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कूनो एशियाटिक शेर के लिए तैयार, शेर भेजने की स्वीकृति देन सीएम ने लिखा पीएम को पत्र

नौरदेही सेंचुरी में आएगा अफ्रीकन चीता , कूनो एशियाटिक शेर के लिए तैयार
मुख्यमंत्री कमलनाथ ने गिर के शेर कुनो पालपुर में भेजने की स्वीकृति देने के संबंध में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से किया आग्रह
 

भोपालFeb 26, 2019 / 08:44 am

सुनील मिश्रा

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सरसों के खेत में बैठे बाघ को देखने उमड़े लोग…वन विभाग, पुलिस का छूटा पसीना

भोपाल। मध्य प्रदेश एक बार फिर से चीता का आशियाना बन सकता है। प्रदेश से चीता ७२ साल पहले विलुप्त हो गया था।

राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (एनटीसीए) एक बार फिर से इसे यहां बसाने की तैयारी में है। यही वजह है कि एनटीसीए ने इसके लिए नौरदेही सेंचुरी का चयन कर सुप्रीम कोर्ट से यहां पर नामीबिया के अफ्रीकन चीता को स्थानांतरित करने की अनुमति मांगी है।
उधर, प्रदेश में सरकार बदलने के बाद कूनो पालपुर नेशनल पार्क में एशियाटिक लायन (शेर) बसाने की नए सिरे से तैयारी शुरू की गई है। गुजरात के शेरों को मध्यप्रदेश भेजने की मंजूरी दिए जाने के लिए पत्र लिखकर गेंद केंद्र के पाले में डाल दी है।
मुख्यमंत्री कमलनाथ ने गिर के शेर कुनो पालपुर में भेजने की स्वीकृति देने के संबंध में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से आग्रह किया है। अगर सब कुछ ठीक ठाक रहा तो प्रदेश के वन्यजीव प्रेमियों को दोहरी खुशी जल्दी ही मिल सकती है।
दरअसल गुजरात स्थित गिर अभ्यारण्य से शेर मध्यप्रदेश लाने को लेकर दोनों राज्यों के बीच लंबे समय से विवाद चला आ रहा है। सुप्रीम कोर्ट में मामला जाने और शेरों के स्थानांतरण के आदेश के बाद गुजरात सरकार ने शेर के अनुकूल व्यवस्थाओं को लेकर अड़ंगा लगा दिया था।
अब राज्य सरकार ने केंद्र सरकार को पत्र लिखकर पालपुर कूनो में किए गए इंतजाम का ब्यौरा देते हुए शेर भेजने की स्वीकृति दिए जाने की मांग की है। पत्र में बताया गया है कि कूनो का क्षेत्र बढ़ाने के साथ ही उसे नेशनल पार्क घोषित करा दिया गया है। साथ ही शेर लाने के लिए जो प्रारंभिक शर्तें लगाई गईं थीं उसे पूरा कर लिया गया है।
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दोगुना हो गया कूनो का क्षेत्रफल

पालपुर कूनो नेशनल पार्क के भीतर बसे २४ गांवों को विस्थापित किए जाने के साथ ही अब इसका क्षेत्रफल बढ़कर आठ सौ वर्ग किलोमीटर हो गया है। पहले इसका क्षेत्र इसका आधा था।
केंद्र को भेजे गए पत्र में बताया गया है कि गुजरात सरकार द्वारा उठाई गई आपत्तियों के निराकरण के लिए वन्य प्राणी विशेषज्ञों की समिति गठित की गई थी। जिसकी सिफारिशों पर वो सभी कमियां दूर कर दी गई हैं जो शेरों के स्थानांतरण में आड़े आ रही थीं।
वाइल्डलाइफ इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया ने सभी व्यवस्थाओं पर संतोष जाहिर करते हुए हरी झंडी दे दी है।

यह है मामला

कूनो पालपुर में एशियाटिक शेरों को बसाने की परियोजना पर १९९३ से काम चल रहा है। गिर के शेरों में संक्रमण के कारण उनके संवर्धन के लिए दूसरे हिस्सों में भेजे जाने की सलाह दिए जाने के बाद ही मध्यप्रदेश सरकार सक्रिय हो गई थी। २००३ में अभ्यारण्य शेरों के लिए तैयार भी हो गया था। लेकिन गुजरात सरकार ने इन्हें भेजने से इंकार कर दिया। तब से यह विवाद चला आ रहा है।
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चीतों को बसाने की मिली एनओसी
प्रदेश के सागर संभाग स्थित नौरदेही सेंचुरी में भारत से विलुप्त चीतों को बसाने की की एनओसी(अनापत्ति)इंटरनेशनल यूनियन फार कंजरवेशन ऑफ नेचर (आइयूसीएन) ने दे दी है।

एनटीसीए ने सुप्रीम कोर्ट एक प्रस्ताव पेश कर नामीबिया से अफ्रीकन चीतों को स्थानांतरित किए जाने की अनुमति देने का आग्रह किया है। एनटीसीए ने कोर्ट को बताया कि विशेषज्ञों की टीम ने जलवायु परिवर्तन के असर, बायोडायवर्सिटी और सतत विकास का अध्ययन किया है और वह पूरी तरह से संतुष्ट हैं। वाइल्डलाइफ इंस्टीट्यूट देहरादून देश में चीतों की प्रजाति को फिर से बसाने के इस प्रस्ताव पर सहयोग कर रहा है।
ज्ञात हो कि भारत में आखिरी बार चीता ७२ साल पहले देखा गया था। सरकार इसे बचाने की कोशिश करती कि इससे पहले ही १९४७ में मौत हो गई। इसके बाद देशभर में हुए सर्वेक्षण में चीता की मौजूदगी के किसी तरह के निशान नहीं मिले। लिहाजा पांच साल बाद १९५२ में विलुप्त प्राणाी घोषित कर दिया गया। दुनिया में नामीबिया ही केवल ऐसा देश है, जहां चीता पाए जाते हैं।
गुजरात में मिला मध्यप्रदेश का टाइगर

दो साल से गायब मध्यप्रदेश का टाइगर गुजरात में मिला। इसका खुलासा फोटोग्राफ्स से हुआ है। प्रदेश के वन अफसरों ने गुजरात सरकार को चिट्ठी लिखकर कहा है कि हमारे बाघ को संभालकर रखना।
अधिकारियों की माने तो यह बाघ कांहा नेशनल पार्क से बाहर निकलकर जंगलों गुजरात पहुंच गया। वर्तमान में यह बाघ गुजरात के गिर जंगल में है। जिसकी लगातार रिपोर्ट ली जा रही है।

सूत्रों के अनुसार जनवरी २०१७ में नागदा की पहाडिय़ों में एक बाघ घूमता हुआ देखा गया था। अब उसके गिर वन क्षेत्र में होने का पता चला है। बताया गया है कि यह बाघ करीब तीन सौ किलोमीटर की दूरी तय करके गुजरात पहुंचा है।

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