प्राचीन मंदिरों में शुमार राजधानी भोपाल का तलैया स्थित काली मंदिर श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र है। लोग नौकरी, संतान प्राप्ति सहित अनेक प्रकार की मुरादें लेकर मां के पास आते हैं और कलावा या पन्नियां बांधकर मातारानी के चरणों में अर्जी लगाते हैं। कई श्रद्धालुओं की यहां मनोकामना पूरी हुई है।
वैसे मंदिर का निर्माण तो 1968 में हुआ था, लेकिन इसका इतिहास काफी पुराना है। मंदिर के संस्थापक अध्यक्ष शिवनारायण सिंह बगवार बताते हैं कि यहां कई सालों से पूजा होती आ रही है। यहां मातारानी पिंडी स्वरूप में हैं। हरियाली अमावस्या की रात यहां विशेष पूजा के साथ बलि पूजा होती थी। 1968 में एक मढि़यां बनाई गई, और दूर-दूर से लोग आने लगे। आसपास से भी यहां बड़ी संख्या में श्रद्धालु आते हैं। मातारानी सबकी मुराद पूरी करती है।
भोपाल से महज 35 किलोमीटर दूर बैरसिया के समीप तरावली गांव है, जहां मां हरसिद्धि के दरबार में मन्नत पूरी करने के लिए भक्त उल्टे फेरे लगाते हैं। उनकी आस्था है कि यहां उल्टे फेरे लगाने से उनके बिगड़े काम बन जाते हैं। यहां हर साल नवरात्र में विशेष पूजा-अर्चना करने के लिए लोग दूर-दूर से आते हैं।
तरावली के मंहत मोहन गिरी के अनुसार वर्षों पूर्व जब राजा विक्रमादित्य उज्जैन के शासक हुआ करते थे। उस समय विक्रमादित्य काशी गए थे। यहां पर उन्होंनें मां की आराधना कर उन्हें उज्जैन चलने के लिए तैयार किया था। इस पर मां ने कहा था कि एक तो वह उनके चरणों को यहां पर छोड़कर चलेंगी। इसके अलावा जहां सबेरा हो जाएगा। वह वहीं विराजमान हो जाएंगी। इसी दौरान जब वह काशी से चले तो तरावली स्थित जंगल में सुबह हो गई।
राष्ट्रीय राजमार्ग 12 पर मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल से जबलपुर की और 100 किमी की दूरी पर ऐतिहासिक नगर बाडी में स्थित “मां हिंगलाज शक्ति पीठ” बारना नदी (नर्मदापुराण में इसका नाम वरूणा नर्मदा की सहायक नदी के रूप में उल्लेख हैं) के उत्तरतट पर खाकी अखाडा के सिद्ध महन्तो की तपस्थली के समीप स्थित है। महन्त परम्परा का इतिहास “मां हिंगलाज मन्दिर” स्थापना की पुष्टि करता है।
यह अग्नि ज्योति स्वरूप में मंहत जी बलूचिस्तान से (जो मां हिंगलाज की मूल शक्तिपीठ हैं) लेकर आये थे। श्री मंहत भगवानदास जी, श्री राम के उपासक एवं माॅ जगदम्बा के अनन्य भक्त थे, उनके मन में “मां हिंगलाज शक्तिपीठ” के दर्शन की लालसा उठी। महंत अपने दो शिष्यों को साथ लेकर पदयात्रा पर निकल पडे। मंहत लगभग 2 वर्षो तक पदयात्रा करते रहे। अचानक मंहतश्री संग्रहणी-रोग से ग्रषित हो गए, अपितु अपनी आराध्य माँ के दर्शनो की लालसा में पदयात्रा अनवरत जारी रही ।
मां बिजासन के दरबार में दर्शनार्थियों की कोई पुकार कभी खाली नहीं जाती है। बड़े से बड़ा मंत्री हो या एक गरीब इंसान मां सब पर कृपा बरसाती हैं। भक्तों के बढ़ते हुए कदम जैसे ही इस धाम की परिधि पर पहुंचते हैं, पूरा शरीर मानो मां बिजासन की शक्ति से भर जाता है। माना जाता है कि मां विजयासन देवी पहाड़ पर अपने परम दिव्य रूप में विराजमान हैं। विध्यांचल पर्वत श्रंखला पर विराजी माता को विध्यवासिनी देवी भी कहा जाता है।
मान्यता के अनुसार देवी विजयासन माता पार्वती का ही अवतार हैं, जिन्होंने देवताओं के आग्रह पर रक्तबीज नामक राक्षस का वध किया था और सृष्टि की रक्षा की थी। विजयासन देवी को कई लोग कुलदेवी के रूप में भी पूजते हैं। माता कन्याओं को मनचाहा जीवनसाथी का आशीर्वाद देती हैं, वहीं भक्तों की सूनी गोद भी भरती हैं। भक्तों की ही श्रद्धा है कि इस देवीधाम का महत्व किसी शक्तिपीठ से कम नहीं हैं।
मां विजयासन देवी की प्रतिमा स्वयं-भू है। यह प्रतिमा माता पार्वती की है, जो वात्सल्य भाव से अपनी गोद में भगवान गणेश को लेकर बैठी हुई है। इस भव्य मंदिर में महालक्ष्मी, महासरस्वती और भगवान भैरव की प्रतिमाएं भी स्थापित हैं। भक्त कहते हैं कि एक मंदिर में कई देवी-देवताओं का आशीर्वाद पाने का सभी को सौभाग्य मिल जाता है।
यूं तो माता के कई नाम हैं, लेकिन भोपाल शहर का एक मंदिर कफ्र्यूवाली माता के नाम से भी प्रसिद्ध है। भवानी चौक सोमवारा स्थित कफ्र्यूवाली माता मंदिर अब शहर की पहचान बन चुका है। इसके नाम के पीछे भी बड़ा रोचक मामला है। पीरगेट स्थित मंदिर आस्था का केंद्र है। नवरात्र में यहां हजारों की संख्या में श्रद्धालु आते हैं, साथ ही सालभर यहां दर्शनार्थियों की भीड़ लगी रहती है। मातारानी के इस दरबार में मन्नत के लिए लोग नारियल में मातारानी के लिए अर्जी लिखकर लगाते हैं। इससे श्रद्धालुओं की मनोकामना पूरी होती है। दर्शन के लिए यहां न सिर्फ भोपाल, बल्कि आसपास से भी लोग पहुंचते हैं।
अश्विन नवरात्र में यहां झांकी बैठती थी, झांकी के सामने मातारानी की प्रतिमा स्थापना को लेकर 1982 में विवाद हो गया। विवाद इतना बढ़ा कि यहां प्रशासन को कफ्र्यू लगाना पड़ा। एक महीने तक यहां कफ्र्यू लगा रहा, उसके बाद यहां प्रतिमा की स्थापना हुई और मंदिर का निर्माण हुआ, तब से इस मंदिर को कफ्र्यूवाली माता के नाम से पहचाना जाता है।
मंदिर में कई धातुओं का इस्तेमाल यहां की साज-सज्जा के लिए किया गया है। मंदिर समिति के अध्यक्ष रमेश सैनी ने बताया कि मंदिर में शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती के सान्निध्य में श्रीयंत्र की स्थापना की गई है, जो चांदी का है उस पर सोने का वर्क है। यहां स्वर्ण कलश भी है। 130 किलो चांदी का आकर्षक गेट, 18 किलो चांदी की छोटी प्रतिमा, 21 किलो चांदी का सिंहासन है। आधा किलो सोने का वर्क दरवाजों और दीवारों पर किया गया है।
भोपाल के कोलार में स्थित जीजी बाई के मन्दिर में मां दुर्गा की पूजा बेटी की तरह होती है और खास यह है कि यहां पर कपड़ों के साथ माता के नए सैन्डिल भी चढ़ाए जाते हैं।
कहीं पहाड़ों में तो कहीं गुफाओं में तो कहीं माता रानी अपने मंदिरों में विराजती हैं, लेकिन विदिशा में एक प्राचीन देवी स्थान ऐसा भी है जो कभी मंदिर नहीं बन सका। मातारानी विराजी हैं, लेकिन मंदिर की कोई चहारदीवारी, छत या गुम्बज नहीं है। मातारानी खुले में ही नीम और इमली के दो वृक्षों की छांव में विराजी हैं। यह स्थान एक बगीचे के रूप में है, यही कारण है कि देवी के इस स्थान को देवी का बाग कहा जाता है। प्राचीन काल से ही यह स्थान देवी भक्तों की आस्था का केन्द्र है।
भक्त मां के सामने झोली फैलाते हैं और मनोकामना पूरी होने पर यहां पीतल की घंटी चढ़ाते हैं। दरबार असंख्य पीतल की घंटियों से भरा पड़ा है।सांची रोड स्थित देवी का बाग सदियों पुराना स्थान माना जाता है।
मान्यता है कि मां का यह दरबार सिद्ध स्थान है, और यहां सच्चे मन से मांगी गई हर मुराद पूरी होती है। मां तो भाव की भूखी होती है, लेकिन फिर भी मान्यता के अनुरूप भक्त अपनी मन्नत पूरी होने पर यहां पीतल की घंटी चढ़ाते हैं।
रायसेन स्थित दशहरे के दिन मां कंकाली देवी की गर्दन सीधी हो जाती है। इस रहस्य को अभी तक कोई सुलझा नहीं पाया है। यहां वर्ष भर भक्तों का तांता लगा रहता है। भक्तों को यहां आने के लिए परेशानी न हो इसलिए मंदिर की वेबसाइट तैयार की गई है। मंदिर के बारे में क्या है मान्यता…
– संतान प्राप्ति की मनोकामना को लेकर हजारों की संख्या में प्रदेश भर से श्रद्धालु यहां पहुंचते हैं।
– भोपाल से 20 और रायसेन से 30 किमी दूर स्थित इस मंदिर की वेबसाइट भी तैयार कर ली गई है।
– इसके अलावा मां कंकाली देवी के चित्र वाले चांदी के सिक्के भी बनवाए गए हैं।- मंदिर निर्माण के लिए 11 हजार या इससे अधिक राशि दान करने वाले श्रद्धालुओं के लिए यह सिक्का उपहार के तौर पर दिया जाएगा।
– वेबसाइट और चांदी के सिक्कों का लोकार्पण 7 अक्टूबर को पर्यटन मंत्री सुरेंद्र पटवा द्वारा किया जाएगा।
– श्रद्धालु गोबर से उल्टे हाथ के निशान लगाते हैं।
– मां कंकाली मंदिर विकास एवं सेवा सार्वजनिक ट्रस्ट के दुर्गाप्रसाद के मुताबिक संतान प्राप्ति के लिए मंदिर पर श्रद्धालु गोबर से उल्टे हाथ के निशान लगाते हैं।
– मनोकामना पूरी होने पर हाथों के सीधे निशान बना दिए जाते हैं। यहां हाथों के हजारों निशान बने हुए हैं। नवरात्र में बड़ी संख्या में लोग पहुंच रहे हैं।
भोपाल नए शहर के माता मंदिर क्षेत्र में बना प्राचीन शीतला माता मंदिर लोगों की आस्था का केंद्र है। मंदिर में मां शीतला पिंडी स्वरूप में हैं, वहीं यहां मां काली, मां दुर्गा भी विराजमान हैं। नवरात्र के साथ साल भर यहां भीड़ लगी रहती है। सबसे प्राचीन दुर्गा मंदिर में शीतल वस्तु अर्पित करने से मुंहमांगी मुराद पूरी होती है। मुराद पूरी होने पर कई श्रद्धालु, ओम, स्वास्तिक, हाथ का पंजा आदि चिन्ह भी यहां लगाते हैं। कई श्रद्धालु श्रद्धा से यहां चुनरी में नारियल बांधकर अर्पित करते हैं।
यह मंदिर एक चमत्कारिक मंदिर है। मंदिर के पं. राजीव चतुर्वेदी बताते हैं कि यह मंदिर मुख्य मार्ग पर स्थित है, और वाहनों की आवाजाही लगातार लगी रहती है, लेकिन मंदिर के सामने जितने भी बार एक्सीडेंट हुआ है, उसमें किसी को चोट नहीं आई। उन्होंने बताया कि एक बार एक युवक बस की चपेट में आ गया था, बस ने उसे टक्कर मार दी, लेकिन शुक्र रहा, उसे चोट नहीं आई।
मंदिर का इतिहास नवाबी दौर के भी पहले का है। यहां शीतला माता खजूर के पेड़ के नीचे स्वयभू प्रकट हुई थी, बाद में मढि़या बनाकर पूजा-अर्चना होने लगी। यहां आने वाले लोगों की मुरादें पूरी होने लगीं। किसी को संतान, तो किसी को अ’छी नौकरी मिली। इसके आसपास के क्षेत्र को माता मंदिर के नाम से ही पहचाना जाता है।