चुनाव खत्म होते ही विभाग ने अब तक एक लाख दो हजार अध्यापकों के आदेश जनरेट कर लिए हैं, जिन्हें कभी भी जारी किया जा सकता है। विभाग की तैयारी नए साल के पहले महीने में सभी ढाई लाख अध्यापकों का संविलियन पूरा कर लेने की है।
प्रदेश के अध्यापक जहां कांगे्रस के वचन पत्र में शामिल 1994 के डाइंग कैडर को जिंदा होने और नए पदनाम मिलने की उम्मीद में हैं, वहीं विभाग के अधिकारी इसे अव्यवहारिक मानकर चल रहे हैं।
नए साल का तोहफा
नए साल में प्रदेश के ढाई लाख अध्यापकों को लंबित मांग पूरा होने की आस बंधी है।
चुनाव खत्म होते ही संविलियन की प्रक्रिया को तेजी से पूरा कर रहा है। अब तक 68 फीसदी संविलियन के काम को लगभग पूरा कर लिया गया है, जिन्हें किसी भी समय एक क्लिक पर जारी किया जा सकता है। हमारी कोशिश है कि आगामी एक पखवाड़े में ही इसे पूरा कर लिया जाए। पुराने कैडर के बारे में उच्च स्तर पर विचार-विमर्श के बाद ही निर्णय लिया जा सकता है।
– दिनेश कुशवाह, अतिरिक्त संचालक, लोक शिक्षण संचालनालय
इधर, भाजपा ने विधानसभा चुनाव से लिया ये सबक:-
भाजपा ने तीन राज्यों के विधानसभा चुनाव में मिली हार से सबक लिया है। इसके चलते वह लोकसभा चुनाव में 75 पार का फॉर्मूला नहीं अपनाएगी।
पार्टी ने मध्यप्रदेश में टिकट काटने के लिए उम्र को आधार बनाया था, लेकिन इससे पनपी नाराजगी से नुकसान झेलना पड़ा। भाजपा संगठन ने रास्ता निकाला है कि 75 से ज्यादा उम्र के प्रत्याशी को लोकसभा चुनाव का टिकट दिया जा सकता है, लेकिन जीतने पर उसे मंत्री नहीं बनाया जाएगा।
प्रदेश में तीन सांसद सुमित्रा, भागीरथ प्रसाद और लक्ष्मीनारायण यादव 70 वर्ष से ज्यादा उम्र के हैं। वहीं, हाल ही में विधायक बनने के बाद सांसद पद से इस्तीफा देने वाले नागेंद्र सिंह 76 साल के हैं।
भाजपा सूत्रों के मुताबिक संगठन का मानना है कि प्रदेश में कुछ पुराने और अनुभवी चेहरे लोकसभा चुनाव में मैदान में उतारने से उसे फायदा हो सकता है। 2014 में मोदी लहर के कारण कई युवा और गैरअनुभवी चेहरे भी भाजपा के टिकट पर चुनाव जीतकर लोकसभा पहुंचे थे।
इस बार विधानसभा चुनावों के परिणामों के बाद परिस्थितियां बदली नजर आ रही हैं। पार्टी हर अंचल में कुछ बुजुर्ग भाजपाई नेताओं को लोकसभा मैदान में उतारने पर भी विचार कर रही है। इनके काटे गए थे टिकट
विधानसभा चुनाव में उम्र के आधार पर कई मंत्रियों-विधायकों के टिकट काटे गए थे। इसमें पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल गौर, पूर्व मंत्री सरताज सिंह, रामकृष्ण कुसमरिया, केएल अग्रवाल, कैलाश चावला, मंत्री माया सिंह और कुसुम मेहदेले भी शामिल थे।
टिकट काटने का कुछ नेताओं ने मुखर विरोध भी किया। सरताज सिंह कांग्रेस में चले गए तो कुसमरिया बागी होकर मैदान में कूद गए थे।