निजी अस्पताल में ऐसी सर्जरी पर डेढ़ से छह लाख रुपए तक खर्च होते हैं। एम्स के निदेशक डॉ. अजय सिंह ने बताया, 18-20 करोड़ की रोबोटिक मशीनों की खरीद प्रक्रिया शुरू की है। ऐसा करने वाला एम्स मप्र का पहला सरकारी अस्पताल होगा। पहली बार सरकारी अस्पताल में रोबोटिक सर्जरी 2022 में हमीदिया में कार्यशाला में की गई थी।
इसलिए ये है बेहतर
-छोटे चीरे से प्रक्रिया पूरी होती है। रिकवरी तेज, ब्लड लॉस कम होता है।
-हाथों की तुलना में ज्यादा एक्यूरेसी और स्पीड से सर्जरी होती है।
-सर्जरी में जहां पहुंचना मुश्किल, वहां रोबोट आसानी से पहुंचता है।
गलती होने से पहले रुक जाता है रोबोट
यह कंप्यूटराइज्ड तकनीक है। डॉक्टर के सहायक के रूप में काम करती है। रोबोट में मरीज का कई एंगल से किया सीटी स्कैन डेटा व अन्य रिपोर्ट फीड की जाती हैं। इससे रोबोट आकलन करेगा कि कितनी हड्डी खराब हुई। रिप्लेसमेंट के दौरान इम्प्लांट की सबसे उचित स्थिति क्या है। गलती की आशंका पर रोबोट रुक जाता है।