गांधी मेडिकल कॉलेज के इएनटी विशेषज्ञ डॉ. यशवीर का कहना है कि हर रोज 150 से ज्यादा मरीज मौसमी बीमारियों के आ रहे हैं। सामान्य बीमारियों में एंटीबायोटिक के बढ़े प्रचलन के कारण दवाओं का असर घटा है। अब बुखार को ठीक होने में एक से डेढ़ हफ्ते लग रहे हैं।
सिकुड़ रही हैं फेफड़े की नलियां
जेके हॉस्पिटल के डॉ. आदर्श वाजपेयी बताते हैं कि हम हेवी एंटीबायोटिक देने से बचते हैं। पहले सामान्य दवाएं देते हैं, लेकिन मर्ज बढ़ जाए तो एंटीबायोटिक जरूरी हो जाती हंै। उन्होंने बताया कि मरीजों का बुखार तो ठीक हो रहा है, लेकिन मरीज की खांसी ठीक नहीं हो रही है। जांच में पता चलता है कि कई मरीजों के फेफड़े की नलियां सिकुड़ी हुई मिल रही हैं जो अस्थमा के लक्षण हैं।
पल-पल बदलते मौसम ने किया बीमार
मौसम बदलने के साथ ही बीमारियों का दौर भी शुरू हो जाता है। बारिश आने पर तापमान अचानक कम हो जाता है, शरीर अचानक इस बदलाव को सहन नहीं कर पाता। बारिश में दूषित पानी पीने से व्यक्ति उल्टी-दस्त, पीलिया तो भीगने से सर्दी-जुखाम जैसी बीमारियां बढ़ रही हैं। बुखार के बाद कई दिनों तक शरीर में दर्द होता है। म’छरों से मलेरिया, डेंगू सहित अन्य बीमारियों को बढ़ावा मिलता है।
बुखार में भी कम हो रहीं प्लेटलेट्स
जेपी अस्पताल के अधीक्षक डॉ. आईके चुघ के मुताबिक बुखार में मरीजों की प्लेटलेट्स कम हो जाती है। लोग एस्प्रिन, डिस्प्रिन जैसी दवाएं बिना डॉक्टरी सलाह के लेते हैं। यह बुखार में तत्काल राहत तो दिलाती हैं, लेकिन प्लेटलेट्स को भी तेजी से घटाती हैं। अब तक ब्लड में प्लेटलेट्स की संख्या डेंगू में घटती थी। सामान्य बुखार के लक्षणों में यह बदलाव वायरस की प्रकृति बदलने के कारण आया है।