भोपाल

सैफ अली खान पटौदी की 15 हजार करोड़ की संपत्ति खतरे में, संपत्ति गई तो जाएगी नवाबी

Saif Ali Khan Property in Bhopal: नवाब की प्रॉपर्टी का मामला केंद्र सरकार के दो अलग-अलग आदेशों के चलते बहुत पेंचीदा हो गया है। संपत्ति और नवाब के खिताब को लेकर दोनों आदेश एक-दूसरे से मेल नहीं खाते। ऐसे में सैफ अली की संपत्ति गई तो नवाबी भी जाएगी।

भोपालJan 23, 2025 / 12:56 pm

Sanjana Kumar

Saif Ali Khan Property in Bhopal

Saif Ali Khan Property In Bhopal: सैफ अली खान पटौदी हमले और सुरक्षा मिलने के साथ ही भोपाल में पटौदी खानदान की संपत्ति से स्टे हटने के कारण लगातार चर्चा में हैं। ऐसे में यह जानना दिलचस्प है कि 1960 की स्थिति के अनुसार भोपाल नवाब की तमाम संपत्तियों में से ऐशबाग स्टेडियम, बरखेड़ी, रायसेन और इच्छावर की करोड़ों की संपत्तियों के अलावा राजधानी की कई ऐतिहासिक इमारतें भी शत्रु संपत्ति के दायरे में आ गई हैं। सैफ की मुसीबतें कम होने का नाम नहीं ले रहीं। कोर्ट के दो आदेशों ने मामले को और पेंचिदा बना दिया है, अब सवाल ये कि क्या सैफ के हाथ से ये संपत्ति चली जाएगी या फिर चलेगी एक लंबी कानूनी लड़ाई…

ये है मामला

जबलपुर हाईकोर्ट के जस्टिस विवेक अग्रवाल की एकल बेंच ने 13 दिसंबर 2024 को शत्रु संपत्तियों पर 2015 में लगी रोक हटा दी। और 30 दिन में अपील करने का समय दिया। यह अवधि 14 जनवरी 2025 को खत्म हो गई। इसके बाद इन संपत्तियों को कानूनन सरकार अपने कजे में ले सकती है।
क्योंकि, हाईकोर्ट ने कहा था कि अपील करते समय समय-सीमा का मुद्दा नहीं उठेगा। इसके बाद जिला प्रशासन ने मामले में विधिक राय लेनी शुरू कर दी है।

नूर-उस-सबह पैलेस, फ्लैग स्टॉफ हाउस और अहमदाबाद पैलेस की जमीन शत्रु संपत्ति हैं। फ्लैग हाउस बिल्डिंग की मौजूदा मार्केट प्राइस 230 करोड़ रुपए है। यह प्राइम लोकेशन पर है। नूर-उस-सबह पैलेस की कीमत भी लगभग 300 करोड़ रुपए है। यह संपत्ति एक हेरिटेज होटल है।
saif ali khan property in Bhopal

क्या होगा शत्रु संपत्ति पर काबिज लोगों का

शत्रु संपत्ति कानून के तहत यदि संपत्तियों को केंद्र सरकार अपने कजे में लेती है तो इससे पुराने भोपाल की बहुत बड़ी आबादी प्रभावित होगी। 1.5 लाख से अधिक परिवार संपत्ति के स्वामित्व के विवाद में फंस सकते हैं। और पांच लाख प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित होंगे। शत्रु संपत्ति कार्यालय के नियमों के अनुसार अब इन संपत्तियों की खरीद फरोख्त नहीं हो सकती है। भोपाल कलेक्टर इन जमीनों के कस्टोडियन हैं। उनकी इस विवाद में अहम भूमिका होगी। लेकिन अंतिम निर्णय शत्रु संपत्ति कार्यालय का होगा।
सरकार यदि जमीन पर कब्जा करती है तो, लोगों को जमीन छोडऩी होगी। फिलहाल, मामला अभी कानूनी दांवपेच में फंसा है। लड़ाई लंबी चल सकती है।

नूर-उस-सबह पैलेस प्रबंधन ने किया दावा

नूर-उस-सबह पैलेस प्रबंधन का दावा है कि राजस्व विभाग ने उनकी संपत्तियों को शत्रु संपत्ति से बाहर रखा था। इसे शत्रु संपत्ति घोषित नहीं किया गया। इसके अलावा, 1962 के गजट नोटिफिकेशन में साजिदा सुल्तान को कानूनी उत्तराधिकारी माना गया था। इन तर्कों के चलते नवाब परिवार के पास अब भी कानूनी अपील के विकल्प खुले हुए हैं।
Saif Ali Property in Bhopal
Saif Ali Khan Property in Bhopal

नवाब कौन! बहुत उलझा हुआ है मामला

1. यह कहता है कानून

1 जून 1949 को भोपाल रियासत का भारत संघ में विलय हुआ। इसके पहले 1947 के भोपाल गद्दी उत्तराधिकारी अधिनियम के अनुसार नवाब हमीदुल्ला खान की सबसे बड़ी संतान ही भोपाल की नवाब होगी, चाहे वह बेटा हो या बेटी। मर्जर एग्रीमेंट के आर्टिकल 7 के मुताबिक, भोपाल रियासत के उत्तराधिकारी को भारत सरकार मान्यता देगी।

2. आबिदा सुल्तान को माना वारिस

शत्रु संपत्ति ऑफिस ने 24 फरवरी 2015 को नवाब हमीदुल्ला खान की बड़ी बेटी आबिदा सुल्तान को वारिस और नवाब माना था। लेकिन आबिदा 1960 से पहले पाकि स्तान की नागरिक बन गईं। इसलिए नवाब की संपत्तियां शत्रु संपत्ति के दायरे में आ गईं। इसी आधार पर केंद्र सरकार भोपाल की शाही जमीन पर अपनी मान रही।

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    3. 1961 में साजिदा सुल्तान वारिस घोषित

    1961 में भोपाल नवाब के निधन के बाद केंद्र ने उनकी छोटी बेटी साजिदा सुल्तान को उ•ाराधिकारी घोषित किया। कयोंकि,उनकी बड़ी बेटी आबिदा सुल्तान पाकिस्तान की नागरिक बन चुकी थीं। इस लिहाज से साजिदा सुल्तान के बाद उनके बेटे मंसूर अली खान पटौदी और फिर सैफ अली खान भोपाल के नवाब बने।
    Saif Ali Khan Property in Bhopal
    Saif Ali Khan Property in Bhopal

    खंगाल रहे भोपाल की भूमि के 72 सालों का रेकॉर्ड

    भोपाल कलेक्टर कौशलेंद्र विक्रम सिंह ने हाईकोर्ट के आदेश के बाद पिछले 72 वर्षों के जमीन के रेकॉर्ड खंगालने की प्रक्रिया शुरू कर दी है।

    लीजिंग कानून के तहत किराएदार

    शत्रु संपत्तियों पर भोपाल में रह रहे लोगों को राज्य के लीजिंग कानूनों के तहत किराएदार मान सकते हैं। इनमें ज्यादातर ने इन संपत्तियों को खरीदा या किराए पर लिया है। बेदखली पर ये कोर्ट में फैसले को चुनौती दे सकते हैं।

    रहवासियों का तर्क

    कजेदारों का कहना है कि वे सालों से भूमि का टैकस दे रहे हैं। इसके बावजूद उनके घरों की रजिस्ट्रियां नहीं हुई हैं।

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