दरअसल, यूपी में जब बीजेपी के समर्थन से मायावती की सरकार बनी तो उन्होंने 22 अगस्त 2002 को भाजपा नेता लालजी टंडन को अपना भाई बनाया और उन्हें चांदी की राखी बांधी। भाई बहन के इस नए रिश्ते के बाद उम्मीद लगाई जा रही थी कि बसपा और भाजपा के रिश्ते ठीक भाई बहन के रिश्ते की तरह ही मजबूत और मधुर होंगे। लेकिन ऐसा हुआ नहीं। फिर कुछ ही महीने बाद गठबंधन टूट गया और भाई-बहन का ये रिश्ता भी बिखर गया। हर राखी पर लालजी टंडन बहन मायावती का इंतजार करते रहे लेकिन वो नहीं आईं।
यूपी के सियासी गलियारे में आज भी इस रिश्ते की खूब चर्चा होती है। लेकिन जब मायावती ने लालजी टंडन को राखी बांधी थीं तो शायद किसी को अनुमान नहीं था कि ये राखी भी सियासी है। जो सियासी मिजाज के हिसाब से निबहेगा।
मध्यप्रदेश के नए राज्यपाल लालजी टंडन दो बार यूपी विधान परिषद के सदस्य रहे। पहला कार्यकाल 1978 से 1984 और दूसरा कार्यकाल 1990 से 1996 तक रहा। वहीं, 1991-1992 तक लालजी टंडन यूपी सरकार में मंत्री भी रहें। फिर 1996-2009 तक लगातार चुनाव जीतकर वो विधानसभा पहुंचते रहे। 1997 में वह यूपी में नगर विकास मंत्री भी रहे। साथ ही यूपी विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष भी रहे हैं। लखनऊ लोकसभा क्षेत्र से वह पहली बार 2009 में चुनाव लड़े और जीतकर संसद पहुंचे। 2014 में लालजी टंडन की जगह लखनऊ से राजनाथ सिंह चुनाव लड़े।
‘अनकहा लखनऊ’ पर विवाद
लालजी टंडन ने एक किताब भी लिखी है। उस किताब का नाम ‘अनकहा लखनऊ’ है। इस किताब में उन्होंने लखनऊ को लेकर कई खुलासे किए थे। जिसमें उन्होंने लक्ष्मण टीले के नामोनिशान मिटाए जाने की बात भी लिखी थी। जिस पर विवाद हुआ था।