scriptनवरात्रि 2017: देवी मां के इन नौ मंदिरों में आज भी होते हैं ऐसे चमत्कार, जिन्हें देखकर आप भी रह जाएंगे हैरान | Navratri 2017 : nine special devi temple of madhya pradesh | Patrika News
भोपाल

नवरात्रि 2017: देवी मां के इन नौ मंदिरों में आज भी होते हैं ऐसे चमत्कार, जिन्हें देखकर आप भी रह जाएंगे हैरान

देवी मां के इस शक्ति पर्व पर हम आपको बता रहे हैं कुछ ऐसे मंदिरों के बारे में जहां आज भी चमत्कार देखने को मिल जाते हैं।

भोपालSep 20, 2017 / 12:20 pm

दीपेश तिवारी

miracle devi temple of india,
भोपाल। शारदीय नवरात्रि 21 सितंबर से शुरू हो रही हैं। नवरात्रि का यह पर्व 29 तक चलेगा, जबकि 30 सितंबर को दशहरा मनाया जाएगा। इस दौरान भोपाल समेत मध्यप्रदेश के विभिन्न जिलों के देवी मंदिरों मेंर् भक्तों की भीड़ उमड़ने के साथ ही जगह—जगह देवी मां की पांडाल लगाए जाएंगे।
देवी मां के इस शक्ति पर्व पर हम आपको बता रहे हैं कुछ ऐसे मंदिरों(nine special devi temple) के बारे में जहां आज भी चमत्कार देखने को मिल जाते हैं। यहीं नहीं इन मंदिरों की स्थापना से लेकर देवी मां के इन रूपों की महत्वता ओर जहां ये वर्तमान में स्थित हैं, हर पहलु से जुड़ी नवरात्रि में देवी मां की कथा सब आपके सामने…
1. काली मंदिर :
प्राचीन मंदिरों में शुमार राजधानी भोपाल का तलैया स्थित काली मंदिर श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र है। लोग नौकरी, संतान प्राप्ति सहित अनेक प्रकार की मुरादें लेकर मां के पास आते हैं और कलावा या पन्नियां बांधकर मातारानी के चरणों में अर्जी लगाते हैं। कई श्रद्धालुओं की यहां मनोकामना पूरी हुई है।
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वैसे मंदिर का निर्माण तो 1968 में हुआ था, लेकिन इसका इतिहास काफी पुराना है। मंदिर के संस्थापक अध्यक्ष शिवनारायण सिंह बगवार बताते हैं कि यहां कई सालों से पूजा होती आ रही है। यहां मातारानी पिंडी स्वरूप में हैं। हरियाली अमावस्या की रात यहां विशेष पूजा के साथ बलि पूजा होती थी। 1968 में एक मढि़यां बनाई गई, और दूर-दूर से लोग आने लगे। आसपास से भी यहां बड़ी संख्या में श्रद्धालु आते हैं। मातारानी सबकी मुराद पूरी करती है।
2. मां हरसिद्धि :
भोपाल से महज 35 किलोमीटर दूर बैरसिया के समीप तरावली गांव है, जहां मां हरसिद्धि के दरबार में मन्नत पूरी करने के लिए भक्त उल्टे फेरे लगाते हैं। उनकी आस्था है कि यहां उल्टे फेरे लगाने से उनके बिगड़े काम बन जाते हैं। यहां हर साल नवरात्र में विशेष पूजा-अर्चना करने के लिए लोग दूर-दूर से आते हैं।
तरवली स्थित मां हरसिद्धि के मंदिर(special devi temple) में सामान्य रूप से श्रद्धालु माता के दर्शन करने के लिए आते हैं और सीधी परिक्रम लगाते है और जो श्रद्धालु मां से कुछ खास मन्नत मांगते हैं, वे उल्टी परिक्रमा करते हैं और इनकी मन्नत पूरी हो जाती है, तो श्रद्धालु माता का शुक्रिया अदा करने पहुंचते हैं और सीधे परिक्रमा करते हैं।
खास बात यह है कि जिन भक्तों को संतान नहीं होती है। वह महिलाएं मंदिर के पीछे की ओर स्थित नदी में स्नान करने के बाद मां की आराधना करती है।

तरवली स्थित मां हरसिद्धि की आराधना का अलग ही महत्व है। यहां पर मां के धड की पूजन की जाती है, क्योंकि मां के चरण काशी में विराजमान है और शीश उज्जैन में। इससे जितना महत्व काशी और उज्जैन का है उतना ही महत्व इस तरावली मंदिर का भी है। तीनों ही स्थानों पर मां हरसिद्धि की प्रतिमा स्थापित है और तीनों ही स्थानों का इतिहास एक समय का ही है। यहां पर आज भी मां के दरबार में मां के आरती खप्पर से की जाती है। यह परंपरा वर्षों से चली आ रही है।
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तरावली के मंहत मोहन गिरी के अनुसार वर्षों पूर्व जब राजा विक्रमादित्य उज्जैन के शासक हुआ करते थे। उस समय विक्रमादित्य काशी गए थे। यहां पर उन्होंनें मां की आराधना कर उन्हें उज्जैन चलने के लिए तैयार किया था। इस पर मां ने कहा था कि एक तो वह उनके चरणों को यहां पर छोड़कर चलेंगी। इसके अलावा जहां सबेरा हो जाएगा। वह वहीं विराजमान हो जाएंगी। इसी दौरान जब वह काशी से चले तो तरावली स्थित जंगल में सुबह हो गई।
इससे मां शर्त के अनुसार तरावली में ही विराजमान हो गईं। इसके बाद विक्रमादित्य ने लंबे समय तक तरावली में मां की आराधना की। फिर से जब मां प्रसन्न हुई तो वह केवल शीश को साथ चलने पर तैयार हुई। इससे मां के चरण काशी में है, धड़ तरावली में है और शीश उज्जैन में है। उस समय विक्रमादित्य को स्नान करने के लिए जल की आवश्यकता थी। तब मां ने अपने हाथ से जलधारा दी थी। इससे वाह्य नदी का उद्गम भी तरावली के गांव से ही हुआ है और उसी समय से नदी का नाम वाह्य नदी रखा गया है।
3. मां हिंगलाज मन्दिर :
राष्ट्रीय राजमार्ग 12 पर मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल से जबलपुर की और 100 किमी की दूरी पर ऐतिहासिक नगर बाडी में स्थित “मां हिंगलाज शक्ति पीठ” बारना नदी (नर्मदापुराण में इसका नाम वरूणा नर्मदा की सहायक नदी के रूप में उल्लेख हैं) के उत्तरतट पर खाकी अखाडा के सिद्ध महन्तो की तपस्थली के समीप स्थित है। महन्त परम्परा का इतिहास “मां हिंगलाज मन्दिर” स्थापना की पुष्टि करता है।
खाकी अखाडा के पूर्व संत-महन्त चमत्कारी एवं तपस्वी थे।खाकी अखाडा की मंहत परम्परा में चौथी पीढी के मंहत श्री भगवान दास महाराज “मां हिंगलाज” को अग्नि स्वरूप में लेकर आये। वर्तमान में श्री रामजानकी मंदिर के पास में धूनी स्थान है वह स्थापना से 150 वर्ष तक अखण्ड धूनी चैतन्य रहने का स्थान हेेै।
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यह अग्नि ज्योति स्वरूप में मंहत जी बलूचिस्तान से (जो मां हिंगलाज की मूल शक्तिपीठ हैं) लेकर आये थे। श्री मंहत भगवानदास जी, श्री राम के उपासक एवं माॅ जगदम्बा के अनन्य भक्त थे, उनके मन में “मां हिंगलाज शक्तिपीठ” के दर्शन की लालसा उठी। महंत अपने दो शिष्यों को साथ लेकर पदयात्रा पर निकल पडे। मंहत लगभग 2 वर्षो तक पदयात्रा करते रहे। अचानक मंहतश्री संग्रहणी-रोग से ग्रषित हो गए, अपितु अपनी आराध्य माँ के दर्शनो की लालसा में पदयात्रा अनवरत जारी रही ।
एक दिन मंहतश्री अशक्त होकर बैठ गए और माॅ से प्रार्थना करने लगे कि- हे माॅ आपके दर्शनो के बिना में वापिस नहीं जाउगा,चाहे मुझे प्राण ही क्यो त्यागना ना पडे। एक माह तक शारीरिक अस्वस्थता की स्थिति में जंगली कंदमूल-फल का आहार लेकर अपने संकल्प पर अटल रहे।
कहते है कि भगवान भक्तों की कठिन से कठिन परीक्षा लेते है । वर्षा के कारण एक दिन धूनी भी शांत हो गई, जिस दिन धूनी शांत हुई उसके दूसरे दिन प्रातःकाल एक भील कन्या उस रास्ते से अग्नि लेकर निकली और महंत से पूछने लगी कि, बाबा आपकी धूनी में तो अग्नि ही नही है,आप क्यों बैठे हो। बाबा ने अपनी व्यथा उस कन्या को सुनाई। कन्या उन्हे अग्नि देकर अपने मार्ग से आगे बढकर अंतर्ध्यान हो गई।

मंहतश्री ने उस अग्नि से धूनी चैतन्य की ओर मन ही मन “माॅ हिंगलाज”(miracle devi temple) से प्रार्थना करने लगे। रात्रि में उनको स्वप्न आया कि भक्त अपने स्थान वापिस लौट जाओ । मैने तुम्हे दर्शन दे दिये हैं। मेरे द्वारा दी गई अग्नि को अखण्ड धूनी के रूप में स्थापित कर “हिंगलाज मंदिर” के रूप में स्थापना कर दो ।
इस प्रकार बाडी नगर में “मां हिंगलाज देवी मंदिर” जगदम्बे की “51वी उपशक्ति पीठ” के रूप में स्थापित हुआ।

माँ हिंगलाज के चमत्कारों की घटनाएॅ तो अनेक है पर एक घटना का संबंध “खाकी अखाडा” से जुडा है, भोपाल रियासत की बेगम कुदसिया (1819) के कार्यकाल से है। खाकी अखाडे में 50-60 साधू संत स्थायी रूप से रहते थे। उनके भोजन की व्यवस्था मंहत जी की “रम्मत धर्मसभा” की आय से होती थी।
मां हिंगलाज के दर्शनार्थिंयो एवं दानदाताओं का इसमें सहयोग रहता था। यह घटना सन् 1820-25 के आसपास की है, उस समय नबाब की बेगम कुदसिया का बाडी में केम्प था। “श्री रामजानकी मंदिर” खाकी अखाडे में प्रातः सुप्रभात आरती “जागिये कृपानिधान” एवं सांयकालीन आरती भी “गौरीगायन कौन दिशा से आये, पवनसुत तीव्र ध्वनि” शंख,घंटा,घडियाल एवं नौबत वाद्ययन्त्रों के साथ होती थी।
बेगम कुदसिया ने जब यह शोर सुबह-शाम सुना तो बहुत ही क्रोधित हुई ओर मंहत जी को हुक्म भेजा कि जब तक बाड़ी में हमारा केम्प है,यहाॅ पर शोर-शराबा नही होना चाहिये । हमारी नमाज में खलल पडता है । मंहत जी ने हुक्म मानने से इन्कार कर दिया और कहा की भगवान की आरती इसी प्रकार होती रहेगी उसका परिणाम कुछ भी हो। मंहत जी का इन्कार सुनकर बेगम बहुत ही क्रोधित हुई।
बेगम पहले ही मंहतजी के चमत्कारों एवं साधना के बारे मे सुन चुकी थी इसलिए उसने परीक्षा लेने के लिए एक थाल में मांस को कपडे से ढककर चार प्यादों सेवक के साथ भोग लगाने मन्दिर भेज दिया जैसे ही प्यादे सेवक मंदिर परिसर के अन्दर आये । महंत समझ गए। मंहत जी ने एक सेवक भेज कर उसे मुख्यद्वार पर ही रूकवा दिया और एक शिष्य को आज्ञा दी कि अखण्डधूनी के पास जो कमण्डल रखा है उसे लेकर थाल पर जल छिडक दो और बेगम के सेवको से कह दो कि भोग लग गया हैं।
बेगम साहिबा को भोग प्रसाद प्रस्तुत कर दो । कपडा बेगम के सामने ही हटाना। प्यादे(सेवक) वह थाल लेकर वापस बेगम के पास केम्प में पहूचे और बेगम के सामने थाल रखकर सब किस्सा बयान किया जब बेगम ने थाल का कपडा हटाया तो, उसमें मांस के स्थान पर प्रसाद स्वरूप विभिन्न प्रकार की मिठाईयाॅ मिली।
बेगम को आश्चर्य हुआ और महन्त जी से मिलने मंदिर पहुची और कहा कि महाराज मैं आपकी खिदमत करना चाहती हूॅ आप मुझे हुक्म दीजिये आपकी क्या खिदमत करूॅ। इसके बाद बेगम “मां हिंगलाज” के चमत्कार से प्रभावित हुई। इसके उपरांत बेगम ने मंदिर के नाम जागीर दान दी।
4. सलकनपुर की बिजासन देवी :

MP के सीहोर जिले में है सलकनपुर नामक गांव। यहां स्थित 1000 फीट ऊंची पहाड़ी पर विराजमान है बिजासन देवी। यह देवी मां दुर्गा का अवतार हैं। देवी मां का यह मंदिर MP की राजधानी भोपाल से 75 किमी दूर है।
दुःख दूर करने वाली माता –
मां बिजासन के दरबार में दर्शनार्थियों की कोई पुकार कभी खाली नहीं जाती है। बड़े से बड़ा मंत्री हो या एक गरीब इंसान मां सब पर कृपा बरसाती हैं। भक्तों के बढ़ते हुए कदम जैसे ही इस धाम की परिधि पर पहुंचते हैं, पूरा शरीर मानो मां बिजासन की शक्ति से भर जाता है। माना जाता है कि मां विजयासन देवी पहाड़ पर अपने परम दिव्य रूप में विराजमान हैं। विध्यांचल पर्वत श्रंखला पर विराजी माता को विध्यवासिनी देवी भी कहा जाता है।
माता पार्वती का अवतार हैं विजयासन देवी –
मान्यता के अनुसार देवी विजयासन माता पार्वती का ही अवतार हैं, जिन्होंने देवताओं के आग्रह पर रक्तबीज नामक राक्षस का वध किया था और सृष्टि की रक्षा की थी। विजयासन देवी को कई लोग कुलदेवी के रूप में भी पूजते हैं। माता कन्याओं को मनचाहा जीवनसाथी का आशीर्वाद देती हैं, वहीं भक्तों की सूनी गोद भी भरती हैं। भक्तों की ही श्रद्धा है कि इस देवीधाम का महत्व किसी शक्तिपीठ से कम नहीं हैं।
स्वयं-भू है माता की प्रतिमा –
मां विजयासन देवी की प्रतिमा स्वयं-भू है। यह प्रतिमा माता पार्वती की है, जो वात्सल्य भाव से अपनी गोद में भगवान गणेश को लेकर बैठी हुई है। इस भव्य मंदिर में महालक्ष्मी, महासरस्वती और भगवान भैरव की प्रतिमाएं भी स्थापित हैं। भक्त कहते हैं कि एक मंदिर में कई देवी-देवताओं का आशीर्वाद पाने का सभी को सौभाग्य मिल जाता है।
5. कफ्र्यूवाली माता :
यूं तो माता के कई नाम हैं, लेकिन भोपाल शहर का एक मंदिर कफ्र्यूवाली माता के नाम से भी प्रसिद्ध है। भवानी चौक सोमवारा स्थित कफ्र्यूवाली माता मंदिर अब शहर की पहचान बन चुका है। इसके नाम के पीछे भी बड़ा रोचक मामला है। पीरगेट स्थित मंदिर आस्था का केंद्र है। नवरात्र में यहां हजारों की संख्या में श्रद्धालु आते हैं, साथ ही सालभर यहां दर्शनार्थियों की भीड़ लगी रहती है। मातारानी के इस दरबार में मन्नत के लिए लोग नारियल में मातारानी के लिए अर्जी लिखकर लगाते हैं। इससे श्रद्धालुओं की मनोकामना पूरी होती है। दर्शन के लिए यहां न सिर्फ भोपाल, बल्कि आसपास से भी लोग पहुंचते हैं।
ऐसे मिला नाम –
अश्विन नवरात्र में यहां झांकी बैठती थी, झांकी के सामने मातारानी की प्रतिमा स्थापना को लेकर 1982 में विवाद हो गया। विवाद इतना बढ़ा कि यहां प्रशासन को कफ्र्यू लगाना पड़ा। एक महीने तक यहां कफ्र्यू लगा रहा, उसके बाद यहां प्रतिमा की स्थापना हुई और मंदिर का निर्माण हुआ, तब से इस मंदिर को कफ्र्यूवाली माता के नाम से पहचाना जाता है।
सोने का वर्क, चांदी का सिंहासन –
मंदिर में कई धातुओं का इस्तेमाल यहां की साज-सज्जा के लिए किया गया है। मंदिर समिति के अध्यक्ष रमेश सैनी ने बताया कि मंदिर में शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती के सान्निध्य में श्रीयंत्र की स्थापना की गई है, जो चांदी का है उस पर सोने का वर्क है। यहां स्वर्ण कलश भी है। 130 किलो चांदी का आकर्षक गेट, 18 किलो चांदी की छोटी प्रतिमा, 21 किलो चांदी का सिंहासन है। आधा किलो सोने का वर्क दरवाजों और दीवारों पर किया गया है।
6. जीजी बाई मंदिर :
भोपाल के कोलार में स्थित जीजी बाई के मन्दिर में मां दुर्गा की पूजा बेटी की तरह होती है और खास यह है कि यहां पर कपड़ों के साथ माता के नए सैन्डिल भी चढ़ाए जाते हैं।
राजधानी भोपाल के कोलार इलाके में एक छोटी सी पहाड़ी पर बना मां दुर्गा का सिद्धदात्री पहाड़ावाला मंदिर है। जिसे लोग जीजीबाई मंदिर भी कहते हैं। दरअसल करीब 18साल पहले यहां अशोकनगर से रहने आए आेम प्रकाश महाराज ने मूर्ति स्थापना के साथ शिव-पार्वती विवाह कराया था और खुद कन्यादान किया था। तब से वे मां सिद्धदात्री को अपनी बेटी मानकर पूजा करते हैं और आम लोगों की तरह बेटी के हर लाढ़-चाव पूरे करते हैं।
ओम प्रकाश महाराज बताते हैं कि लोग यहां मन्नतें मांगते हैं और पूरी होने के बाद नयी चप्पल चढ़ाते हैं। चप्पल के साथ-साथ गर्मी में चश्मा, टोपी और घड़ी भी चढ़ाई जाती है। एक बेटी की तरह दुर्गा जी की देखभाल होती है। कई बार हमें आभास होता है कि देवी उन्हें पहनाए गए कपड़ोंं से खुश नहीं हैं तो दो-तीन घंटों में ही कपड़े बदलने पड़ते हैं।
7. देवी का बाग:
कहीं पहाड़ों में तो कहीं गुफाओं में तो कहीं माता रानी अपने मंदिरों में विराजती हैं, लेकिन विदिशा में एक प्राचीन देवी स्थान ऐसा भी है जो कभी मंदिर नहीं बन सका। मातारानी विराजी हैं, लेकिन मंदिर की कोई चहारदीवारी, छत या गुम्बज नहीं है। मातारानी खुले में ही नीम और इमली के दो वृक्षों की छांव में विराजी हैं। यह स्थान एक बगीचे के रूप में है, यही कारण है कि देवी के इस स्थान को देवी का बाग कहा जाता है। प्राचीन काल से ही यह स्थान देवी भक्तों की आस्था का केन्द्र है।
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भक्त मां के सामने झोली फैलाते हैं और मनोकामना पूरी होने पर यहां पीतल की घंटी चढ़ाते हैं। दरबार असंख्य पीतल की घंटियों से भरा पड़ा है।सांची रोड स्थित देवी का बाग सदियों पुराना स्थान माना जाता है।
माना जाता है कि यहां कभी सिंधिया रियासत की सेना आकर ठहरी थी, जिसने यहां चबूतरा बनवा दिया था। कालांतर में जमीन बेच दी गई, लेकिन नेशनल हाईवे पर शहर के बीचों-बीच होते हुए भी इस जगह पर कोई निर्माण नहीं हो सका। यहां अब भी खेत है, बावड़ी है, बगीचा है और मां का खुला दरबार है। देवी प्रतिमाएं प्राचीन पाषाण कला का प्रतीक है, जिस पर आस्था का सिन्दूर लेपन कर दिया गया है। पेड़ की छांव में माता रानी के साथ ही हनुमान , गणेश की प्रतिमाएं और शिव परिवार भी मौजूद हैं।
मन्नत की घंटियों की गूंज –
मान्यता है कि मां का यह दरबार सिद्ध स्थान है, और यहां सच्चे मन से मांगी गई हर मुराद पूरी होती है। मां तो भाव की भूखी होती है, लेकिन फिर भी मान्यता के अनुरूप भक्त अपनी मन्नत पूरी होने पर यहां पीतल की घंटी चढ़ाते हैं।
ऐसी असंख्य घंटियां मां के दरबार में लटक रही हैं। अधिक संख्या को देख दरबार से जुड़े लोगों ने पुरानी घंटियों को गलवाकर विशाल घंटे और एक-एक क्विंटल के पीतल के दो शेर मां के दरबार में बनवा दिए हैं। शिवलिंग पर भी पीतल की भव्य खोल चढ़ा दी गई है। यूं तो बारह महीने देवी के बाग में भक्त आते रहते हैं। लेकिन नवरात्र के दिनों में यहां की छटा निराली ही रहती है।
8. मां कंकाली देवी :
रायसेन स्थित दशहरे के दिन मां कंकाली देवी की गर्दन सीधी हो जाती है। इस रहस्य को अभी तक कोई सुलझा नहीं पाया है। यहां वर्ष भर भक्तों का तांता लगा रहता है। भक्तों को यहां आने के लिए परेशानी न हो इसलिए मंदिर की वेबसाइट तैयार की गई है। मंदिर के बारे में क्या है मान्यता…
– मान्यता के मुताबिक गुदावल स्थित मां कंकाली देवी की प्रतिमा की टेढ़ी गर्दन दशहरे के दिन सीधी हो जाती है।
– संतान प्राप्ति की मनोकामना को लेकर हजारों की संख्या में प्रदेश भर से श्रद्धालु यहां पहुंचते हैं।
– भोपाल से 20 और रायसेन से 30 किमी दूर स्थित इस मंदिर की वेबसाइट भी तैयार कर ली गई है।
– इसके अलावा मां कंकाली देवी के चित्र वाले चांदी के सिक्के भी बनवाए गए हैं।- मंदिर निर्माण के लिए 11 हजार या इससे अधिक राशि दान करने वाले श्रद्धालुओं के लिए यह सिक्का उपहार के तौर पर दिया जाएगा।
– वेबसाइट और चांदी के सिक्कों का लोकार्पण 7 अक्टूबर को पर्यटन मंत्री सुरेंद्र पटवा द्वारा किया जाएगा।
– श्रद्धालु गोबर से उल्टे हाथ के निशान लगाते हैं।
– मां कंकाली मंदिर विकास एवं सेवा सार्वजनिक ट्रस्ट के दुर्गाप्रसाद के मुताबिक संतान प्राप्ति के लिए मंदिर पर श्रद्धालु गोबर से उल्टे हाथ के निशान लगाते हैं।
– मनोकामना पूरी होने पर हाथों के सीधे निशान बना दिए जाते हैं। यहां हाथों के हजारों निशान बने हुए हैं। नवरात्र में बड़ी संख्या में लोग पहुंच रहे हैं।
9. प्राचीन शीतला माता मंदिर :
भोपाल नए शहर के माता मंदिर क्षेत्र में बना प्राचीन शीतला माता मंदिर लोगों की आस्था का केंद्र है। मंदिर में मां शीतला पिंडी स्वरूप में हैं, वहीं यहां मां काली, मां दुर्गा भी विराजमान हैं। नवरात्र के साथ साल भर यहां भीड़ लगी रहती है। सबसे प्राचीन दुर्गा मंदिर में शीतल वस्तु अर्पित करने से मुंहमांगी मुराद पूरी होती है। मुराद पूरी होने पर कई श्रद्धालु, ओम, स्वास्तिक, हाथ का पंजा आदि चिन्ह भी यहां लगाते हैं। कई श्रद्धालु श्रद्धा से यहां चुनरी में नारियल बांधकर अर्पित करते हैं।
चमत्कारिक मंदिर –
यह मंदिर एक चमत्कारिक मंदिर है। मंदिर के पं. राजीव चतुर्वेदी बताते हैं कि यह मंदिर मुख्य मार्ग पर स्थित है, और वाहनों की आवाजाही लगातार लगी रहती है, लेकिन मंदिर के सामने जितने भी बार एक्सीडेंट हुआ है, उसमें किसी को चोट नहीं आई। उन्होंने बताया कि एक बार एक युवक बस की चपेट में आ गया था, बस ने उसे टक्कर मार दी, लेकिन शुक्र रहा, उसे चोट नहीं आई।
एक बार मंदिर के सामने एक जेसीबी और गाड़ी की टक्कर हो गई थी, गाड़ी पूरी तरह डैमेज हो गई थी, लेकिन ड्राइवर को खरोच तक नहीं आई।

और ऐसे हुईं प्रकट –
मंदिर का इतिहास नवाबी दौर के भी पहले का है। यहां शीतला माता खजूर के पेड़ के नीचे स्वयभू प्रकट हुई थी, बाद में मढि़या बनाकर पूजा-अर्चना होने लगी। यहां आने वाले लोगों की मुरादें पूरी होने लगीं। किसी को संतान, तो किसी को अ’छी नौकरी मिली। इसके आसपास के क्षेत्र को माता मंदिर के नाम से ही पहचाना जाता है।

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