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Harda Blast : पत्रिका के फोटो जर्नलिस्ट की नजर से… ऐसा भयावह मंजर… कैसे करता क्लिक!

मेरी रूह कांप गई, जब अवैध पटाखा फैक्ट्री में हुए हादसे का कवरेज करने रात आठ बजे घटनास्थल हरदा पहुंचा। वहां का मंजर देख आंखें फटी की फटी रह गईं। कलेजा मुंह को आ गया। रौंगटे खड़े हो गए।

भोपालFeb 09, 2024 / 08:46 am

Manish Gite

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patrika photo journalist subhash thakur story

(मौके पर जैसा सुभाष ठाकुर ने देखा)

मेरी रूह कांप गई, जब अवैध पटाखा फैक्ट्री में हुए हादसे का कवरेज करने रात आठ बजे घटनास्थल हरदा पहुंचा। वहां का मंजर देख आंखें फटी की फटी रह गईं। कलेजा मुंह को आ गया। रौंगटे खड़े हो गए। दो दशक के फोटोग्राफी कॅरियर में क्लिक करते वक्त कभी हाथ नहीं कांपे, लेकिन आज एक-एक क्लिक मानो भारी लग रही थी। कुछ समझ नहीं आ रहा था, कि क्या और कैसे इस भयावह हादसे को कवर करूं। फोटो खींचने के लिए बहुत कुछ था पर मन नहीं कर रहा था। इसी उधेड़बुन में था कि मेरे से पहले पहुंचे साथियों ने बताया कि पीछे की तरफ एक तीन मंजिला गोदाम है, उसमें अभी भी पटाखे भरे हुए हैं… तय किया कि उसके फोटो लूं पर वहां तक कैसे जाऊं? अंधेरे के बीच बारूद का पहरा… वहां जाने को लेकर साथियों में तरह-तरह की बातें हो रही थीं, डर नजर आ रहा था। किसी ने कहा, वहां जाना मतलब आखिरी फोटो न हो जाए तु्हारी।

 

सोचते-विचारते रात के ग्यारह बज गए। पीछे गोदाम तक जाने का कोई रास्ता नहीं सूझ रहा था। फिर भी हिम्मत करके उस ओर कदम बढ़ा दिए। आधी दूर ही पहुंचा था… फिर ब्लास्ट होने लगे, मैंने तुरंत पलटी मारी और दौड़ लगा दी। इधर अखबार का समय बीत रहा था। आधी रात होने को थी, घड़ी के कांटे मिलने वाले थे। धमाके कम होते ही एक बार फिर जाने की ठानी और चल पड़ा उस ओर। दोनों तरफ भारी आतिशबाजी से ध्वस्त व खंडहर हो चुके मकानों के फोटो खींचते हुए किसी तरह पीछे जा पहुंचा… वहां तीन मंजिला मकान का नजारा देख भौंचक रह गया। पूरा मकान बारूद से भरा हुआ था। उधर सामने आग जल रही, छुटपुट धमाके हो रहे। इस बीच मैंने तेजी से चार-पांच फोटो क्लिक किए। मेरा काम हो चुका था, मैं तुरंत वापस भागा।

 

दूसरे दिन सुबह सात बजे

घटनास्थल पर पहुंचा तो वहां का मंजर बयां करने के लिए शब्द नहीं थे। वहां हादसे का मारा, अपना सब कुछ खो चुका युवक राजा सिर पर गमछा बांधे मौन खड़ा था। वह माता-पिता का अंतिम संस्कार कर सुबह अपना घर देखने पहुंचा था। तीन बहनों और बुजुर्ग दादी की पूरी जवाबदारी अब उस पर आ चुकी है। उसके पास कुछ नहीं बचा… एक गठरी में कुछ कपड़े, छोटी कुप्पी में पावभर मूंग दाल के सिवाय। घटनास्थल पर ऐसी ही कई जोड़ी आंखें अपना घर व अपनों को तलाश रही थीं। किसी का पूरा परिवार खत्म हो गया तो किसी का आशियाना उजड़ गया।

 

हे भगवान… ऐसा मंजर वह कभी किसी को न दिखाए, मासूम-निर्दोष लोगों की मौत के जिम्मेदार दोषियों को बराबर सजा मिले… ऊपरवाले से यही प्रार्थना कर मैं जैसे-तैसे नम आंखों व भारी मन से वहां से रवाना हुआ।

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