रूप चौदस के दिन संध्या के पश्चात दीपक जलाए जाते हैं और चारों ओर रोशनी की जाती है। इसे नरक चतुर्दशी के नाम से भी जाना जाता है। यहां नर्क से तात्पर्य गंदगी कमियों, खराबियों आदि से है। जो चीजें हमें असुंदर बनाती हैं, अतः रूप चौदस पर उन को ठीक करने का विधान है।
परंपरा का मेकओवर
स्त्री जननी है, वह अपनी फुलवारी, रसोई, घर-द्वार आदि को सजाती-संवारती है, साथ ही खुद को भी आकर्षक बनाती हैं। यह गुण भी उनमें है। आधुनिक युग में औरतें अपनी दादी-नानी की परंपरा को आगे बढ़ाते हुए सजती-संवरती हैं।
महिलाओं के सम्मान का पर्व
चूंकि औरत स्वभावतः उत्सव प्रेमी होती है, इसलिए वह हर छोटी-बड़ी खुशी का लुत्फ उठाती है। त्योहार के बहाने वह अपने रूप निखारने के साथ अच्छा दिखने का भी प्रयास करती हैं। रूप चौदस पर स्त्री खुद को अलक्ष्मी से लक्ष्मी बनने की ओर प्रेरित करती है। यह महिलाओं के सम्मान का भी पर्व है।
आगे रहने का प्रयास
त्योहार के बहाने कामकाजी महिलाएं अपने व्यस्ततम समय से खुद आगे रखने की कोशिश करती हैं। वे परंपराओं का निर्वहन करने का प्रयास करती हुई खुद की साज-सज्ज पर भी ध्यान केंद्रित करती हैं।
व्रत रखना भी है परंपरा
रूप चौदस का वास्तविक आख्यान, श्रीकृष्ण से संबद्ध है जिसमें उन्होंने नरकासुर की कैद से सोलह हजार से महिलाओं को बचाया और उन्हें रूप-सौंदर्य व सतीत्व प्रदान किया। इसलिए इस दिन व्रत भी रखते हैं ।
छोटी दिवाली का इतिहास
हिन्दू मान्यताओं के अनुसार, नरकासुर ने वैदिक देवी अतिथि के सम्राज को हड़प लिया था और महिलाओं को प्रताड़ित भी किया था. इस दिन महिलाओं पर आत्याचार को रोकने के साथ उनके रूप और स्वास्थ्य को लेकर सजगता का संदेश दिया जाता है. कुछ स्थानों पर छोटी दिवाली के मौके पर नरकासुर का पुतला दहन भी किया जाता है. ये देश के सभी इलाकों में मनाया जाता है, सिर्फ नाम अलग अलग है.
रूप चौदस का पूजा मुहूर्त
कृष्ण पक्ष चतुर्दशी तिथि प्रारंभ (क्षय तिथि): 03 नवंबर प्रातः 09:02 से- 4 नवंबर, 2021 को सुबह 06:03 मिनट पर समाप्त
*पंचांग में तिथि मतभेद होने के कारण और तिथि ह्रास होने के कारण कुछ लोग नरक चतुर्दशी 3 नवंबर को मना रहे हैं और कुछ 4 नवंबर को।