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भोपाल

Modi False commitments:झूठे निकले वायदे, मोदी राज में भी घास की रोटियां खाते हैं यहां लोग

आजादी के 70 साल बाद भी इस गांव में कुछ नहीं बदला। बिजली तो यहां दूर की बात, आज भी यहां के लोग घास की रोटियां खाने को मजबूर हैं।

भोपालMay 03, 2018 / 02:45 pm

Faiz

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भोपाल/नरसिंहपुरः वैसे तो देश की बीजेपी सरकार यहां के हर छोटे से छोटे गांव को शहरों से जोड़ने और विकास की धारा बहाने का वादा करके सरकार में आई थी और साथ ही, भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हाल ही में एक ट्वीट भी किया, जिसमें उन्होंने देश के हर गांव में बिजली पहुंचाने का वादा पूरा करने की बात कही थी। उन्होंने अपने ट्वीट में 28 अप्रेल 2018 को ऐतिहासिक दिन बताते हुए कहा था कि, भारत की विकास यात्रा में ये दिन याद रखा जाएगा। पीएम ने ट्वीट में ये भी कहा था कि, उनकी सरकार ने अपना वादा पूरा कर दिया है। जिसकी मदद से कितने ही भारतीयों का जीवन हमेशा के लिए बदल जाएगा। साथ ही पीएम ने ये भी कहा कि, मुझे ये बताते हुए खुशी हो रही है कि, अब भारत के हर गांव में बिजली पहुंच चुकी है।” मगर मध्य प्रदेश के नरसिंहपुर जिले के एक गांव ने पीएम के ट्वीट में किए गए दावे की पोल खोल दी है।

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घांस की रोटी खाने को मजबूर ग्रामीण

हम बात कर रहे हैं, नरसिंहपुर जिले के एक ऐसे गांव की जहां आजादी के 70 सालों बाद भी अब तक कुछ नहीं बदला है। बिजली तो यहां दूर की बात है, आज भी यहां के लोग घास की रोटियां खाने को मजबूर हैं। नरसिंहपुर के आदिवासी अंचल में बसा बड़ागांव जहां आज तक आजादी की सुबह ही नहीं हुई है। पहाड़ी पर बसे इस गांव तक पहुंचने के लिए एक बड़े ही दुर्गम रास्ते से होकर गुजरना पड़ता है। गांव के ग्रामिणों को अब तक कोई भी मूलभूत सुविधा नहीं मिली है। बरसात के दिनों में तो करीब चार महीने के लिए इस गांव के ग्रामीणों का संपर्क आसापस के इलाकों से टूट ही जाता है। आमदनी तो किसी भी ग्रामीण की ऐसी नहीं कि, इन चार महीनों का राशन घर में भर सकें, तो कई बार इऩ्हें मजबूरन पेड़-पौधों के पत्तों की रोटियां बनाकर अपना पेट भरना पड़ता है। अस्पताल, राशन दुकान और पक्के मकान तो दूर की बात, आजादी के इतने साल बाद भी प्रशासन इन आदिवासियों को बिजली, पानी, सड़क जैसी आधारभूत सुविधाएं तक नहीं पहुंचा पाया है।

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मानवाधिकार आयोग मांग चुका है जवाब

सरकार से बेहतर कल की उम्मीद रखे बैठे इस गांव के लोगों की हालत इतनी निंदनीय है कि, उसे देखकर मानवाधिकार आयोग का दिल भी पसीज गया, जिसके बाद उसने करीब चार साल पहले खुद जिले के कलेक्टर को नोटिस देकर इस गांव के हालातों पर जवाब मांगा था, पर उस जवाब का क्या हुआ ये तो पता नहीं, लेकिन आज भी यहां के हालात जस के तस है। नरसिंहपुर के आदिवासी अंचल में सिर्फ इस एक गांव के ही हालात इतने बुरे नहीं है, यहां लगभग आठ और भी ऐसे गांव है जो आम सुख सुविधाओं से अब तक वंचित है। कई बार तो लोग बीमारियों के समय में अस्पताल जाने के लिए गांव से निकलकर यहां कि, जटिल पहाड़ी रास्तों पर ही दम तोड़ देते हैं।

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चेहरे पर मेकअप है और पेट खाली

एक तरफ मेट्रो सिटीज की रौनक है, ट्रैफिक सिग्नल ग्रीन होते ही भाग पड़ने वाली जिंदगी है। चकाचौद रोशनी से भरे शहर हैं। तेज रफ्तार बुलेट ट्रेन, मेट्रो और हवाई जहाज की घनघनाती हुई आवाज है। वहीं दूसरी तरफ हालात अब भी बद से बदतर हैं। कहने का तात्पर्य ये है कि, हमारे चेहरे पर इस चकाचौंद का तो काफी मेकअप लगा दिया गया है, लेकिन हमारी आत्मा आज भी घास की रोटियां खाने को मजबूर है।

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