तुलसी नगर स्थित संस्कृति संचालनालय में सोमवार को 11.45 बजे से लेकर 2.30 बजे तक पेंशन कमेटी बैठक हुई। नियमानुसार संस्कृति विभाग में हर तीन महीने में एक बार वृद्ध कलाकार पेंशन कमेटी की मीटिंग होनी चाहिए, लेकिन वर्ष 2019 के बाद से नहीं हुई थी। सोमवार को हुई कमेटी की बैठक में संस्कृति संचालक जिनका दायित्व पदेन अध्यक्ष है, उनके नेतृत्व में हुई। इसमें कुल चार सदस्य इंदौर की चित्रकार शुभा वैद्य, भोपाल रंगमंच के कलाकार संगीत वर्मा, देवास से मूर्तिकार प्रकाश पवार, साहित्य विधा से डॉ. विकास दवे उपस्थित रहे। इसके अलावा संस्कृति संचालनालय के तीन अधिकारी भी रहे। पेंशन कमेटी ने साथ ही अनुशंसा की कि अन्य राज्यों की तरह मध्य प्रदेश में भी पेंशन राशि को 1500 रुपए के बजाय सम्मानजनक 5000 रुपए किया जाए। मालूम हो कि कुछ राज्यों में ये राशि 08 हजार से लेकर 10 हजार रुपए तक है।
कमेटी ने 60 वर्ष से अधिक उम्र के बुजुर्ग कलाकारों के लिए वार्षिक आय का दायरा बढ़ाने और आश्रित की संख्या को लेकर भी मंथन किया। तय किया गया कि जो वास्तव में विपन्न यानी जिनकी माली हालत खराब है, उन्हें पेंशन अनिवार्य रूप से मिले, और अधिक से अधिक आश्रित परिजन शामिल हो पाएं, इसका सिस्टम बनाया जाए। अभी 36 हजार रुपए वार्षिक आय का दायरा तय है, जिसमें स्वयं कलाकार-साहित्यकार के अलावा दो परिजन शामिल हैं। इसी तरह से कलावंत-साहित्यकार और उनके एक परिजन के लिए प्रतिमाह 2000 हजार रुपए यानी सालाना 24000 की आय का दायरा है। और अकेले ही हैं तो 1500 रुपए मासिक यानी सालाना 18000 हजार रुपए वार्षिक आय का दायरा तय है।
मालूम हो कि संस्कृति विभाग ने वर्ष 2005 में पेंशन यानी वित्तीय सहायता के लिए नियम-शर्तें तय की थीं। इनके हिसाब से ऐसा व्यक्ति जो 60 वर्ष से अधिक आयु का है, जिसने कला व साहित्य के प्रति योगदान महत्वपूर्ण और उल्लेखनीय है, पात्र होगा। इसी तरह से परंपरागत विद्वान, जिन्होंने अपने क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान दिया हो, भले ही उनका कोई ग्रंथ प्रकाशित न हुआ हो। आश्रित ( अपने क्षेत्र में प्रतिष्ठित दिवंगत लेखक या कलाकार की विधवा पत्नी और नाबालिग बच्चे) विशेष परिस्थितियों में पूर्णत: आश्रित वृद्ध माता, पिता, नाबालिग भाई, बहन, जो दिवंगत लेखक-कलाकार के साथ रहते थे और उनकी उनकी आय का कोई स्रोत न हो। सोमवार को हुई समिति की बैठक में अब कलावंत-साहित्यकारों के दिव्यांग परिजनों को भी शामिल करने की अनुशंसा की गई है।
संस्कृति संचालनालय के विश्वस्त सूत्रों से पता चला कि पूर्व की सूची जिसमें 300 से अधिक लोगों को वर्षों से पेंशन दी जा रही है, उनमें अधिकांश कलावंत-साहित्य मनीषी नहीं हैं। समिति ने उस सूची को सत्यापित करने की अनुशंसा भी की है। वास्तव में कलाकार-साहित्यकार का सत्यापन कलेक्टर तहसीलदार को और तहसीलदार पटवारी को सौंप देते हैं। पटवारी बिना किसी के घर जाए, संबंधित से बात करके तय कर लेता है कि वह व्यक्ति पात्र है या नहीं। इस पद्धति में गड़बड़ी की पूरी आशंका होती है। समिति सदस्यों ने इस प्रक्रिया में जिलाधीश को अनिवार्यत: हर जिले में पात्रता सुनिश्चित करने वाली समिति में एक कलाकार और एक साहित्यकार को रखने का आग्रह किया है।