मध्यप्रदेश की राजनीतिक का यह किस्सा बड़ा ही दिलचस्प है। सारंगढ़ रियासत के गौंड राजा नरेशचंद्र सिंह इकलौते आदिवासी सीएम रह चुके हैं। यह पहला मौका था जब मध्यप्रदेश के मूल निवासी एक आदिवासी को सीएम बनाया गया था। यह सीएम महज 13 दिन ही कुर्सी पर बैठे और 14वें दिन इस्तीफा दे दिया। इस्तीफा देने के बाद कभी राजनीति की तरफ मुड़कर भी नहीं देखा। पूर्व मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह ने भी अपनी आत्मकथा में इस बात का जिक्र किया था।
ऐसे गड़बड़ाया था राजनीति का समीकरण
13 दिन के सीएम की कहानी के पीछे किस्सा यह था कि राजमाता विजयाराजे सिंधिया नाराज होकर कांग्रेस छोड़ गई थी। इसके बाद विधानसभा चुनाव हुए। राजमाता तब गुना से स्वतंत्र उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ी थीं। वे भारी बहुमत से चुनाव जीत गई थीं। दूसरी तरफ कांग्रेस में दरार पड़ना शुरू हो गई थी। 35 विधायक गोविंदनारायण सिंह के नेतृत्व में कांग्रेस से अलग होकर राजमाता के पास चले गए थे। राजमाता सिंधिया ने भी बगैर देरी किए कांग्रेस सरकार का तख्ता पलट कर दिया। रातोंरात द्वारिका प्रसाद मिश्रा की सरकार गिर गई थी।
तब जनसंघ, प्रजा सोशलिस्ट पार्टी और कांग्रेस के दल-बदलू विधायक एकजुट हो गए थे। राजमाता को सीएम बनने का प्रस्ताव दिया गया, लेकिन उन्होंने अपने स्थान पर कांग्रेस के बागी गोविंदनारायण सिंह को सीएम बनवा दिया। हालांकि, गोविंद नारायण सिंह की संविदा सरकार महज 19 माह ही चल पाई। गोविन्द नारायण ने आपसी मतभेदों के चलते 12 मार्च 1969 को इस्तीफ़ा दे दिया था। 13 मार्च को उनके स्थान पर नरेश चंद्र सिंह को सीएम बना दिया गया। 25 मार्च को 13वें दिन उन्होंने इस्तीफा दे दिया।
यहां हुई होती है असली कहानी
नरेंश चंद्र सिंह इकलौते आदिवासी सीएम थे। 13 मार्च 1969 को उन्होंने संविदा सरकार के सीएम पद की शपथ ली थी। 26 मार्च 1969 को सरकार न चला पाने के कारण इस्तीफा दे दिया था। नरेशचंद्र सिंह अविभाजित मध्य प्रदेश की पुसौर विधानसभा सीट से जीतकर आए ते। यह क्षेत्र अब छत्तीसगढ़ में है।
क्या था अर्जुन सिंह की आत्मकथा में
पूर्व सीएम अर्जुन सिंह की आत्मकथा में लिखा था कि “मार्च 1969 की एक रात भोपाल के मेरे निवास पर सीएम गोविंद नारायण सिंह आए तो उन्हें देखकर मैं चौंक गया। वे रात के अंधेरे में मेरे घर आए थे। वे इस सरकार से तंग हो चुके हैं और इस्तीफा देकर कांग्रेस में वापस आना चाहते थे। अगले दिन सवेरे 7 बजे उन्होंने मेरे पास एक बंद लिफाफे में कांग्रेस अध्यक्ष एस. निजलिंगप्पा के नाम संबोधित पत्र दिया। मैं उस पत्र को लेकर तत्काल बंगलुरू गया और उसके कुछ हफ्ते बाद कांग्रेस हाईकमान ने उन्हें वापस पार्टी कांग्रेस में ले लिया था। इसके बाद गोविंद नारायण सिंह फिर से कांग्रेस विधायक दल के नेता बन गए और श्यामाचरण शुक्ल उपनेता बने। मार्च 1969 जाते-जाते कांग्रेस की सरकार फिर से बनाने की मुहिम तेज होने लगी। द्वारिका प्रसाद मिश्र स्वाभाविक उम्मीदवार थे लेकिन, उनके दुश्मन काफी अधिक हो गए थे। तीसरी बार उन्हें सीएम देखना नहीं चाहते थ। अंततः श्याम चरण शुक्ल को सीएम बना दिया गया।
रियासत के थे अंतिम राजा
राजा नरेशचंद्र सिंह का जन्म 21 नवम्बर 1908 को हुआ था। एक जनवरी 1948 को भारत संघ में अपने राज्य के विलय तक वे सारंगढ़ रियासत के अंतिम शासक थे।
ऐसा था राजनीतिक कैरियर
गौंड राजा नरेशचंद्र सिंह आजादी के बाद भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में शामिल हो गए थे। उन्होंने 1951 में मध्य भारत की राज्य विधानसभा के लिए हुए पहले आम चुनाव में जीत हासिल की थी।
1951 और 1957 के विधानसभा चुनाव जीतकर सारंगढ़ विधानसभा क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया।
नरेशचंद्र सिंह ने 1962 और 1967 का विधानसभा चुनाव पुसौर विधानसभा सीट से जीता।
1952 में मुख्यमंत्री पंडित रविशंकर शुक्ल के मंत्रिमंडल में उन्हें कैबिनेट मंत्री बनाया गया।
1955 में आदिम जाति कल्याण के लिए पहला मंत्री बनाया गया था।
1969 में (13 मार्च 1969 से 26 मार्च 1969) मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री बनने तक इस पद पर बने रहे।
उस दौर में जिस तरह से राजनीति होने लगी थी, उससे निराश होकर उन्होंने मुख्यमंत्री और राज्य विधानसभा की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया। इसके साथ ही उन्होंने राजनीति भी छोड़ दी।