दरअसल 2019 की लोकसभा चुनाव में ज्योतिरादित्य सिंधिया गुना में भाजपा के केपी यादव से चुनाव हार गए। जिसके बाद उनकी हार से आम आदमी से लेकर कांग्रेस तक भौचक्की रह गई।
दरअसल गुना को सिंधिया परिवार का एक अभेद्य किला माना जाता था, जिसमें इस बार भाजपा ने सेंध लगा ली। सिंधिया की हार के बाद से तमाम तरह की चर्चाएं शुरू हो गई। इसमें कई लोग यहीं मानते हैं कि उन्हें जानबुझकर षड्यंत्रपूर्वक हरवाया गया।
ऐसे आई ये बात सामने…
सीएम कमलनाथ ने मंत्रियों के साथ कांग्रेस की हार की समीक्षा के दौरान पूछा कि हमें किसान कर्ज माफी का फायदा क्यों नहीं मिला। इस पर जो जवाब आया वह चौंकाने वाला था, कहा गया कि जनता ने मोदी और राष्ट्रवाद के आगे कुछ नहीं देखा। वहीं गुना से ज्योतिरादित्य सिंधिया की हार पर एक मंत्री ने यहां तक कह दिया कि उन्हें षड्यंत्रपूर्वक हराया गया है।
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जिसके बाद सिंधिया की हार एक बार फिर चर्चाओं में आ गई है। सिंधिया की हार को लेकर राजनीति के जानकार भी एकजुट नहीं दिख रहे हैं। जहां एक ओर कुछ जानकार सिंधिया के बर्ताव को इस हार का जिम्मेदार मान रहे हैं। वहीं कुछ जानकार इसे सिंधिया को कांग्रेस में कमजोर करने की साजिश की तरह देख रहे हैं।
चुनाव में हार की समीक्षा बैठक के दौरान सीएम कमलनाथ ने कहा कि भाजपा हमारी सरकार को अस्थिर बताकर छवि खराब करने की कोशिश करेगी। वहीं हमें जनता को बताना है कि सरकार स्थिर है और बेहतर काम करेगी।
इस दौरान उन्होंने अपने विधायकों को संभाले रखने के लिए मंत्रियों को जिम्मेदारी दी। उन्होंने रविवार को अनौपचारिक बैठक में प्रत्येक मंत्री को पांच पांच विधायकों को संभालने के निर्देश दिए।
सिंधिया को लेकर इतना बवाल क्यों?…
कांग्रेस के प्रमुख नेताओं में से एक ज्योतिरादित्य सिंधिया की हार को लेकर हर ओर हडकंप मचा हुआ है। दरअसल गुना को सिंधिया परिवार की सबसे सेफ सीट माना जाता था, ऐसे में उनकी यहां से हार किसी के गले नहीं उतर रही है।
दरअसल सिंधिया घराने का अभेद किला मानी जाने वाली गुना सीट से ज्योतिरादित्य के भाजपा के एक स्थानीय नेता से हार जाने की खबर से पार्टी के दिग्गज नेताओं की नींद उड़ी हुई है, सिंधिया परिवार के लिए गुना सीट किसी भी पार्टी की विचारधारा से ऊपर रही है क्योंकि इस सीट से स्वर्गीय माधवराव सिंधिया कांग्रेस से चार बार जीते तो इसी सीट से स्वर्गीय राजमाता सिंधिया बीजेपी से पांच बार विजयी हुईं। और फिर चार बार से लगातार ज्योतिरादित्य सिंधिया डेढ़ लाख से ज्यादा वोटों से जीतते आ रहे थे।
यहां तक कि 2014 की मोदी लहर में भी ज्योतिरादित्य ने आसानी से ये सीट बचा ली थी। इतना ही नहीं ज्योतिरादित्य सिंधिया का जलवा छह महीने पहले दिसंबर 2018 के विधानसभा चुनाव में भी बरकरार रहा, लेकिन सिंधिया की इस हार का असर काफी गहरा हुआ है।
गुना सीट पर जीत का विश्वास ही था कि सिंधिया आखिरी दौर के मतदान से ठीक एक दिन पहले अपने निजी विदेशी दौरे पर निकल गए थे और उनकी कोई प्रतिक्रिया भी नहीं आई है। गुना सीट दशकों से ये सीट महल की मानी जाती रही है, दिलचस्प बात तो ये है कि विधानसभा में पार्टी की जीत के बाद वे भी एक मुख्यमंत्री पद के दावेदार थे और फिर पार्टी ने उन्हें उसके बदले बड़ी जिम्मेदारी दी थी।
गुना से राजघराने की पहली हार…
मध्यप्रदेश के अस्तित्व में आने के बाद से ही विजया राजे सिंधिया, माधव राव सिंधिया और ज्योतिरादित्य सिंधिया समेत सिंधिया परिवार के अलग-अलग सदस्य इस सीट से जीतते रहे हैं. साथ ही ज्योतिरादित्य सिंधिया की यह हार इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि आज़ादी के बाद यह ग्वालियर राजघराने या ‘महल’ के किसी व्यक्ति की यहां से पहली चुनावी हार है।
लेकिन सिंधिया परिवार के गढ़ में पहली बार सेंध लगाने वाली भाजपा की इस जीत और ज्योतिरादित्य सिंधिया की इस ऐतिहासिक हार के कारणों पर आने से पहले मध्यप्रदेश की राजनीति में सिंधिया परिवार के महत्व को समझना ज़रूरी है।
कुछ जानकारों का मानना है कि गुना सीट से सिंधिया की हार का सबसे बड़ा कारण कांग्रेस की अंदरूनी गुटबाज़ी है। वे यहां तक कहते हैं कि कांग्रेस को दिग्विजय सिंह के गुट और सिंधिया परिवार के गुट की अनबन का भी नुक़सान हुआ है।
कुल मिलाकर कई लोग इस हार को कांग्रेस की अंदरूनी राजनीति से ही जोड़कर देखते हैं। वहीं कुछ का मानना है कि सिंधिया बीते चार चुनावों से जीत दर्ज करा रहे हैं और ऑल इंडिया कांग्रेस कमेटी के जनरल सेक्रेटरी भी हैं। लेकिन इसके बावजूद उनके ही गुना शिवपुरी क्षेत्र में कांग्रेस का कोई कैडर ही नहीं है। वहीं जो पुराना कैडर था, वह इनके चुनाव प्रचार तक में नहीं उतरा और इनके ‘फॉलोअर’ सोचते रह गए कि महाराज तो ऐसे ही जीत जाएंगे, काम करने की क्या ज़रूरत है।