दरअसल राजधानी में ढाई से तीन लाख की आबादी सरकारी एवम अर्बन सीलिंग (ऐसी जमीनें जो पूर्व में निजी थीं बाद में सरकारी हो गईं) पर वर्षों से काबिज हैं। इन लोगों पर न तो मालिकाना हक के दस्तावेज हैं, नाही इनको बैंक लोन देती है। प्रॉपर्टी की खरीद फरोख्त भी नहीं कर सकते। ऐसे करीब 50 हजार से ज्यादा प्रॉपर्टी धारकों को उनकी जमीन का मालिकाना हक दिया जाएगा। इसमें एक बात का विशेष जोर दिया जा रहा है कि जमीन का उपयोग आवासीय और व्यावसायिक होने पर ही मालिकाना हक मिलेगा। कृषि भूमि पर अवैध मकान बना है तो उसे हक नहीं दिया जाएगा। इसमें 31 दिसंबर 2014 से पहले जमीन पर काबिज लोगों को ही भूमि स्वामी पटटे और मालिकाना हक दिया जाएगा।
इनपर काबिजों को नहीं मिलेगा हक
– शासकीय परियोजना और प्रायोजनों के लिए छोड़ी गई जमीनें
– नदी, नाला या जलसंग्रहण के लिए छोड़ी गई जमीन हो
– धार्मिक संस्था, माफी या औकाफ की जमीन हो।
– पार्कों, खेल के मैदानों, सड़कों, गलियों या किसी अन्य सामुदायिक उपयोग की हो
– राजस्व वन भूमि, छोटे बड़े झाड़ के जंगल हों।
आवेदन करते समय ये दस्तावेज करने होंगे प्रस्तुत
– 31 दिसंबर 2014 से पूर्व जमीन पर काबिज हो।
– बिजली बिल, जल प्रदाय संबंधी बिल, सरकारी दफ्तर या उपक्रम से भूखंड से संबंधित जारी कोई पत्राचार/दस्तावेज, जनगणना 2011 में उल्लेखित पता, सम्पत्ति की रसीद, मतदाता सूची में नाम।
वर्जन
जमीन के मालिकाना हक के संबंध में काफी आवेदन आए हैं और लगातार आ रहे हैं। जांच में थोड़ा समय लगेगा इसके बाद ही धारणाधिकार के तहत मालिकाना हक दिया जाएगा।
अविनाश लवानिया, कलेक्टर