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट (एसटीपी) हैं, जिनकी क्षमता 80 एमएलडी है। सेंट्रल पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड (सीपीसीबी) की रिपोर्ट के मुताबिक यहां ट्रीटमेंट के लिए सिर्फ 56 एमएलडी (कुल सीेवेज का करीब 19 फीसदी) ही ट्रीटमेंट के लिए पहुंचता है। बाकी 244 एमएलडी (81 फीसदी) अनट्रीटेड सीवेज सीधा बेतवा नदी, हलाली डैम और कलियासोत नदी में मिल रहा है।

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अब नए एसटीपी नहीं ईटीपी की है जरूरत

पर्यावरणविद् सुभाष सी पांडेय के मुताबिक रिसर्च और रिपोर्ट में यह साबित हो चुका है कि अब शहरों से निकलने वाला घरेलू सीवेज भी इस कदर दूषित है कि उसे ट्रीट करने के लिए सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट (एसटीपी) नहीं इफ्लूएंट ट्रीटमेंट प्लांट (ईटीपी) की जरूरत है। एनजीटी ने भी अब शहर में नए एसटीपी की जगह ईटीपी लगाने की सलाह दी है। 


बड़े तालाब के मामले की सुनवाई के दौरान भी नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) एसटीपी की जगह ईटीपी के इस्तेमाल पर एमओईएफ व सीपीसीबी से जवाब मांग चुका है।

डॉ पांडेय के मुताबिक अगर अनट्रीटेड वाटर को ट्रीटमेंट कर सही इस्तेमाल किया जाए तो एक बड़े भू-भाग और वनस्पति के लिए पर्याप्त पानी की व्यवस्था हो सकती है।

अमृत योजना के तहत पानी, सीवेज व ट्रांसपोर्ट सिस्टम बेहतर बनाने के लिए केंद्र सरकार से बजट मिलना है। सीवेज नेटवर्क व ट्रीटमेंट का काम काफी बड़े स्तर पर होना है तो बजट के हिसाब से ही यह आगे बढ़ाया जाएगा।
एमपी सिंह, अपर आयुक्त, ननि

लगातार अगर अनट्रीटेड सीवेज जल स्त्रोतों में मिलता रहा तो हालात बिगड़ सकते हैं। आज आबादी 23 लाख है तो सीवेज 300 एमएलडी है लेकिन 20 साल बाद क्या हालात होंगे? उसके हिसाब से ही एसटीपी की प्लानिंग करने की जरूरत है। एसटीपी में इंडस्ट्रियल सीवेज मिलने से वह खराब होने लगता है, इसलिए उसे अलग रखा जाए। देश के कई शहरों में एसबीआर तकनीक पर आधारित एसटीपी काफी कारगर साबित हो रहे हैं। 
प्रो. अबसर अहमद काजमी, (एनवार्यमेंटल इंजीनियरिंग) आईआईटी रुड़की

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