सोचते-विचारते रात के ग्यारह बज गए। पीछे गोदाम तक जाने का कोई रास्ता नहीं सूझ रहा था। फिर भी हिम्मत करके उस ओर कदम बढ़ा दिए। आधी दूर ही पहुंचा था… फिर ब्लास्ट होने लगे, मैंने तुरंत पलटी मारी और दौड़ लगा दी। इधर अखबार का समय बीत रहा था। आधी रात होने को थी, घड़ी के कांटे मिलने वाले थे। धमाके कम होते ही एक बार फिर जाने की ठानी और चल पड़ा उस ओर। दोनों तरफ भारी आतिशबाजी से ध्वस्त व खंडहर हो चुके मकानों के फोटो खींचते हुए किसी तरह पीछे जा पहुंचा… वहां तीन मंजिला मकान का नजारा देख भौंचक रह गया। पूरा मकान बारूद से भरा हुआ था। उधर सामने आग जल रही, छुटपुट धमाके हो रहे। इस बीच मैंने तेजी से चार-पांच फोटो क्लिक किए। मेरा काम हो चुका था, मैं तुरंत वापस भागा।
दूसरे दिन सुबह सात बजे
घटनास्थल पर पहुंचा तो वहां का मंजर बयां करने के लिए शब्द नहीं थे। वहां हादसे का मारा, अपना सब कुछ खो चुका युवक राजा सिर पर गमछा बांधे मौन खड़ा था। वह माता-पिता का अंतिम संस्कार कर सुबह अपना घर देखने पहुंचा था। तीन बहनों और बुजुर्ग दादी की पूरी जवाबदारी अब उस पर आ चुकी है। उसके पास कुछ नहीं बचा… एक गठरी में कुछ कपड़े, छोटी कुप्पी में पावभर मूंग दाल के सिवाय। घटनास्थल पर ऐसी ही कई जोड़ी आंखें अपना घर व अपनों को तलाश रही थीं। किसी का पूरा परिवार खत्म हो गया तो किसी का आशियाना उजड़ गया।
हे भगवान… ऐसा मंजर वह कभी किसी को न दिखाए, मासूम-निर्दोष लोगों की मौत के जिम्मेदार दोषियों को बराबर सजा मिले… ऊपरवाले से यही प्रार्थना कर मैं जैसे-तैसे नम आंखों व भारी मन से वहां से रवाना हुआ।