उमा ने अपने ट्वीट में इस किले और इस मंदिर की कहानी भी सुनाई है। उमा ने कहा है मान्यता है कि नवरात्रि के तुरंत बाद के पहले सोमवार को शिवजी का अभिषेक करना चाहिए। इसलिए वे किसी सिद्ध स्थान को तलाश ही रही थी। क्योंकि वे 11 अप्रैल सोमवार को गंगोत्री से लाए हुए गंगाजल से अभिषेक कर सकें। उमा ने कहा कि रायसेन में कथा कर रहे कथावाचक पंडित प्रदीप मिश्रा जी के हवाले से यह जानकारी मिली कि रायसेन के किले में एक ऐसा सिद्ध शिवलिंग है। इसलिए मैंने अपने स्टाफ को वहां के जिला प्रशासन को सूचना देने को कहा है कि वे मैं 11 अप्रैल को जल चढ़ाने आ रही हूं।
उमा ने किए एक के बाद एक 11 ट्वीट
1. यह मान्यता है कि नवरात्रि के तुरंत बाद के पहले सोमवार को शिव जी का अभिषेक करना चाहिए।
2 मैं शिव जी के किसी सिद्ध स्थान को तलाश ही रही थी कि नवरात्रि के बाद के 11 अप्रैल सोमवार को गंगोत्री से लाए हुए गंगाजल से अभिषेक करूं।
3. अचानक कल मध्य प्रदेश के एक प्रतिष्ठित अखबार से रायसेन में कथा कर रहे प्रतिष्ठित कथावाचक पंडित प्रदीप मिश्रा जी के हवाले से यह जानकारी मिली कि रायसेन के किले में एक ऐसा सिद्ध शिवलिंग है।
4. रायसेन के किले के नाम से ही मेरे अंतः में हूक उठती है। विश्व प्रसिद्ध प्रामाणिक इतिहासकार Abraham Eraly ने अपनी पुस्तक Emperors of the Peacock Throne में लिखा है कि किस तरह से रायसेन के राजा पूरणमल शेरशाह सूरी के विश्वासघात के शिकार हुए।
5. किले के चारों तरफ घेरा डालकर शेरशाह सूरी ने राजा पूरणमल से संधि कर ली, फिर उनके परिवार एवं उनके सहायकों के टेंट को शेरशाह सूरी ने अपने अफगान सैनिकों के साथ घेर लिया तथा रात में राजा पूरणमल को घेर कर मार डाला।
6. राजा पूरणमल बहुत बहादुरी से लड़े, मरने से पहले उन्होंने अपनी पत्नी रानी रत्नावली के अनुरोध पर उनकी गर्दन काट दी ताकि वह वहशियों के शिकंजे में ना आ पावे, किंतु उनके दो मासूम बेटे एवं अबोध कन्या टेंट में एक कोने में दुबक गए, जहां से उनको इन वहशियों ने खींच कर निकाला।
7. दोनों मासूम बेटे वहीं काट दिए गए एवं राजा पूरणमल की अबोध कन्या वैश्यालय को सौंप दी जहां वह दुर्दशा का शिकार होकर मर गई । जब भी मैं रायसेन के किले के आस पास से गुजरी यह प्रसंग मुझे याद आता था एवं बहुत दुःखी एवं शर्मिंदा होती थी।
8. जब डॉ. प्रभुराम चौधरी के चुनाव प्रचार में मैंने एवं शिवराज जी ने रायसेन में एक साथ सभा की थी तब मैंने रायसेन के किले की ओर देखते हुए यह बात कही थी कि इस किले को देखकर मुझे बहुत कष्ट होता है और आज जब हमारा भाजपा का झंडा इसके सामने फहरा रहा है तो कुछ शांति होती है।
9. राजा पूरणमल के साथ हुई घटना नीचता, विश्वासघात एवं वहशीपन की याद दिलाती है। मुझे अपनी इस अज्ञानता पर शर्मिंदगी है कि मुझे उस प्राचीन किले में सिद्ध शिवलिंग होने की जानकारी नहीं थी।
10. मैंने अपने कार्यालय से कल कहा था कि रायसेन जिला प्रशासन को 11 अप्रैल, सोमवार को मेरे वहां जल चढ़ाने की सूचना दें। जब मैं 11 अप्रैल, सोमवार को उस सिद्ध शिवलिंग पर गंगोत्री से लाया हुआ गंगाजल चढ़ाऊंगी तब..।
11. राजा पूरणमल, उनकी पत्नी रत्नावली, उनके मार डाले गए दोनों मासूम बेटे एवं वहशी दुर्दशा की शिकार होकर मर गई अबोध कन्या एवं उन सब के साथ मारे गए राजा पूरणमल के सैनिक उन सबका मैं तर्पण करूंगी एवं अपनी अज्ञानता के लिए क्षमा मांगूंगी।
शिवराज में कैद हैं ‘शिव’
मध्यप्रदेश का रायसेन जिला इस बार सुर्खियों में हैं, क्योंकि यहां एक ऐसा शिव मंदिर है जो कई वर्षों से ताले में हैं, जिसे आजाद कराने के लिए सीहोर वाले कथा वाचक पंडित प्रदीप मिश्रा ने मुद्दा उठाया था। मिश्रा ने मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान से खास अपील की थी, जिसमें उन्होंने कहा था कि शिवराज में ही शिव कैद में है। ऐसे में कैसे सुख हो सकता है। जो देवों का देव महादेव हैं। हमारा सबका दाता है। सबके पिताजी हैं। लेकिन, वो देश की आजादी के बाद से कैद में है और आज तक कोई उनको कैद से बाहर नहीं ला सका है। धिक्कार है रायसेनवासियों, जो आज तक उनको बाहर नहीं ला सके।
पीएम, सीएम और गृहमंत्री से भी अपील
पंडित प्रदीप मिश्रा ने रायसेन में आयोजित कार्यक्रम में कहा कि मैं अपील करता हूं हमारे शिवराज मामा से, जो इस राज्य के मुख्यमंत्री हैं, वे सनातनी हैं, हमारे गृहमंत्री नरोत्तम मिश्रा भी सनातनी हैं, हमारे प्रधानमंत्री वे भी सनातनी हैं, हमारे केंद्रीय मंत्री भी सनातनी हैं. मैं उनसे अपील करता हूं मैं चाहता हूं कि वे शंकर को कैद से बाहर निकलवाएं।
सिर्फ 12 घंटे के लिए खुलते हैं ताले
रायसेन किले में स्थित सोमेश्वर शिव मंदिर के ताले साल में एक दिन वो भी 12 घंटे के लिए खुलते हैं। जबकि 364 दिन बंद रहते हैं। बताया जाता है कि आजादी के बाद इस परिसर में मंदिर और मस्जिद का विवाद खड़ा हो गया था और पुरातत्व विभाग ने मंदिर में ताले लगा दिए थे। तब से 1974 तक मंदिर में कोई प्रवेश नहीं कर पाया है। इस मंदिर के ताले खोलने के लिए कई बार आंदोलन भी हुए। पहली बार तत्कालीन मुख्यमंत्री प्रकाशचंद्र सेठी ने इस पहाड़ी पर स्थित मंदिर के ताले खुद खुलवाए थे और महाशिवरात्रि पर यहां विशाल मेला लगा था। तब से यह साल में एक दिन महाशिवरात्रि के दिन ही खुलता है।