scriptतीन तलाक: 33 साल बाद इंदौर की शाहबानो को मिला न्याय | triple talaq bill: know the triple talaq first victim shahbano story | Patrika News
भोपाल

तीन तलाक: 33 साल बाद इंदौर की शाहबानो को मिला न्याय

triple talaq bill: जानिए, ट्रिपल तलाक के खिलाफ लड़ाई शुरू करने वाली पहली महिला की स्टोरी

भोपालJul 30, 2019 / 07:48 pm

Muneshwar Kumar

shahbano story
भोपाल. शाहबानो ( shahbano ) आज जिंदा होतीं तो उनके रूह को सुकून मिलती। जिस लड़ाई की उन्होंने शुरुआत थी, उसमें जीत तो उन्हें सात साल बाद ही मिल गई थी, लेकिन तत्कालीन सरकार की वजह से उन्हें हक नहीं मिल पाया था। आखिरी 33 साल बाद उन्हें न्याय मिल गया। लेकिन देखने को लिए वो मौजूद नहीं हैं। लेकिन खुदा के पास उनके आत्मा को सुकून जरूर मिलेगी कि आज हमारी वजह से करोड़ों मुस्लिम महिलाओं को तीन तलाक से आजादी मिल गई है। हम बात कर रहे हैं, तीन तलाक के खिलाफ लड़ाई की शुरुआत करने वाले शाह बानो की।
शाहबानो की कहानी हम आपको आगे बताएंगे। लेकिन उससे पहले राज्यसभा में तीन तलाक को लेकर क्या हुआ उसे जान लीजिए। राज्यसभा में तीन तलाक बिल पास हो गया है। बिल के पक्ष में 99 और विपक्ष में 84 वोट पड़े हैं। राज्यसभा से बिल पास होने के बाद मुस्लिम महिलाओं को तीन तलाक से आजादी मिल जाएगी। वोटिंग के दौरान कई बड़े दलों ने इसका बहिष्कार कर दिया था। बिल पास होने के बाद आइए हम आपको उस महिला के बारे में बताते हैं, जिसने पहली बार तीन तलाक के खिलाफ आवाज उठाई थी। लेकिन राजीव गांधी सरकार के एक फैसले की वजह से उसे हक नहीं मिल पाया था।
https://twitter.com/ANI/status/1156184595580235777?ref_src=twsrc%5Etfw
 

हिंदुस्तान में तीन तलाक के खिलाफ आवाज उठाने वाली पहली महिला शाहबानो थी। पांच बच्चों की मां शाहबानो मध्यप्रदेश के इंदौर की रहने वाली थीं। उनके पति मोहम्मद खान ने 1978 में तलाक दे दिया था। इस्लामिक लॉ के अनुसार उनके उनका पति उनकी मर्जी के खिलाफ ऐसा कर सकता था। लेकिन खुद और बच्चों के भरण पोषण के लिए शाह बानो ने इसके खिलाफ आवाज उठाई। क्योंकि बच्चों को पालना उनके लिए मुश्किल हो रहा था।
https://twitter.com/hashtag/TripleTalaqBill?src=hash&ref_src=twsrc%5Etfw
 

सुप्रीम कोर्ट से मिली जीत
1978 में जब शाहबानो तीन तलाक के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट गईं, तब वो 62 साल की थीं। पति ने शौतन की वजह से उन्हें छोड़ दिया था। पहले कुछ गुजरा भत्ता दे दिया करता था। लेकिन बाद में शौहर ने सब देना बंद कर दिया। मामला कोर्ट में चल रहा था। सुप्रीम कोर्ट ने 23 अप्रैल 1985 को चीफ जस्टिस वाईवी चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने अपना फैसला शाह बानो के पक्ष में दिया। सुप्रीम कोर्ट ने मोहम्मद अहमद खान को अपनी पूर्व बेगम को हर महीने पांच सौ रुपये का गुजारा भत्ता देने का आदेश दिया।
इसे भी पढ़ें:

मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने किया विरोध
सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले का मुस्लिम संगठनों ने विरोध करना शुरू कर दिया। 1973 में बने ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने शाहबानो केस में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का पुरजोर विरोध शुरू कर दिया। सरकार इनके विरोध के आगे झुक गई। इसके बाद सरकार पर मुस्लिम तुष्टिकरण का आरोप भी लगा।
राजीव गांधी सरकार की वजह से नहीं मिला हक
मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड जब इसका विरोध कर रही थी, तब केंद्र में राजीव गांधी की सरकार थी। राजीव गांधी की सरकार ने मुस्लिम धर्मगुरुओं के दबाव में आकर मुस्लिम महिला अधिनियम, 1986 पारित कर दिया। इस अधिनियम के जरिए सर्वोच्च न्यायलय के फैसले को पलट दिया।
इसे भी पढ़ें: तीसरी कोशिश में मिली कामयाबी, मोदी सरकार ने मुस्लिम महिलाओं से किया वादा निभाया

https://twitter.com/hashtag/TripleTalaqBill?src=hash&ref_src=twsrc%5Etfw
 

ब्रेम हैमरेज से मौत
इस फैसले के बाद तीन तलाक से पीड़ित महिलाओं में खुशी की लहर है। लेकिन इसे देखने के लिए शाहबानो नहीं हैं। ढलती उम्र की वजह से वह बीमार रहने लगी थीं। बताया जाता है कि पति से तलाक के बाद ही उनकी सेहत बिगड़ने लगी। 1992 में ब्रेन हैमरेज से शाहबानो की मौत हो गई।

Hindi News / Bhopal / तीन तलाक: 33 साल बाद इंदौर की शाहबानो को मिला न्याय

ट्रेंडिंग वीडियो