नियमानुसार तेल को दो बार ही उपयोग कर सकते हैं। यहां 10 बार जले तेल में और तेल मिलाकर उपयोग किया जा रहा है। विभाग के अफसरों की मानें तो एक कढ़ाई भरने में एक स्टॉल पर 15 लीटर की खपत आम है। शहर में कुछ छोटे स्टॉल्स संचालक भी हैं। दो हजार फूड स्टॉल्स पर कोई 20 हजार लीटर खाद्य तेल का उपयोग रोजाना होता है।
एफएसएसएआइ की तरफ से री यूज्ड कुकिंग ऑयल की बिक्री के लिए जला तेल 40 रुपए लीटर में बेचने की व्यवस्था की गई है। विभाग के अनुसार शहर में लगभग दो हजार फूड स्टॉल पर रोजाना औसत 20 हजार लीटर खाद्य तेल का उपयोग होता है। इस आधार पर रोजाना कम से कम पांच हजार लीेटर जला तेल खाद्य सुरक्षा विभाग के पास पहुंचना चाहिए। जानकार हैरानी होगी कि एक माह में सिर्फ 500 से 700 लीटर ही तेल पहुंच रहा है। यानी बड़ी संख्या में हॉकर्स जले तेल में ही तेल बढ़ाकर उसे उपयोग कर रहे हैं। ऐसा खाद्य तेल स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है।
भोपाल के मुख्य खाद्य सुरक्षा अधिकारी देवेंद्र दुबे बताते हैं कि ईटराइट के तहत कई हॉकर्स कॉर्नरों पर जले तेल के लिए ड्रम रखवाए थे। इससे बायोडीजल बनता। शहर में कुछ होटल्स के अलावा चंद लोग ही जला तेल बेच रहे हैं। जल्द ही जांच शुरू करेंगे।
इन कटेगिरी में बंटे हैं, फूड स्टॉल्स और अन्य
● तेज आंच पर कई बार गर्म हो चुके तेल में केमिकल बदलाव आते हैं। यह डीएनए को नुकसान पहुंचाने व उसमें बदलाव लाने का कारण बन सकते हैं। ● फेंफड़े, आंत, व ब्रेस्ट कैंसर का खतरा बढ़ जाता है। तेल के धुएं में 200 से ज्यादा तरह की गैसें होती हैं। इसमें अमोनिया, नाइट्रेट जैसी गैसें निकलती हैं। ● तेल में मौजूद सैचुरेटड फैट लिवर में जमा हो जाता है। जिससे फाइब्रोसिस और सिरोसिस जैसी बीमारियों का खतरा रहता है।
जेपी अस्पताल के मेडिसिन विशेषज्ञ डॉ. योगेंद्र श्रीवास्तव बताते हैं कि चाय स्टॉल्स, चाउमीन, फास्ट फूड, दुकानों, बाजारों में लगने वाले ठेले, बस स्टॉप, रेलवे स्टेशन के बाहर छोटे रेस्टोरेंट, होटल, छोटे रेस्टोरेंट, बड़े भोजनालय व हाइवे किनारे संचालित हो रहे होटल में नियमों का कोई पालन नहीं होता है।