बच्चियों के साथ दुष्कर्म की वादरात के बाद भले ही प्रोटेक्शन ऑफ चिल्ड्रन फ्रॉम सेक्सुअल ऑफेन्स (पॉक्सो एक्ट) में जल्द न्याय दिलाने का प्रावधान है, लेकिन मप्र में ऐसे कई प्रकरणों में बच्चियों और उनके परिजनों को न्याय नहीं मिल रहा है। कई मामलों में पुलिस ने डायरी पेश की है, लेकिन डीएनए रिपोर्ट नहीं आने से फैसला नहीं हो पाया।
कोर्ट भी डीएनए टेस्ट रिपोर्ट के इंतजार में है। मप्र में चार हजार से ज्यादा ऐसे प्रकरण हैं, जिनमें डीएनए रिपोर्ट नहीं आने से आरोपियों को सजा नहीं मिल पाई। डीएनए टेस्ट रिपोर्ट में तेजी लाने के लिए भोपाल में आधुनिक डीएनए टेस्ट लैब बनाई गई है, लेकिन अब तक यह शुरू नहीं हो पाई है। सागर लैब में प्रकरणों की लंबी फेहरिस्त होने और डीएनए के एक केस में 7 से 30 दिन तक का समय लगने से मप्र में डीएनए सैंपलों की संख्या बढ़ती ही जा रही है।
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भोपाल के मनुआभान टेकरी, मंदसौर के दो और चंबल संभाग के एक केस में पुलिस ने कोर्ट में केस डायरी पेश की, लेकिन डीएनए रिपोर्ट का इंतजार किया जा रहा है। पुलिस मुख्यालय का तर्क है कि संवेदनशील प्रकरणों को प्राथकिता में लेकर डीएनए रिपोर्ट बुला लेते हैं, लेकिन हर माह 400 से ज्यादा प्रकरण आने से समय पर रिपोर्ट नहीं मिल पाती है।