ताशकंद फाइल्स में कुछ अलग किया तो नेशनल अवार्ड मिला। यह बात कश्मीर फाइल्स की एक्टर और प्रोड्यूसर पल्लवी जोशी (pallavi joshi) ने पत्रिका प्लस से विशेष बातचीत में कही। उन्होंने कहा कि देश में ऐसे कई कॉलेज-यूनिवर्सिटी हैं, जहां देश विरोधी काम किए जाते हैं, युवाओं को देश के खिलाफ ही भड़ाकाया जाता है। जब हम यह फिल्म लेकर अमेरिका गए तो वहां लोगों ने बताया कि कैसे उन्हें एंटी इंडिया मैसेज भेजे जाते हैं। अब वह समझ पाए कि प्लानिंग के साथ भारत के खिलाफ लोगों को भड़काया जाता है।
कश्मीरी कहते हैं आप यहां भारत से आए हैं
पल्लवी((pallavi joshi) ने बताया कि जब हम शूटिंग के लिए कश्मीर गए तो वहां लोग पूछते थे कि आप भारत से आए हैं। मैंने उन्हें कहा कि आप भी भारत का ही हिस्सा हैं। हालांकि, बाद में उन्होंने हमसे माफी मांगी। उन्हें ये बातें बचपन से सिखाई गई हैं जो अब उनकी आदत बन गई है। हमें फिल्मों कश्मीर का सिर्फ एक पक्ष दिखाया जाता है। असली कश्मीर तक तो हम पहुंच ही नहीं पाते।
क्या अल्पसंख्यक का मतलब सिर्फ मुस्लिम
उन्होंने कहा कि आजादी के बाद देशभक्ति की फिल्में बनती थीं, लेकिन 70-80 के दशक से आज तक फिल्मों में मुस्लिमों को दयालु दिखाया जाता है और हिन्दुओं में बनिया को सूदखोर तो ठाकुर को महिलाओं पर गंदी नजर रखने वाला बताया जाता। इसका कारण माइनॉरिटी को महत्व देना बताया, लेकिन देश में जैन, बौद्ध और अन्य अल्पसंख्यक भी हैं, लेकिन इन्हें तो कभी शामिल ही नहीं किया जाता। जब भी आतंकवाद की बात होती है, लोग कहते हैं कि आतंकवाद का कोई धर्म नहीं है तो फिर गलत को गलत क्यों नहीं कहा जाता। पल्लवी ने कहा कि हम शुरू से संयुक्त परिवार में रहे हैं। हमारे देश में ये परम्परा रही है। बच्चों को तो नानी-दादी ही पालती थी, मां तो बस उसकी हाइजीन का ध्यान रखती थी। काम के चलते अब हम सभी एकल परिवार में रहने लगे तो संयुक्त परिवार पीछे छूट गए। मैं आज भी इसे मिस करती हूं।