भोपाल. दिवाली की रात सेंट्रल जेल से सिपाही का गला काटकर फरार हुए सिमी के आठ आतंकियों को आठ घंटे में मार गिराए जाने की घटना पर देशभर में बहस शुरू हो गई है। सिमी आतंकियों के अति सुरक्षित जेल से फरार होने से लेकर उन्हें मुठभेड़ में ढेर किए जाने तक पर कदम दर कदम अंगुली उठ रही है।
दूसरी ओर, घनघोर सियासत भी छिड़ी हुई है। इन सबके बीच ऐसे कई बेहद गंभीर और अनसुलझे सवाल सामने हैं, जिनका जवाब या तो दिया नहीं जा रहा या छिपाया जा रहा है। घटना की शुरुआत जेल के अंदर से हुई और सबसे बड़ी चूक भी वहीं हुई। सबसे बड़ा सवाल यह उठ रहा है कि कौन है भेदिया और क्या इस पूरे घटनाक्रम के पीछे कोई मास्टरमाइंड है?
पत्रिका की पड़ताल
इसकी जांच जरूरी…कैमरे बंद थे या किए गए?
प्रदेश की पहली आईएसओ प्रमाणित भोपाल सेंट्रल जेल में 45 सीसीटीवी कैमरे लगे हैं, लेकिन इनमें से 9 खराब पड़े हैं। इनके जरिए जेल की गतिविधियां सुप्रिन्टेंडेंट और कंटोल रूम में लगी बड़ी स्क्रीन पर देखी जा सकती है। जेल ब्रेक के दौरान सुप्रिन्टेंडेंट का कक्ष बंद था और कंट्रोल रूम भी खाली। क्या खराब कैमरे आतंकियों की बैरक के पास के थे? नहीं, तो बैरक से भागकर सेक्टर और फिर मुख्य दीवार तक आने में आतंकियों की हरकतें किसी कैमरे में तो रिकॉर्ड हुई होंगीं। सबसे अहम सवाल यह कि कैमरे बंद थे या किए गए? इन सबकी जांच जरूरी है।
दीवार के पार था कोई मददगार?
चादरों आर लकड़ी की सीढ़ी से जेल की 21 फीट ऊंवी दीवार फांद लेने की बात भी आसानी से गले नहीं उतरती। सपाट दीावार के ऊपर कांच के टुकड़े लगे हैं। इस पर चादर या लकड़ी का फंसना संभव नहीं दिखता। यह भी मुश्किल है कि यह सीढ़ी इतना भार सह लेगी। क्या दीवार के पार आतंकियों का कोई मददगार था?
बाहर भी मौजूद था आतंकियों का साथी?
जेल से फरार होकर आतंकियों ने शेविंग कराई। कपड़े बदले। जूते पहने। एक तो स्वेटर में दिखा। संदेह है कि कोई लगातार उन्हें बाहर से मदद दे रहा था। नहीं तो उन्हें नए कपड़े किसने दिए? जेल से ही नए कपडे़ पहनकर भागते तो कपड़ों पर रगड़ के निशान होते? ऐसे निशान नहीं थे। कपड़े अंदर ही मिले तो किसने दिए?
(खंडवा पहुंचे आतंकियों के शव)
ब्रश वाली चाबी तो सांचा थी
जेल में बैरक के बाहर भारी ताले लगे हुए हैं। चाबी जेलर के कमरे में रहती है। मौके से लकड़ी, टूथब्रश से बनी चाबियां मिली हैं। क्या इन चाबियों से ताला खोलना संभव है? सूत्रों के अनुसार ताला लोहे की बनी डुप्लीकेट चाबी से खोला गया। टूथब्रश वाली चाबियां तो डुप्लीकेट चाबी बनाने के लिए सांचे के तौर पर इस्तेमाल हुईं। लोहे की डुप्लीकेट चाबी हासिल करने में किसी ने मदद की?
हथियार थे या नहीं?
आतंकियों के पास हथियार बरामद होने पर विरोधाभासी बयान आए। गृह मंत्री भूपेन्द्र सिंह का बयान था कि आतंकियों के पास हथियार नहीं थे, वे पत्थर से हमला कर रहे थे। एटीएस आईजी संजीव शमी ने भी बयान दिया कि आतंकियों के पास हथियार नहीं था। आतंकियों को घरने वाले ग्रामीणों ने भी हथियार की बात नहीं बताई है। दूसरी ओर, आईजी भोपाल योगेश चौधरी ने प्रेस कान्फ्रेंस में कहा था कि आतंकियों के पास से कट्टे मिले और उन्होंने फायरिंग भी की थी। क्या सच है?
एक साथ क्यों थे? एक जगह क्यों मारे गए?
सभी आतंकियों का भागने के बाद एक ही जगह मिलना भी संदेह पैदा कर रहा है। क्या किसी ने उन्हें खास ठिकाने पर ही पहुंचने के निर्देश दिए थे? क्या वहां से उन्हें कोई और साजिश अंजाम देनी थी? क्या कोई उन्हें गाइड कर रहा था? जांच में इसका पता लगाना अहम होगा।
इसके अलावा, घेर लिए जाने के बावजूद सभी आठ आतंकी पहाड़ी पर एक ही जगह डटे रहे। भागने की कोशिश क्यों नहीं की? सुरक्षा बलों ने 45 राउंड गोलियां चलाईं। दूर से चलाई जा रही गोलियां शरीर पर कहीं भी लग सकती थीं। गोलियां उनके चीथड़े कर सकती थीं। वे इधर-उधर गिर सकते थे। इसके बावजूद किसी आतंकी के शरीर पर बड़ा घाव नहीं दिखा। उनके शव भी लगभग आसपास ही पड़े थे। इन सवालों के आधार पर मुठभेड़ पर भी सवाल उठाया जा रहा है।
सच सामने आना चाहिए: तन्खा
जेल से लेकर एनकाउंटर तक पूरी घटना सरकार के सिस्टम की विफलता है। वे गलत थे तो कानून सजा देता। क्या सभी को मार डालना देश के हित में है? सभी का एक जगह मिलना, उनके पास हथियार नहीं मिलना कई सवाल उठाता है। अभी तक जो जानकारियां सामने आई उससे ये एनकाउंटर सवालों में घिरा है, जो जांच का विषय है। क्या उन्हें मारकर प्रमाण भी मार नहीं मार दिए गए? एक-दो को भी जिंदा पकड़ते तो वे बताते कि कौन उनके साथ हैं।
क्या इसीलिए उन्हें मार दिया? आतंकियों को थ्री-टियर सिक्योरिटी में रखा जाता है, तो फिर भला राजधानी की जेल में कैसी सुरक्षा? आर्मी के एनकाउंटर से इनकी तुलना नहीं होनी चाहिए, क्योंकि बार्डर पर हालात अलग होते हैं। आर्मी युद्ध की स्थिति में रहती है। यहां एेसा नहीं था। सच सामने आना चाहिए कि कौन लोग इन सिमी आतंकियों के साथ थे। किसने इन्हें बाहर निकाला? स्वतंत्र जांच एजेंसी के जरिए इसकी जांच होनी चाहिए ताकि यह सच सामने आ सके।
– विवेक तन्खा, कांग्रेस सांसद व विधि विशेषज्ञ
कहां से आई सीढ़ी के लिए लकड़ी?
चादरों से सीढ़ी बनाने में लकड़ी के करीब डेढ़ दर्जन टुकड़े इस्तेमाल हुए। ये लकडि़यां कहां से आईं? यदि अंदर ही उपलब्ध हुई तो कहां छिपाकर रखा गया था? बैरकों में? तो क्या बैरक की भी जांच नहीं हो रही थी? चादरें बटोरने और सीढ़ी बनाने में भी लंबा वक्त लगा होगा। दूसरों की चादरें लीं तो क्या और आतंकियों को भी साजिश का पता था?
मुठभेड़ पर सुप्रीम कोर्ट के ये हैं दिशा-निर्देश
सुप्रीम कोर्ट ने एक जनहित याचिका पर एनकाउंटर के मामलों में 16 बिंदुओं का दिशा-निर्देश जारी किया था।
प्रमुख बिंदु
-एनकाउंटर में हुई मौतों की जांच सीआईडी टीम और मजिस्ट्रेट से कराई जाए। जांच न्यूनतम आठ बिंदुओं पर हो।
-एनकाउंटर मौत की जांच अनिवार्य रूप से कराई जाए।
-एनकाउंटर की जानकारी तत्काल राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग या राज्य मानवाधिकार आयोग को दिया जाए।
-घायल पीडि़त या अपराधी को तत्काल चिकित्सा सहायता दी जाए। मजिस्ट्रेट से उसका बयान दर्ज कराया जाना चाहिए।
-फर्जी या गलत तरीके से एनकाउंटर का दोषी पाए जाने वाले पुलिस अधिकारियों के खिलाफ अनुशासनात्मक और बर्खास्तगी की कार्रवाई हो।
-पुलिस अधिकारी को संविधान की धारा 20 के तहत एनकाउंटर में इस्तेमाल हथियार अनिवार्य रूप से जांच अधिकारी को सौंपे।
-एनकाउंटर में शामिल पुलिस अधिकारी को समय पूर्व बहादुरी सम्मान या पुलिस पदक प्रदान नहीं किया जाना चाहिए।
अब तक मजिस्ट्रियल जांच के नहीं हुए आदेश
नियमानुसार हर एनकाउंटर की मजिस्ट्रियल जांच जरूरी होती है। इसके बावजूद एनकाउंटर का एक दिन बीत जाने के बाद भी मजिस्ट्रियल जांच के आदेश नहीं हुए हैं। इसकी जगह एसआईटी बनाकर जांच का जिम्मा सीआईडी के एसपी अनुराग शर्मा को सौंप दिया गया है। इस टीम में एसपी के अलावा दो डीएसपी भी शामिल हैं।
एसआईटी पुलिस मुख्यालय को अपनी रिपोर्ट देगा। महत्वपूर्ण यह है कि एसआईटी का जिम्मा सीआईडी के एसपी को दिया गया है। जबकि एनकाउंटर में भोपाल आईजी योगेश चौधरी व एटीएस के आईजी संजीव शमी भी शामिल हैं। ऐसे में सवाल यह है कि एसपी स्तर का अधिकारी कैसे आईजी स्तर के अधिकारी की भूमिका की जांच करेगा?
एनआईए सिर्फ जेल से भागने की करेगी जांच
एनआईए सिर्फ आतंकियों के जेल से भागने और उनके मददगार तक ही अपनी जांच को केंद्रित करेगी। एनकाउंटर की जांच एनआईए के जिम्मे नहीं होगी। गृहमंत्री भूपेंद्र सिंह ने मंगलवार को कहा कि एनआईए या किसी दूसरी एजेंसी से एनकाउंटर की जांच कराए जाने की कोई जरूरत नहीं है।
वायरलेस ऑडियो वायरल
दस मिनट की बातचीत…
सोशल मीडिया पर एनकाउंटर के समय पुलिसकर्मियों के बीच वायरलेस पर हो रही बातचीता का एक कथित ऑडियो सामने आया है। सवाल यह कि यह रिकार्ड किसने किया? क्या वायरलेस की बातचीत रिकॉर्ड होती है? यह असली है तो बाहर क्यों आई? क्या इसे जानबूझकर बाहर लाया गया है? रिकार्डिंग करीब दस मिनट की है। हालांकि, अभी इसकी प्रामाणिकता की पुष्टि नहीं हुई है।
सबको मत मारो…एक आध जिंदा पकड़ लो
कथित रिकॉर्डिंग में एसपी उत्तर अरविंद सक्सेना वायरलेस पर कह रहे हैं कि छोडऩा नहीं है। कोई दिक्कत नहीं है। इसके बाद डीएसपी क्राइम, शाहजनाबाद टीआई वीरेंद्र सिंह चौहान और शाहपुरा टीआई जितेंद्र पटेल की टीम ने आतंकियों को शूट किया। वायरलेस पर यह चर्चा भी हुई कि सभी को मारने की बजाय एकाध को जिंदा पकड़ लेना चाहिए।
एक अफसर ने यह कहा कि जिंदा छोड़ दिया तो इलाज कराने में बहुत खर्च आएगा। यह भी कहा गया कि आतंकी राजगढ़ से होकर राजस्थान भागने की फिराक में है। एनकाउंटर पूरा होते ही तालियां बजने और खुशी मनाने की आवाजें भी आई। फायरिंग रूकने की बातचीत के बीच एक पुलिसकर्मी ने कहा एसपी हो तो ऐसा, वायरलेस पर ही मारने का निर्देश दिया। एनकाउंटर के दौरान एसपी सक्सेना ने वायरलेस पर कम बात करने की बात भी कही थी।