इसके तहत मुरैना, ग्वालियर, शिवपुरी, गुना, भिण्ड, दतिया, छतरपुर और टीकमगढ़ जिले आते हैं। इसका विस्तार छिंदवाड़ा तथा बैतूल में भी है।
इसमें नर्मदापुरम, दमोह, भोपाल, इंदौर, सीहोर, नरसिंहपुर, रायसेन, विदिशा और सागर जिले शामिल हैं। 3. पश्चिम में काली मिट्टी वाला मालवा प्रदेश-
इसमें इंदौर, खण्डवा, खरगोन, मंदसौर, रतलाम, झाबुआ, धार, देवास, उज्जैन, राजगढ़, शाजापुर आदि शामिल हैं। इसके अंतर्गत आने वाले जिलों में ज्वार व कपास की फसलों की प्रधानता है।
इसमें जबलपुर, मंडला, रीवा, सीधी, शहडोल और बालाघाट जिले शामिल हैं। रायसेन, सीहोर समेत अन्य कई जिलों में धान की खेती के प्रति किसानों की रुचि बढ़ रही है। इसका कारण धान का उत्पादन अधिक होना और किसानों को अच्छे दाम मिलना है।
यह उत्तर में पन्ना, सतना, जबलपुर और सिवनी के दक्षिणी हिस्से तक एक पेटी के रूप में फैला है। इस क्षेत्र की जलवायु अधिक वर्षा और अधिक गर्मी वाली है, जो अनाज की फसलों के लिए अच्छी मानी जाती है।
सूबे के करीब 40 फीसदी हिस्से में होती है गेहूं की फसल गेहूं मध्य प्रदेश की प्रमुख फसल कही जा सकती है। दोनों फसल मौसम में बोई जाने वाली फसलों में गेहूं का रकबा सबसे ज्यादा है। यह फसल कीट-बीमारी से सुरिक्षत और मौसम की मार को काफी हद झेल पाती है। प्रदेश में तकरीबन 55 से 65 लाख हेक्टेयर भूमि पर गेहूं की खेती की जा रही है। गेहूं की खेती उसी क्षेत्र में होती है, जहां बारिश का औसत 75 से 125 सेंटीमीटर होता है। जहां वर्षा कम होती है, वहां सिंचाई के माध्यम से भी गेहूं की फसल ली जाती है। दो से छह बार सिंचाई में अच्छा उत्पादन देने वाली कई किस्मों की उपलब्धता ने गेहूं की खेती को लोकप्रिय बनाया है। विगत वर्षों में प्रदेश सरकार द्वारा गेहूं के लिए दिए गए बोनस, भावांतर और समर्थन मूल्य ने भी इस खेती को लाभकारी बनाने में कसर नहीं छोड़ी है। मध्यप्रदेश में गेहूं अक्टूबर-नवंबर में बोया जाता है तथा मार्च-अप्रैल में फसल काट ली जाती है। गेहूं की खेती प्रदेश के पश्चिमी भाग में ज्यादा होती है। राज्य के मैदानी क्षेत्रों में ताप्ती, नर्मदा, तवा, गंजाल, हिरण आदि नदियों की घाटियों और मालवा के पठार की काली मिट्टी वाले क्षेत्रों में गेहूं पैदा किया जाता है। प्रदेश के अधिकतर जिलों नर्मदापुरम, भोपाल, सीहोर, विदिशा, जबलपुर, गुना, सागर, ग्वालियर, निमाड़, उज्जैन, इंदौर, रतलाम, देवास, मंदसौर, झाबुआ, रीवा और सतना जिलों में गेहूं का उत्पादन मुख्य रूप से होता है।
देश में जितना सोयाबीन पैदा होता है, उसका 50 प्रतिशत भाग अकेले मध्यप्रदेश में होता है। इसी वजह से मध्य प्रदेश को सोयाबीन प्रदेश के नाम से भी जाना जाता रहा है। हालांकि अतिवृष्टि या अनावृष्टि के चलते पिछले कुछ सालों में सोयाबीन का उत्पादन प्रभावित होता रहा है। राज्य में इसके प्रमख क्षेत्रों में इंदौर, धार, उज्जैन, छिंदवाड़ा, नरसिंहपुर, सिवनी, भोपाल, गुना, शाजापुर, आगर और रतलाम जिले हैं। मध्य प्रदेश के बाद अब राजस्थान, छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र जैसे राज्य भी सोयाबीन की खेती में आगे आए हैं।
मध्य प्रदेश की दूसरी महत्वपूर्ण फसल धान है, जिसे 22.5 प्रतिशत क्षेत्रफल में उगाया जा रहा है। अगर रकबे के हिसाब से गणना की जाए तो प्रदेश में धान लगभग 28 से 30 लाख हैक्टेयर में बोया जा रहा है। प्रदेश से धान का कटोरा छत्तीसगढ़ छिन जाने के बाद यह प्रगति काफी उम्दा है। यह अधिक नमी में होने वाली फसल है। यह फसल उन्हीं हिस्सों में अधिक होती है, जहां औसतन वार्षिक वर्षा 100 से 125 सेंटीमीटर है। इसी तरह से इसकी पैदावार के लिए हल्की लाल व पीली मिट्टी उपयुक्त है। इसी वजह से यह फसल मानसून की शुरुआत में बोई जाती है और अक्टूबर-नवंबर माह में काट ली जाती है। मध्य प्रदेश के बालाघाट, मण्डला, सीधी, छिंदवाड़ा, बैतूल, रीवा, सतना आदि जिलों में धान की खेती होती है। बालाघाट में पैदा होने वाले परंपरागत धान की किस्म चिन्नौर का पेटेंट हाल ही में हासिल किया गया है। हालांकि बासमती धान पर अभी भी प्रदेश का दावा सिद्ध होने की लड़ाई जारी है।