आयोग में वैसे तो अध्यक्ष का कार्यकाल पांच साल का होता है, इसकी नियुक्ति राज्यपाल द्वारा की जाती है। लेकिन नियमों में यह प्रावधान भी है कि किसी कारण से अध्यक्ष का पद रिक्त होता है तो नियमित नियुक्ति होने के पहले सरकार छह माह के लिए अध्यक्ष नियुक्त कर सकती है। इसी के तहत सरकार ने अप्रेल 2019 में डॉ. मोरद्धाज सिंह परिहार को छह माह के लिए अध्यक्ष नियुक्त किया गया था।
अब आयोग के सदस्य स्वराजपुरी को छह माह के लिए कार्यवाहक अध्यक्ष बना दिया गया। डॉ. परिहार विक्रम विश्वविद्यालय की ज्यूलॉजी एवं बायोटेक्नॉलॉजी अध्ययनशाला के विभागाध्यक्ष होने के नाते शिक्षाविद हैं। लेकिन स्वराजपुरी के मामले में ऐसा नहीं है। ये रिटायर आईपीएस और इन्हें प्रशासन का अच्छा अनुभव है, लेकिन शिक्षाविद नहीं हैं।
राज्यपाल ने सदस्य बनाया सरकार ने अध्यक्ष –
राज्यपाल ने स्वराजपुरी को आयोग का सदस्य नियुक्त किया था। सदस्य के तौर पर इनका कार्यकाल मई 2020 तक है। अब राज्य सरकार ने इन्हें आयोग का अध्यक्ष बना दिया है। जानकारों का कहना है कि अध्यक्ष नियुक्ति पद की जिम्मेदारी संभालने के साथ ही इन्हें सदस्य पद छोडऩा होगा। यदि ऐसा नहीं करते तो यह राज्यपाल के आदेश का उल्लंघन होगा। सवाल यह भी उठ रहा है कि यदि छह माह के कार्यकाल में पहले यहां नियमित अध्यक्ष नियुक्त हो जाता है तो क्या ये सदस्य के तौर पर कार्य कर पाएंगे क्योंकि सदस्य की नियुक्ति राज्यपाल करते हैं।
– जीतू पटवारी, मंत्री उच्च शिक्षा विभाग