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हम ये सब तो सिखाते हैं, पर….
राजधानी भोपाल की साइकोलॉजिकल काउंसलर अनुजा पांडे बताती हैं कि आज के माहौल को देखते हुए सभी बच्चों के लिए ये जानना बेहद जरूरी हो गया है कि, आखिरकार ये गुड टच और बैड टच होता क्या है। उन्होंने बताया कि, किसी के छूने या दखने भर से ही बच्चों को इस बात का अनुमान लग जाना चाहिए कि, उन्हें किस तरह समझदारी से काम लेना है और अपने माता पिता को इस संबंध में सूचित करना है। क्योंकि, ज्यादातर माता पिता अपने बच्चों को सही तरीके से खाना खाना, कपड़े पहनना, बड़ों का आदर करना आदि बातें तो सिखाते हैं, लेकिन उसे ‘गुड टच’ और ‘बैड टच’ के बारे में बताने में संकोच करते हैं। लेकिन, बढ़ते बच्चों के अलावा छोटे बच्चों को भी इस संबंध में जानकारी होना आज की जरूरत है।
सबसे पहले सिखाएं, किस पर यकीन करें और किस पर नहीं
ज्यादातर बच्चे बहुत जल्दी सीखना शुरू कर देते हैं। ऐसे में आप उन्हें कम से कम 4 साल की उम्र से यह बात समझाना शुरू कर दें कि उसे किस पर यकीन करना चाहिए, किस पर नहीं। अगर कोई उसकी जान पहचान का नहीं है तो किसी के साथ नहीं जाना चाहिए। अनजान व्यक्ति से उसे कुछ भी खाने की चीज नहीं लेनी चाहिए।
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आराम से समझाएं सारी बातें
चूंकि ये बहुत संवेदनशील विषय है, इसलिए इस बारे में बच्चे को बहुत धैर्य और आराम से जानकारी दें। कई बार बच्चों के लिए ये बातें समझना थोड़ा मुश्किल होता है क्योंकि बच्चे को ऐसी बातें समझने में समय लगता है। उसे प्राइवेट पार्ट्स के बारे में बताएं और समझाएं कि उसे इस जगह पर उसके अलावा कोई दूसरा नहीं छू सकता है।
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चूमने और गोद लेने पर रखें नजर
अकसर किसी अन्य व्यक्ति के गोद में लेने या बच्चों को चूमने पर बच्चे तो बच्चे परिवार के लोग भी उतना ध्यान नहीं दे पाते, लेकिन बच्चों को ये बताना बहुत जरूरी है कि अगर कोई आपको गोद में बैठाने की कोशिश कर रहा है या चूमने की कोशिश करें तो मां-बाप को इस बारे में शिकायत करें या साफ इंकार कर दें।
हर बच्चे को होना चाहिए अपने माता पिता के साथ होने का भरोसा
बच्चे को भरोसा दिलाएं कि, आप उसके साथ हैं। ताकि, अगर उसे कहीं भी कुछ ठीक ना लगे तो वो अपने माता-पिता को तुरंत बता सके। बच्चे को इस तरह तैयार करें कि वो आप पर पूरा भरोसा करें और छोटी से छोटी बात भी आपके साथ शेयर कर सके, ताकि आप उन्हें परिस्थिति के अनुसार समझाइश दे सकें।
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एक्सपर्ट की राय
काउंसलर अनुजा पांडे के मुताबिक, बदलते समय के साथ लोगो के विचारो में भी बहुत बदलाव आ गए हैं। कई लोग मानसिक तौर पर कुवृति के होते है। ऐसे लोग बच्चों से बैड टच करने के साथ साथ किसी तरह का अपराध करने को भी सही गलत से तोलकर नहीं देखते। आए दिन ऐसी मानसिकता का शिकार हुए बच्चों से जुड़ी घटनाएं समाज को झकझोर रही हैं। ऐसे हालात में सबसे ज्यादा तो बच्चों को ही ये पता होना चाहिए कि, क्या गुड टच और बैड टच में क्या फर्क है, ताकि कल के ये भविष्य आज किसी गलत भावनाओं का शिकार होने से बच सकें।