इधर भोपाल में कजरा उठाने के दौरान सुरक्षा के लिए आगे पुलिस फोर्स थी तो ट्रैफिक बाधित न हो इसके लिए हर चौराहे पर इंतजाम। नजारा बॉलीवुड फिल्म जैसा था। गैसकांड के बाद यूनियन कार्बाइड फैक्ट्री का कचरा भोपाल के पर्यावरण से लेकर लोगों की सेहत के लिए घातक बना था। उच्च स्तर पर बातचीत के बाद हटाने का काम शनिवार सुबह 4 बजे से शुरू हुआ। रामकी इनवायरो के 12 कंटेनर पीथमपुर के तारापुर औद्योगिक क्षेत्र से भोपाल पहुंचे। गैस राहत, प्रशासन, प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अधिकारी और सुरक्षा बल मौजूद रहा।
पीपीई किट में गार्ड, एक किमी का एरिया रहा सील
फैक्ट्री के अंदर जाने वाले रास्तों पर बैरीकेड लगाकर सील की स्थानीय निवासियों का प्रवेश पूरी तरह से प्रतिबंधित कर दिया। बुधवार रात जब कचरे से लदे कंटेनर का काफिला निकला डीआइजी बंगला चौराहे से गणेश मंदिर तक करीब एक किमी का क्षेत्र में ट्रैफिक रोक दिया।
100 एक्सपर्ट सहित 1000 लोग लगे
शनिवार से शुरू हुई इस कवायद में 100 एक्सपर्ट सहित एक हजार लोगों का अमला जुटा। इसमें अधिकारी, सुरक्षा एजेंसी सहित टेक्निकल लोग शामिल रहे। तारापुर इंसीनरेटर में बनेगा राख: तीन माह में कचरे को पीथमपुर के तारापुर इंडस्ट्रियल एरिया में जलाया जाएगा। यहां राख बनाया जाएगा। इस राख का भी ट्रीटमेंट होगा।
126 करोड़ रुपए में खत्म होगा
कचरा कचरा 126 करोड़ रुपए में डिस्पोज होगा। प्रतिकिलो लागत 3750 रुपए होगी। 2012 में जर्मन कंपनी जीआइजेड ने 22 करोड़ मेें हैंबर्ग में इसे खत्म करने का प्रस्ताव दिया, तब सरकार ने महंगा बता खारिज कर दिया।
वह खौफनाक मंजर था, यह दिल को सुकून देने वाला क्षण….
वह 2 दिसंबर, 1984 की रात थी, यह 1 जनवरी, 2025 की रात है। तब देर रात शहर की हवा में जहर घुल गया था, आज उस जहर के अवशेष विदा हो रहे हैं। उस रात गैस के असर से आंखों में आंसू थे, आज जहर के अवशेषों की विदाई से दिल में सुकून है। 40 साल से दिल में जख्म जिंदा थे, वे तो मिट नहीं सकेंगे पर कलंक का कचरा साफ होने से हमारी जमीन फिर से आबाद हो सकेगी। हकीकत यह भी है कि गैस त्रासदी के निशान कभी नहीं मिटाए जा सकेंगे। अब तक तीन पीढिय़ां गैस के दर्द को झेल चुकी हैं। कैंचीछोला, राजेंद्र नगर, जेपी नगर, चांदबड़, रेलवे कॉलोनी से लेकर अशोका गार्डन तक नई जनरेशन की नसों में भी गैस का असर मौजूद है।
आज तक कोई असरकारक दवा नहीं मिली न संतोषजनक मुआवजा। संतोष यह है कि 40 साल बाद यूनियन कार्बाइड कारखाने का कचरा भोपाल से अलविदा हुआ। अब इस खाली जमीन पर नए सिरे से सुनियोजित ढंग से कोई ऐसा उम्मीदों का चमन खिलना चाहिए, जो दर्द की बजाय इंसानों के लिए दवा का काम कर सके।